मंडी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी ने महामारी की अनिश्चितताओं के बावजूद शोध और इनोवेशन की उपलब्धियों के साथ एक और सफल वर्ष पूरा किया. महामारी की अनदेखी चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थान द्वारा इस वर्ष उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों पर बोलते हुए आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. अजीत के. चतुर्वेदी ने कहा कि 2020 ने हमारे समक्ष कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं और महामारी के बावजूद आईआईटी मंडी ने शिक्षा, नई-नई खोजों, अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों, छात्रों को रोजगार और व्यवसाय इन्क्युबेशन के क्षेत्रों में प्रगति की है. इस प्रकार संस्थान ने एक आत्मनिर्भर और स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कई उत्पादों का विकास किया है.
कोविड-19 में डिजार्डर्ड प्रोटीनों का तुलनात्मक शोध डॉ. रजनीश गिरी, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी ने अपनी शोध टीम के साथ कम्प्यूटेशनल टूल की मदद से वायरल प्रोटियम के महत्वपूर्ण हिस्से- इंट्रिसिकली डिजार्डर्ड प्रोटीन रीजंस (आईडीपीआर) को समझने का प्रयास किया.
इस टीम ने कम्प्यूटेशन के दृष्टिकोण से एक पूरक सेट का उपयोग कर सार्स-कोव-2 प्रोटियोम के डिजार्डर्ड साइड का परीक्षण किया, ताकि इसके प्रोटीन में आईडीपीआर की व्यापकता का पता चले और उनकी डिजार्डर्ड प्रक्रियाओं के साथ-साथ उनके डिसऑर्डर-आधारित बाइंडिंग मोटिफ (जिन्हें आण्विक पहचान लक्षण कहते) पर प्रकाश डाला जा सके.
इस शोध के परिणाम विशिष्ट जर्नल- सेल्युलर एण्ड मोलेक्युलर लाइफ साइंसेज में प्रकाशित हुए हैं. भारत में कोविड-19 फैलाव पर सोशल नेटवर्क के जरिए नजर रखने पर केंद्रित शोध डॉ. सरिता आजाद, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी ने कोविड-19 के फैलाव और इसके विश्व स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक आने के रास्ते का पता लगाया और भारत में बीमारी के फैलाव के लिए जिम्मेदार सुपरस्प्रेडरों की पहचान की. इस बारे में पिछले कुछ महीनों में कोविड-19 पर कई आलेख प्रकाशित किए गए लेकिन इस शोध टीम ने सोशल नेटवर्क के विश्लेषण से कोविड-19 के फैलाव का पहलू सामने रखा जो अब तक नहीं देखा गया है.
संस्थान ने लाल बहादुर शास्त्री सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल से सहमति करार पर हस्ताक्षर किए और रियल टाइम पॉलिमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) प्रयोगशाला बनाने में सहयोग दिया, ताकि इस क्षेत्र में कोरोना वायरस के निदान में तेजी आए.
प्रति दिन 1000 सैम्पल तक के विश्लेषण की क्षमता प्रदान कर प्राधिकरणों की मदद की
इस प्रयोगशाला ने कोविड-19 का पता लगाने के लिए परीक्षण प्रक्रिया तेज कर प्रति दिन 1000 सैम्पल तक के विश्लेषण की क्षमता प्रदान कर प्राधिकरणों की मदद की. बेकार पीईटी बोतलों से अधिक सक्षम फेस मास्क का विकास डॉ. सुमित सिन्हा रे, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने अपने शोध विद्वानों के साथ एक स्वदेशी तकनीक का विकास किया जिसकी मदद से बेकार 'पीईटी बोतलों' से अधिक सक्षम फेस मास्क बनेंगे.
इसके लिए शोधकर्ताओं ने बेकार प्लास्टिक बोतलों से केवल एक बारीक परत का नैनो-नॉनवोवन मेम्ब्रन का विकास किया जोकि कणों को फिल्टर करने में एन95 रेस्पिरेटर और मेडिकल मास्क के समतुल्य है. इस प्रोडक्ट का विकास और परीक्षण आईआईटी मंडी के मल्टीस्केल फैब्रिकेशन एंड नैनो टेक्नोलॉजी लेबोरेटरी में किया गया है.
वाई-फाई से चलने वाला वेंटीलेटर
वाई-फाई से चलने वाला वेंटीलेटर डॉ. अपरान गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने अपने शोध विद्वानों के साथ केवल 4000रुपये की लागत वाला स्मार्ट वेंटिलेटर विकसित किया. यह प्रोटोटाइप एक मैकेनाइज्ड आर्टिफिशियल मैनुअल ब्रीदिंग यूनिट (एएमबीयू) बैग है जिसमें सांस की दर और मरीज के फेफड़ों में पहुंचती हवा की मात्रा नियंत्रित करने के विकल्प हैं.
वेंटीलेटर मोबाइल एप्लिकेशन से भी नियंत्रित
प्रोडक्ट की विशेषता यह है कि यह मैनुअल उपयोग के अलावा वाईफाई के जरिए मोबाइल एप्लिकेशन से भी नियंत्रित किया जा सकता है. आईआईटी मंडी ने इसके लिए एक स्मार्टफोन एप्लिकेशन आईआईटी मंडी वेंटीलेटर भी विकसित किया है. यूवी-सी डिसइन्फेक्शन बॉक्स डॉ. हिमांशु पाठक और डॉ. सनी जफर, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने 35,000 की लागत वाला एक अल्ट्रावायलेट-सी (यूवी-सी) पोर्टेबल डिसइन्फेक्शन बॉक्स विकसित किया है. यह प्रकाश आधारित है और धातु, प्लास्टिक और कार्डबोर्ड से तैयार चीजों जैसे वॉलेट, चाबियां, चश्मा, बैग, कूरियर पैकेज और पार्सल ऐसे अन्य उत्पादों को असंक्रमित कर कोविड-19 के जोखिम की रोकथाम करेगा.
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