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कोरोना संकट में कारगर सिद्ध हो सकता है वुडन गैसिफायर, 60 किलो लकड़ी से जल जाती है डेड बॉडी

चांदपुर श्मशान घाट में स्थित वुडन गैसिफायर में परंपरागत तरीके की बजाय मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी के गुटकों से शव का दाह संस्कार हो जाता है. इस वुडन गैसिफायर को प्रदेश में सर्वप्रथम सुंदरनगर श्मशान घाट और इसके बाद शिमला के संजौली श्मशान घाट में स्थापित किया गया था. ये वुडन गैसिफायर कोरोना संकट के बीच कारगर साबित हो सकता है.

wooden gasifier
वुडन गैसिफायर
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Published : May 18, 2020, 3:02 PM IST

Updated : May 18, 2020, 4:02 PM IST

सुंदरनगर: विश्वभर में फैली कोरोना महामारी के चलते सभी देशों की चिंता बढ़ चुकी है. भारत में भी इस वायरस का कहर तेजी से बढ़ना चिंता का विषय बनता जा रहा है. सभी प्रदेश की सरकारें अपने-अपने स्तर पर कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए प्रयास कर रही हैं. देश में कोरोना से मौत का आंकड़ा करीब 3 हजार पहुंच चुका है.

वहीं, इस वायरस से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन ने भी वैकल्पिक व्यवस्था की कवायद शुरू कर दी है. सुंदरनगर के चांदपुर श्मशान घाट में मौजूद वुडन गैसिफायर कोरोना से मौत के मुंह में समाए लोगों की डेड बॉडी को जलाने में एक कारगर कदम साबित हो सकता है. इसको लेकर चांदपुर शमशान घाट कमेटी ने भी प्रशासन को इसका इस्तेमाल करने की हामी भर दी है. लगभग 20 साल पहले हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर में स्थापित इस वुडन गैसिफायर मशीन में लोगों द्वारा शव को जलाने के लिए कोई रूचि नहीं दिखाई गई, लेकिन इस विकट परिस्थिति में यह मशीन एक सबसे बड़ी सुविधा के तौर पर सामने आ सकती है.

वीडियो

बेशक कोरोना पीड़ित का अंतिम संस्कार करते समय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूरी सावधानी बरती जाती है. इसके बावजूद एक गलती संक्रमण फैला सकती है. ऐसे में वुडन गैसिफायर मशीन बहुत कम लकड़ी के साथ शव को बिना प्रदूषण और वायरस फैलाने के डर से जला सकता है.

वुडन गैसिफायर पर जानकारी देते हुए चांदपुर श्मशान घाट कमेटी के मुख्य संरक्षक नरेंद्र गोयल ने कहा कि चांदपुर श्मशान घाट में लगभग 20 साल पहले इस वुडन गैसिफायर को मुंबई की एक कंपनी द्वारा पूर्ण रूप से निशुल्क स्थापित किया गया था. उन्होंने कहा कि इस गैसिफायर में परंपरागत तरीके की बजाय मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी से शव का दाह संस्कार हो जाता है. इस वुडन गैसिफायर को प्रदेश में सर्वप्रथम सुंदरनगर श्मशान घाट और इसके बाद शिमला के संजौली श्मशान घाट में स्थापित किया गया था.

नरेंद्र गोयल ने कहा कि इसमें शव जलाने के बाद अस्थियों के सिवाए अन्य कोई अवशेष नहीं बचता है. स्थानीय लोगों में इस वुडन गैसिफायर का ज्ञान नहीं होने के कारण इसमें शव को जलाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई गई और इसमें अधिकतर लावारिस लाशों का दाह संस्कार ही हुआ है. उन्होंने प्रशासन से इस वुडन गैसिफायर को उपयोग करने को लेकर पूर्ण सहयोग देने के लिए आश्वस्त किया गया है.

ये भी पढ़ें: कोरोना पॉजिटिव महिला स्वस्थ होने पर भेजी गई घर, बेटे की मौत पर जोर-जोर से रोई मां

सुंदरनगर: विश्वभर में फैली कोरोना महामारी के चलते सभी देशों की चिंता बढ़ चुकी है. भारत में भी इस वायरस का कहर तेजी से बढ़ना चिंता का विषय बनता जा रहा है. सभी प्रदेश की सरकारें अपने-अपने स्तर पर कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए प्रयास कर रही हैं. देश में कोरोना से मौत का आंकड़ा करीब 3 हजार पहुंच चुका है.

वहीं, इस वायरस से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन ने भी वैकल्पिक व्यवस्था की कवायद शुरू कर दी है. सुंदरनगर के चांदपुर श्मशान घाट में मौजूद वुडन गैसिफायर कोरोना से मौत के मुंह में समाए लोगों की डेड बॉडी को जलाने में एक कारगर कदम साबित हो सकता है. इसको लेकर चांदपुर शमशान घाट कमेटी ने भी प्रशासन को इसका इस्तेमाल करने की हामी भर दी है. लगभग 20 साल पहले हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर में स्थापित इस वुडन गैसिफायर मशीन में लोगों द्वारा शव को जलाने के लिए कोई रूचि नहीं दिखाई गई, लेकिन इस विकट परिस्थिति में यह मशीन एक सबसे बड़ी सुविधा के तौर पर सामने आ सकती है.

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बेशक कोरोना पीड़ित का अंतिम संस्कार करते समय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूरी सावधानी बरती जाती है. इसके बावजूद एक गलती संक्रमण फैला सकती है. ऐसे में वुडन गैसिफायर मशीन बहुत कम लकड़ी के साथ शव को बिना प्रदूषण और वायरस फैलाने के डर से जला सकता है.

वुडन गैसिफायर पर जानकारी देते हुए चांदपुर श्मशान घाट कमेटी के मुख्य संरक्षक नरेंद्र गोयल ने कहा कि चांदपुर श्मशान घाट में लगभग 20 साल पहले इस वुडन गैसिफायर को मुंबई की एक कंपनी द्वारा पूर्ण रूप से निशुल्क स्थापित किया गया था. उन्होंने कहा कि इस गैसिफायर में परंपरागत तरीके की बजाय मात्र 60 किलोग्राम लकड़ी से शव का दाह संस्कार हो जाता है. इस वुडन गैसिफायर को प्रदेश में सर्वप्रथम सुंदरनगर श्मशान घाट और इसके बाद शिमला के संजौली श्मशान घाट में स्थापित किया गया था.

नरेंद्र गोयल ने कहा कि इसमें शव जलाने के बाद अस्थियों के सिवाए अन्य कोई अवशेष नहीं बचता है. स्थानीय लोगों में इस वुडन गैसिफायर का ज्ञान नहीं होने के कारण इसमें शव को जलाने को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई गई और इसमें अधिकतर लावारिस लाशों का दाह संस्कार ही हुआ है. उन्होंने प्रशासन से इस वुडन गैसिफायर को उपयोग करने को लेकर पूर्ण सहयोग देने के लिए आश्वस्त किया गया है.

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Last Updated : May 18, 2020, 4:02 PM IST
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