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SPECIAL:जानिए वरिष्ठता के बावजूद बूढ़ा बिंगल देवता जलेब में क्यों नहीं करते शिरकत - मंडी न्यूड

ऐसे ही वरिष्ठ देवता बूढ़ा बिंगल की कहानी ईटीवी भारत आपको बता रहा है. देवता बूढ़ा बिंगल को मंडी नगर के आराध्य देवता बाबा भूतनाथ का अवतार माना जाता है. इनका मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर रुंझ नामक स्थान पर है.

buda bingal devta in international shivratri festival
बूढ़ा बिंगल देवता
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Published : Feb 25, 2020, 5:57 PM IST

मंडी: देव और मानस के मिलन अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देव आस्था के अनूठे तौर तरीके देखने को मिलते हैं. महोत्सव की शाही जलेब विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है. इस शाही जलेब का इतिहास बहुत ही पुराना है. रियासतों के दौर से चले आ रहे शिवरात्रि महोत्सव में जलेब में चलने वाले देवताओं का क्रम सदियों पहले ही तय हो गया था.

इसी क्रम में ही देवी देवता जलेब में चलते है. यह पूर्व निर्धारित होता है कि जलेब में कौन से देवता राज देवता माधव राय की पालकी से आगे चलेंगे और कौन देवता पीछे चलेंगे. कुछ ऐसे देवी-देवता भी हैं जो खुद शाही जलेब में शिरकत नहीं करते, लेकिन उनके वजीर जलेब में जाते हैं.

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ऐसे ही वरिष्ठ देवता बूढ़ा बिंगल की कहानी ईटीवी भारत आपको बता रहा है. देवता बूढ़ा बिंगल को मंडी नगर के आराध्य देवता बाबा भूतनाथ का अवतार माना जाता है. इनका मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर रुंझ नामक स्थान पर है. देवता के पुजारी सचिन ने कहा कि देवता के भंडार में आज भी ऐसे प्रमाण है जिनसे यह साबित होता है कि देवता को सबसे पहला न्योता मंडी रियासत में शिवरात्रि महोत्सव के लिए मिला था. ये न्योता राजा की तरफ से उन्हें दिया गया था.

इसके बाद देवता शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने के लिए मंडी पहुंचे, लेकिन देवता नरोल हैं. नरोल का मतलब है कि देवता शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं और अपनी वरिष्ठता के आधार पर राज महल में वास भी करते हैं, लेकिन शाही जलेब में हिस्सा नहीं लेते. देवता अपने मूल स्थान से भी साल में एक बार ही बाहर निकलते हैं. इस कारण इन्हें नरोल देवता माना जाता है, जो शिवरात्रि में राज महल में वास करते हैं. देवता के वजीर माने जाने वाले देव झाथी वीर जलेब में उनकी जगह चलते हैं.

देवता के पुजारी ने कहा कि कुछ साल पहले ही देवता ने अपने मूल स्थान पर अपनी ही एक पवित्र वाटिका को खंडित कर दिया था. इस वाटिका को देवता के नाम से ही जाना जाता था, लेकिन कुछ लोगों ने यहां पर इसे अपवित्र कर दिया. इसके बाद देवता ने नाराज होकर रातों-रात ही इसे ध्वस्त कर दिया था. कुछ ही घंटों में यह वाटिका सैकड़ों फुट जमीन में धंस गई थी, जिसके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव : सदियों से जंजीरों में जकड़ी हुई हैं सराज की ये देवी

मंडी: देव और मानस के मिलन अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देव आस्था के अनूठे तौर तरीके देखने को मिलते हैं. महोत्सव की शाही जलेब विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है. इस शाही जलेब का इतिहास बहुत ही पुराना है. रियासतों के दौर से चले आ रहे शिवरात्रि महोत्सव में जलेब में चलने वाले देवताओं का क्रम सदियों पहले ही तय हो गया था.

इसी क्रम में ही देवी देवता जलेब में चलते है. यह पूर्व निर्धारित होता है कि जलेब में कौन से देवता राज देवता माधव राय की पालकी से आगे चलेंगे और कौन देवता पीछे चलेंगे. कुछ ऐसे देवी-देवता भी हैं जो खुद शाही जलेब में शिरकत नहीं करते, लेकिन उनके वजीर जलेब में जाते हैं.

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ऐसे ही वरिष्ठ देवता बूढ़ा बिंगल की कहानी ईटीवी भारत आपको बता रहा है. देवता बूढ़ा बिंगल को मंडी नगर के आराध्य देवता बाबा भूतनाथ का अवतार माना जाता है. इनका मंदिर मंडी जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर रुंझ नामक स्थान पर है. देवता के पुजारी सचिन ने कहा कि देवता के भंडार में आज भी ऐसे प्रमाण है जिनसे यह साबित होता है कि देवता को सबसे पहला न्योता मंडी रियासत में शिवरात्रि महोत्सव के लिए मिला था. ये न्योता राजा की तरफ से उन्हें दिया गया था.

इसके बाद देवता शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने के लिए मंडी पहुंचे, लेकिन देवता नरोल हैं. नरोल का मतलब है कि देवता शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं और अपनी वरिष्ठता के आधार पर राज महल में वास भी करते हैं, लेकिन शाही जलेब में हिस्सा नहीं लेते. देवता अपने मूल स्थान से भी साल में एक बार ही बाहर निकलते हैं. इस कारण इन्हें नरोल देवता माना जाता है, जो शिवरात्रि में राज महल में वास करते हैं. देवता के वजीर माने जाने वाले देव झाथी वीर जलेब में उनकी जगह चलते हैं.

देवता के पुजारी ने कहा कि कुछ साल पहले ही देवता ने अपने मूल स्थान पर अपनी ही एक पवित्र वाटिका को खंडित कर दिया था. इस वाटिका को देवता के नाम से ही जाना जाता था, लेकिन कुछ लोगों ने यहां पर इसे अपवित्र कर दिया. इसके बाद देवता ने नाराज होकर रातों-रात ही इसे ध्वस्त कर दिया था. कुछ ही घंटों में यह वाटिका सैकड़ों फुट जमीन में धंस गई थी, जिसके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं.

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