करसोग: सरकार भले ही किसानों की आर्थिक हालत को पटरी पर लाने की कई दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. ऐसी ही सरकार की रेशम कीट योजना का है. इसमें किसानों को रेशम तैयार करने के लिए कीट तो दिए गए, लेकिन जब कड़ी मेहनत से कीटों को पत्ते खिलाकर रेशम तैयार किया तो किसानों को इसके सही रेट नहीं मिल रहा है. करसोग में इस बार किसानों से 500 से 600 रुपये किलो रेशम खरीदा गया. किसानों ने बताया मेहनत दिहाड़ी भी कम बैठ रही हैं. रेशम कीट पालकों को शेड की भी सुविधा नहीं मिल रही है.
छोड़ने का मन बनाया
सरकार की इस बेरुखी से निराश कुछ किसानों ने 15 से 20 साल देने के के बाद इसे छोड़ने का मन बना लिया हैं. किसानों का कहना है कि अगर इस कारोबार को बचाना है तो रेशम का रेट 1200 से 1300 रुपये प्रति किलो मिलना चाहिए, ताकि कारोबार से जुड़े परिवारों की रोजी-रोटी चल सके. इस बारे में सेरिकलचर निरीक्षक जगदीश ने बताया कोरोना की वजह से बाहरी राज्यों से व्यापारी नहीं आए. इस कारण किसानों को अच्छे रेट नहीं मिल रहे.
किसानों को रेशम तैयार करने में भारी मेहनत करनी पड़ती हैं. यहां पांच से छह लोग पूरा महीना कठिन परिश्रम करने के बाद 6 से 7 किलों रेशम तैयार करते हैं. जिसे बेचने के बाद किसानों को मुश्किल से 3500 से 4200 रुपये मिलते हैं. ऐसे में रेशम तैयार करने वाले किसान को दिहाड़ी का पैसा भी नसीब नहीं हो रहा.
रेशम कीट योजना के तहत किसानों को पालने के लिए कीट दिए जाते हैं. किसान पत्ते खिलाकर रेशम तैयार कर फिर इसे संबंधित विभाग व्यापारियों को बेचता हैं. कीट पालक किसानों का कहना है कि रेशम को तैयार करने के लिए उन्हें काफी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती हैं. इतनी मेहनत करने के बावजूद सही दाम नहीं मिल रहे.
दामों से संतुष्ट नहीं किसान
कीट पालक लालचंद ने बताया रेशम तैयार करने में बहुत मेहनत लगती, लेकिन इस हिसाब से रेट नहीं मिल रहे. जिससे इस काम को करने से किसानों का फायदा नहीं हो रहा हैं. उन्होंने कहा कि रेशम को तैयार करने में करीब एक महीने का समय लगता है. जब बेचने की बारी आती तो 500 या 600 रुपये किलो से ज्यादा कभी रेट नहीं मिलता. इससे किसानों की दिहाड़ी 50 से 60 रुपये बैठ रही हैं.
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