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हिंदी दिवस विशेष: इनकी रग-रग में बसती है देवनागरी, 20 सालों से हिंदी में निपटा रहे अदालती काम

हिंदी दिवस पर हम आज आपका एक ऐसे वकील के बारे में परिचय करवाएंगे जो पिछले कई सालों से हिंदी में ही वकालत कर रहे हैं. वैसे तो कोर्ट के सारे कामकाज अंग्रेजी भाषा में ही निपटाए जाते हैं, लेकिन जिला एवं सत्र न्यायलय मंडी में वकालत कर रहे अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा हिमाचल प्रदेश के पहले वकील हैं, जो न्यायलय का सारा कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं.

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Published : Sep 14, 2019, 12:05 AM IST

मंडी: हिंदी हमारी 'राजभाषा' है. हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. हिंदी विश्व की सबसे प्राचीन और सरल भाषा है. हिंदी भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में बोली जाती है. हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है.

हिंदी दिवस पर हम आज आपका एक ऐसे वकील के बारे में परिचय करवाएंगे जो पिछले कई सालों से हिंदी में ही वकालत कर रहे हैं. वैसे तो कोर्ट के सारे कामकाज अंग्रेजी भाषा में ही निपटाए जाते हैं, लेकिन जिला एवं सत्र न्यायलय मंडी में वकालत कर रहे अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा हिमाचल प्रदेश के पहले वकील हैं, जो न्यायलय का सारा कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं. यह अपनी मातृभाषा के प्रति उनका जज्बा ही है कि कई परेशानियों से गुजरने के बाद भी अपनी वकालत का तमाम कार्य हिंदी भाषा में ही करते आ रहे हैं.

अधिवक्ता नरेंद्र पिछले 20 सालों से अदालतों में अपने मामलों की पैरवी हिंदी में करते आ रहे हैं. नरेन्द्र शर्मा के हिंदी में लिखे गए दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी अदालतों में मान्य किया जाता है. यहां तक कि वह दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी हिंदी में ही बनाते हैं. हिमाचल में मंडी जिला के सुन्दरनगर निवासी नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि उन्होंने हिंदी में वकालत साल 1999 में सुंदरनगर न्यायलय के सब जज दुर्गा सिंह खेनल की प्रेरणा से शुरू की थी.

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नरेंद्र शर्मा ने कहा कि जज दुर्गा सिंह खेनल ने तबादले के दौरान उनसे कहा था कि हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ-साथ संविधान के अनुसार राष्ट्रिय भाषा भी है, इसलिए हिंदी में वकालत जारी रखना. नरेन्द्र शर्मा के मुताबिक हिंदी में वकालत करने पर उन्हे कई कठिनाइयां आई, लेकिन उन्होंने इनका सामना करते हुए हिंदी में वकालत का कार्य जारी रखा. वह जिला स्तर तक के कोर्ट का पूरा कार्य वाद, प्रतिवाद, पुनरावेदन, पुर्ननिरिक्षण याचिकाएं हिंदी में ही दायर करते हैं.

नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि भारतीय संविधान की धारा 343 के तहत देवनागरी (हिंदी) को राष्ट्रिय भाषा का दर्जा दिया गया है. पठित राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा-7 के तहत हिंदी भाषी राज्यों उतर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के उच्च न्यायलयों में हिंदी को मान्य कर लागू कर दिया गया है, लेकिन हिंदी भाषा को हिमाचल प्रदेश से अभी तक उच्च न्यायलय में मान्यता नहीं मिल सकी है.

नरेंद्र शर्मा ने कहा कि प्रदेश के उच्च न्यायलय में भी हिंदी को मान्यता दी जानी चाहिए. नरेन्द्र शर्मा के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय देने के निर्देश हैं. भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी भाषा को राष्ट्रपति की मंजूरी से मान्यता दिलवाई है, लेकिन हिन्दी भाषी राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी की मान्यता को लेकर आज तक कोई पहल नहीं की है.

मंडी: हिंदी हमारी 'राजभाषा' है. हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. हिंदी विश्व की सबसे प्राचीन और सरल भाषा है. हिंदी भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में बोली जाती है. हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है.

हिंदी दिवस पर हम आज आपका एक ऐसे वकील के बारे में परिचय करवाएंगे जो पिछले कई सालों से हिंदी में ही वकालत कर रहे हैं. वैसे तो कोर्ट के सारे कामकाज अंग्रेजी भाषा में ही निपटाए जाते हैं, लेकिन जिला एवं सत्र न्यायलय मंडी में वकालत कर रहे अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा हिमाचल प्रदेश के पहले वकील हैं, जो न्यायलय का सारा कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं. यह अपनी मातृभाषा के प्रति उनका जज्बा ही है कि कई परेशानियों से गुजरने के बाद भी अपनी वकालत का तमाम कार्य हिंदी भाषा में ही करते आ रहे हैं.

