करसोग: जिला मंडी के करसोग में जहां युवा वर्ग पांच से दस हजार की नौकरी की चाहत में गांव को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, वहीं करसोग के एक युवा ने अपने खेत की माटी में ही सोना उगलने का संकल्प लिया है.
बता दें कि गड़ा माहूं के रहने वाले टेक सिंह के भी अन्य युवाओं की तरह कई सपने थे, लेकिन इन सपनों को साकार करने के लिए टेक सिंह ने अपनी जन्म भूमि को नहीं छोड़ा बल्कि अपने खून पसीने की एक-एक बूंद से धरती मां की कोख को सींचकर सोने जैसी बालियों की फसल पैदा करने निर्णय लिया. पहाड़ के इस युवक ने मौसम बदलाव के कारण उपजी विपरीत परिस्थितियों से पार पाने के लिए सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को चुना.
अपनी पहली ही कोशिश में इस युवा ने अपने चट्टान जैसे इरादों से रासायनिक खेती को बॉय-बॉय कर आठ से दस बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपनाया. इस सब में कृषि विभाग के वो कैम्प भी मददगार साबित हुए, जो सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए करसोग के हर गांव में आयोजित किए जा रहे हैं.
टेक सिंह ने भी इन केम्पों में जाकर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को बारीकी से जाना और समझा. जिसके बाद इस तकनीक से अपने खेतों में मिश्रित खेती कर अच्छी उपज लेने का निर्णय लिया. टेक सिंह ने रबी के इस सीजन में अपने खेतों में मटर, अलसी, धनियां चना और मेथी की बुआई की है.
बिना खाद और गोबर डाले ली जाती है अच्छी फसल:
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती में बिना खाद और गोबर डाले अच्छी फसल ली जा सकती है. इसके लिए सिर्फ देसी नस्ल की गाय की जरूत है. जिसके गोबर और गौ मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत सहित बीजामृत तैयार किया जाता है. इसमें, बेसन, गुड़ और मिट्टी आदि का भी प्रयोग किया जाता है. इस तकनीक से किसान एक ड्रम से पांच बीघा जमीन में जीवामृत का छिड़काव कर सकता है. जिसके बाद 21 दिन के अंतराल में फिर से जीवामृत और घन जीवामृत का छिड़काव होता है.
रासायनिक खाद की तुलना में यह तकनीकी काफी सस्ती है. जिसमें किसानों को किसी भी तरह की खाद खेतों में डालने की जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा किसानों को खेत मे गोबर डालने की भी आवश्यकता नहीं होती. इसके लिए देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत व बीजामृत बनाया जाता है. इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. यही नहीं इस विधि से जमीन में नमी बने रहने के साथ भूमि की उर्वरकता भी बनी रहती है.
बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है.
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टेक सिंह का कहना है कि उन्होंने पहली बार सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपनाया है. जिसके तहत उन्होंने मिश्रित खेती की है और एक ही खेत में कई प्रकार के बीज डाले हैं.