मंडी: जिला के सराज क्षेत्र की देवी मडमाखन मंडी रियासत के राजा के आदेशों पर सदियों से लोहे की जंजीरों में जकड़ी हुई हैं. रियासतों के दौर से छोटी काशी मंडी में मनाए जा रहे शिवरात्रि महोत्सव में देवी हर साल सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर मंडी पहुंचती हैं. देवी के देवरथ पर लोहे की जंजीरों को आज भी देखा जा सकता है.
बता दें कि देवी को जंजीरों के जकड़ने की कहानी रोचक है. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में पुजारी बलेसर सिंह ने रियासतों के दौर में हुई घटना का विस्तार से जिक्र किया. उन्होंने बताया कि देवी को मूल रूप से कश्मीर का माना जाता है. जिस वजह से उनका नाम काश्मीरी भी है. जबकि देवी को मडमाखन नाम मंडी के राजा ने दिया है. जिसके बाद मंडी नगर में शिवरात्रि महोत्सव के दौरान उन्हें इसी नाम से जाना जाता है.
पुजारी ने कहा कि एक बार मंडी के राजा ने राज दरबार में देवी-देवताओं की परीक्षा लेनी चाही. राजा ने कहा कि कोई देवी-देवता वास्तव में शक्तिशाली है तो उन्हें हम तक चल कर आना होगा. राजा की इस बात पर देवी प्रचंड हो गई और राजा के पास पहुंच गई. देवी ने मंडी नगर में मार काट शुरू कर दी, जिससे हड़कंप मच गया.
पुजारी ने बताया कि देवी के प्रचंड रूप से राजा का अभिमान चूर-चूर हो गया. देवी के तेज को देखकर राजा घबरा गए और उन्होंने देवी को जंजीरों में जकड़ने के आदेश दिए. इसके बाद देवी को श्मशान घाट में वास दिया गया. राजा के इन आदेशों के बाद सदियां बीत गई, लेकिन शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत करने के लिए जब देवी छोटी काशी नहीं पहुंचती है तो पंचवक्त मंदिर जो की रियासतों के दौर में श्मशान घाट हुआ करता था उसी में वास करती हैं. यहीं पर ही देवी के देवलू भी वास करते हैं.
राजाओं के दौर में तो इस मंदिर में ही लोहे की बड़ी-बड़ी जंजीरों में जकड़ कर देवी को रखा जाता था, लेकिन वर्तमान समय में प्रतीकात्मक जंजीरें देवी के देवरथ पर लगी हुई हैं. जो यह अहसास करवाती हैं कि रियासतों के दौर में किस तरह से देवता और राजा के वृत्तांत प्रचलित थे. जिन पर विश्वास करना आज के दौर में थोड़ा मुश्किल हो जाता है, लेकिन मंडी शिवरात्रि में हिस्सा लेने वाले लगभग हर देवता की कोई ना कोई ऐसी रोचक कहानी है जिसके साथ रात दरबार और राजा का नाता है.
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