अधिवक्ता नरेंद्र पिछले 20 सालों से अदालतों में अपने मामलों की पैरवी हिंदी में करते आ रहे हैं. नरेन्द्र शर्मा के हिंदी में लिखे गए दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी अदालतों में मान्य किया जाता है. यहां तक कि वह दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी हिंदी में ही बनाते हैं. हिमाचल में मंडी जिला के सुन्दरनगर निवासी नरेन्द्र शर्मा ने कहा कि उन्होंने हिंदी में वकालत साल 1999 में सुंदरनगर न्यायलय के सब जज दुर्गा सिंह खेनल की प्रेरणा से शुरू की थी.

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नरेंद्र शर्मा ने कहा कि जज दुर्गा सिंह खेनल ने तबादले के दौरान उनसे कहा था कि हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ-साथ संविधान के अनुसार राष्ट्रिय भाषा भी है, इसलिए हिंदी में वकालत जारी रखना. नरेन्द्र शर्मा के मुताबिक हिंदी में वकालत करने पर उन्हे कई कठिनाइयां आई, लेकिन उन्होंने इनका सामना करते हुए हिंदी में वकालत का कार्य जारी रखा. वह जिला स्तर तक के कोर्ट का पूरा कार्य वाद, प्रतिवाद, पुनरावेदन, पुर्ननिरिक्षण याचिकाएं हिंदी में ही दायर करते हैं.

नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि भारतीय संविधान की धारा 343 के तहत देवनागरी (हिंदी) को राष्ट्रिय भाषा का दर्जा दिया गया है. पठित राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा-7 के तहत हिंदी भाषी राज्यों उतर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के उच्च न्यायलयों में हिंदी को मान्य कर लागू कर दिया गया है, लेकिन हिंदी भाषा को हिमाचल प्रदेश से अभी तक उच्च न्यायलय में मान्यता नहीं मिल सकी है.

नरेंद्र शर्मा ने कहा कि प्रदेश के उच्च न्यायलय में भी हिंदी को मान्यता दी जानी चाहिए. नरेन्द्र शर्मा के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय देने के निर्देश हैं. भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी भाषा को राष्ट्रपति की मंजूरी से मान्यता दिलवाई है, लेकिन हिन्दी भाषी राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी की मान्यता को लेकर आज तक कोई पहल नहीं की है.

Intro:मंडी। जिला एवं सत्र न्यायलय मंडी में कार्यरत अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा हिमाचल प्रदेश के पहले वकील हैं, जो न्यायलय का सारा कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं। यह अपनी मातृभाषा के प्रति उनका जज्बा ही है कि वह अनेकों परेशानियों से गुजरने के बाद भी अपनी वकालत का तमाम कार्य हिंदी भाषा में ही करते आ रहे हैं। न्यायलयों में हालांकि सारा कार्य अंग्रेजी भाषा में ही होता है, लेकिन नरेन्द्र शर्मा के हिंदी में लिखे गए दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी अदालतों में मान्य किया जाता है।




Body:हिमाचल प्रदेश के इकलौते अधिवक्ता नरेंद्र पिछले 20 सालों से अदालतों में अपने मामलों की पैरवी हिंदी में करते आ रहे हैं। यहां तक कि वह दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी हिंदी में ही बनाते हैं। सुन्दरनगर निवासी नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि देवनागरी (हिंदी) में विधि व्यवसाय उन्होने वकालत की पढाई के बाद वर्ष 1999 में सुंदरनगर न्यायलय के सब जज दुर्गा सिंह खेनल के कार्यकाल में उनकी प्रेरणा से शुरू किया था। वे बताते हैं कि जब जज साहब की बदली हुई थी तो उन्होंंने कहा था कि हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ-साथ संविधान के अनुसार राष्ट्रिय भाषा भी है, इसलिए हिंदी में विधि व्यवसाय जारी रखना। नरेन्द्र शर्मा के मुताबिक हिंदी में वकालत करने पर उन्हे कई कठिनाइयां आई और हिंदी के विरोध में कई स्वर भी उठे, लेकिन उन्होंंने इनका सामना करते हुए हिंदी में वकालत का कार्य जारी रखा। वह जिला स्तर तक के कोर्ट का पूरा कार्य वाद, प्रतिवाद, पुनरावेदन, पुर्ननिरिक्षण आदी का कार्य हिंदी में ही करते हैं। नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि भारतीय संविधान की धारा 343 के तहत देवनागरी (हिंदी) को राष्ट्रिय भाषा का दर्जा दिया गया है। पठित राजभाषा अधिनियम 1963 की धाराा 7 के तहत हिंदी भाषी राज्यों उतर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के उच्च न्यायलयों में हिंदी को मान्य कर लागू कर दिया गया है, लेकिन हिंदी भाषा राज्य हिमाचल प्रदेश ने अभी तक उच्च न्यायलय में मान्यता नहीं मिल सकी है। प्रदेश के उच्च न्यायलय में भी हिंदी को मान्यता दी जानी चाहिए। नरेन्द्र शर्मा के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय करने के निर्देश हैं। भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी भाषा को राष्ट्रपति की मंजूरी से मान्यता दिलवाई है। लेकिन हिन्दी भाषी राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी की मान्यता को लेकर आज तक कोई पहल नहीं की है। 




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