शिमला: कोरोना वायरस के कारण देश भर में 3 मई तक लॉकडाउन लागू है जिसके चलते लाखों किसानों और मजदूरों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत ने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा से खास बातचीत की.
सवाल: शहर मजदूरों को शरण नहीं दे पाए, अब मजदूर हजारों किलो मीटर पैदल चलने को मजबूर हो गए गए हैं ?
देविंदर शर्मा: ये वो लोग हैं जो खेती से निकाले गए हैं. शहरों से उन्हें उम्मीद थी कि यहां उनका जीवन बदल जाएगा, लेकिन महामारी के फैलते ही शहरों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. ऐसे में मजदूरों को दाद देनी होगी. उन्होंने कई सौ किलोमीटर दूर पैदल चलकर ही गांव पहुंचने का निर्णय लिया. कई लोगों को गांव पहुंचने में 11-11 दिन भी लग गए. उन्हें ये मालूम है कि उनका असली आश्रय उनका गांव ही है. 40-50 सालों से ये मजदूर पलायन कर शहरों की ओर जा रहे हैं. अभी भी अगर इन मजदूरों को शहरों ने स्वीकार्य नहीं किया है तो हमें ये सोचना होगा कि क्या ये मजदूर कभी शहरी समाज का हिस्सा नहीं बन पाएगा.
सवाल: लाखों मजदूर आज भी शहरों को अपना घर नहीं मान पाए ?
देविंदर शर्मा: महामारी के समय देश के सामने मजदूरों के पलायन की जो तस्वीर आई है इससे समझ आया है कि ये एग्रीकल्चर रिफ्यूजी थे. हमने ऐसे आर्थिक हालात बनाए जिससे उन्हें मजबूरन खेती छोड़नी पड़ी. यही कारण है कि मजदूरों के पलायन का दृश्य पूरा देश देख रहा है.
सवाल: हालातों को देखकर नीति निर्माताओं को समझ आ गया होगा कि कृषि क्षेत्र को बचाकर रखना कितना जरूरी है?
देविंदर शर्मा: लॉकडाउन के समय पूरी दुनिया को पता चल गया है कि कृषि क्षेत्र ही संकट के समय में लाइफलाइन साबित हुआ है. उद्योगों में उत्पादन बंद हो गया है. सिर्फ एग्रीकल्चर ही लाइफलाइन बन कर उभरा है, क्योंकि हर इंसान को तीन समय का खाना चाहिए. एग्रीकल्चर ने ही पूरे सिस्टम को जिंदा रखा है, लेकिन अब भी नीति निर्माण के समय एग्रीकल्चर को प्राथमिकता दी जाएगी ये बड़ा सवाल है.
सवाल: कोरोना संकट के बीच देश के कई राज्यों में गेहूं की फसल पक कर तैयार है. फसल की कटाई के लिए लाखों मजदूरों की जरूरत होती है. इसमे क्या बदलाव देख रहे हैं ?
देविंदर शर्मा: कोरोना के चलते रबी का सीजन क्रैश कर गया है. लॉकडाउन-1 के दौरान किसानों को भारी नुकसान हुआ है फल, सब्जियां, दूध खराब हो गए. बहुत सी जगहों पर किसानों ने टमाटर फेंक दिए, मटर को मंडी में छोड़ दिया, गोभी के खेते में किसानों ने ट्रैक्टर चला दिए, लेकिन लॉकडाउन-2 में 20 अप्रैल से सरकार ने एग्रीकल्चर, हॉर्टीकल्चर, फिशरीज को लॉकडाउन से बाहर रखा है. रबी के इस सीजन में 106 मीलियन टन गेंहू का हार्वेस्ट होना है. इसमे 65 प्रतिशत हार्वेस्ट अभी तक हो चुका है. पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में हार्वेस्टिंग होनी हैं.
अभी तक 135 लाख टन अन्नाज के प्रीक्योरमेंट की उम्मीदें. हरियाणा में 90 लाख टन प्रीक्योरमेंट की उम्मीद है. इसका एक ही संदेश है कि इस समय एग्रीकल्चर का कितना अहम रोल है. इसी वजह से हम बीपीएल परिवारों को 3 महीने तक फ्री राशन दे रहे हैं. अगर स्थिति एक साल तक ऐसी ही स्थिति रहती है तो हमारे किसान एक साल तक पूरे देश को खिला सकते हैं, लेकिन किसानों की आज क्या हालत है. ये सोचने की बात है.
सवाल: शहरों में आने वाले प्रवासी छोटे किसान थे, क्या संभावना है कि ये फिर लौट कर वापस आएंगे ?
देविंदर शर्मा: ये हमारे लिए एक अवसर है. शहरों से 90 प्रतिशत प्रवासी घर लौट चुके हैं. रिपोर्ट के मुताबिक छह महीनों तक ये वापस लौट कर नहीं आएंगे. ये घर पर गुजारा करने का मन बनाकर गए हैं. सरकार को इनके लिए नीति बनानी चाहिए, ताकि ये मजदूर वापस शहरों की ओर भाग कर ना आएं.
सवाल: वापस लौटे हुए मजदूरों को सरकार से किस तरह की मदद चाहिए होगी ?
देविंदर शर्मा: आर्थिक ढांचे को सुधारने की बहुत जरूरत हैं. सवाल यह है कि इन्हें क्या सुविधाएं चाहिए. हमने इतने दशकों से कृषि क्षेत्र की अनदेखी की है. इसी कारण ये शहरों की ओर आए हैं. आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक 2011-2012 और 2017-2018 में एग्रीकल्चर में पब्लिक सेक्टर इन्वेस्टमेंट जीडीपी की सिर्फ 0.4 प्रतिशत हुई है. इससे आप क्या चमत्कार की उम्मीद कर सकते हैं. सरकारों को भी मानना चाहिए की हमारे देश की जान सिर्फ खेती है.
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