मंडी: हिमाचल प्रदेश में बड़े स्तर पर चीड़ के पेड़ मौजूद हैं. चीड़ की पत्तियों के विभिन्न रूप से प्रयोग में लाई जाती हैं. इनसे कई तरह के उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं. इसी कड़ी में अब चीर ऊर्जा परियोजना चीड़ की पत्तियों का बेहतर इस्तेमाल करने जा रही है. मंडी जिला की स्नोर घाटी के टेपर में चीर ऊर्जा परियोजना के तहत चीड़ की पत्तियों और लकड़ी के बुरादे से बायो फ्यूल ईंटें बनाए जाएंगी. केनरा एचएसबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के जरिए लगाई गई इस परियोजना का संचालन आश्रय फाउंडेशन करेगा. ये जानकारी आश्रय फाउंडेशन की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर सुरभि ने दी है.
ऊंचाई वाले इलाके में मशीन स्थापित: आश्रय फाउंडेशन की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर सुरभि ने बताया कि इन बायो फ्यूल ईंटों की डिमांड फार्मा कंपनी और सीमेंट कंपनियों में रहती है. मंडी जिले की स्नोर घाटी में केनरा एचएसबीसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी और आश्रय फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से बायो फ्यूल ईंटे बनाने के लिए मशीनों स्थापित कर दी हैं. वहीं, आईआईटी मंडी भी इसमें सहयोग करेगा. सुरभि ने बताया कि इसकी सबसे खास बात यह है कि इस परियोजना को ऊंचाई वाले इलाकों में स्थापित किया गया है. जहां चीड़ के पेड़ बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं.
जंगलों में चीड़ की पत्तियां गिरी हुई होती हैं. इन्हें स्थानीय स्वयं सहायता समूह की महिलाएं उपलब्ध करवाएंगी. इसके बदले उन्हें भुगतान किया जाएगा. इन चीड़ की पत्तियों व लकड़ी के बुरादे को मिलाते हुए मशीन के जरिए बायो फ्यूल ईंटे तैयार की जाएगी. इन्हें कोयले की जगह ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. - सुरभि, प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, आश्रय फाउंडेशन
'8 घंटे में 4 टन बायो फ्यूल ईंट': प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर सुरभि ने बताया कि चीर ऊर्जा परियोजना के तहत स्थापित यह मशीन आठ घंटे में बायो फ्यूल की चार टन ईंटें बनाने में सक्षम हैं. इसमें 80 प्रतिशत चीड़ की पत्तियां इस्तेमाल की जाएगी, जबकि 20 प्रतिशत लकड़ी का बुरादा यूज होगा. उन्होने बताया कि इस परियोजना के सफल संचालन के बाद इसे अन्य जगहों पर भी स्थापित किया जाएगा. इसके अलावा चीड़ की पत्तियों के उपयोग से ईंधन के उत्पादन को साथ-साथ वनों की आग और ऊर्जा संकट जैसे मामलों से निपटने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत करने में भी मददगार होगी.
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