ETV Bharat / state

यहां आज भी पूजनीय है गौधन, माल पर्व पर फूलमालाएं डाल कर की गई पूजा - करसोग समाचार

करसोग में आज भी गौधन को पूजनीय माना जाता है. पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे माल उत्सव को ग्रामीण अब भी पहले की तरह ही मनाते है. ग्रामीणों ने सुबह सुबह उठकर गौधन को फूलमालाएं डालकर सजाया और माथे पर तिलक लगाकर उनकी विधिपुरक पूजा की गई.

माल उत्सव
माल उत्सव
author img

By

Published : Oct 31, 2020, 5:41 PM IST

करसोग/मंडी: विज्ञान के इस युग ने भले ही कई समृद्ध परंपराएं आधुनिकता की बलि चढ़ी हों, लेकिन करसोग में आज भी गौधन को पूजनीय माना जाता है. पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे माल उत्सव को ग्रामीण अब भी पहले की तरह ही मनाते हैं. करसोग में शनिवार को माल पर्व उत्साह के साथ मनाया गया.

ग्रामीणों ने सुबह सुबह उठकर गौधन को फूलमालाएं डालकर सजाया और माथे पर तिलक लगाकर उनकी विधिपुरक पूजा की गई. उसके बाद घर पर बने कई तरह के पकवान सबसे पहले गौधन को परोसे गए. इस दौरान महिलाओं ने पशुओं के लिए पारंपरिक लोक गीत भी गाए.

वीडियो

माल की रात गौशाला के बाहर बने आंगन को पहले रंगोली से सजाया गया. माल पर्व की सुबह सबसे पहले गौधन को तरह तरह के रंग लगाकर सजाया गया. गौधन को फूलमाला डालकर माथे पर तिलक लगाया गया, जिसके बाद सुबह-सुबह हाथों में मशालें लेकर पशुओं की खरीफ फसल के बाद खाली हुए खेतों में छोड़ा गया.

दोपहर से पहले महूर्त के मुताबिक पशुओं को घर लाया गया. यहां घर की महिलाएं गौशाला के बाहर हाथों में पूजा की थाली लिए खड़ी थी और शास्त्रों के मुताबिक गौधन की पूजा की गई. इसके तुरंत बाद ही घर में नई फसल के तैयार पकवान गौधन को परोसे गए और सुख समृद्धि की कामना की गई.

माल पर्व के साथ ही लोग सर्द ऋतु का भी स्वागत करते हैं. विद्ववानों के मुताबिक माल का वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही तरह का महत्व है. सदियों से चली आ रही इस समृद्ध परंपरा को आज भी ग्रामीण उत्साह के साथ निभाते हैं.

समाजसेवी नेकराम शर्मा का कहना है कि किसान और पशुधन का आपस में गहरा संबंध है. ग्रामीण क्षेत्रों में बिना पशुओं के खेतीबाड़ी संभव नहीं है. आज भी करसोग में पशुओं का त्योहार उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में माल भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि माल के दिन गौधन को नया अनाज खिलाया जाता है और महिलाएं इस अवसर पर पारंपरिक लोकगीत गाकर माल उत्सव को मनाती हैं.

पढ़ें: अखिल गुप्ता बने सरकाघाट युवा कांग्रेस के अध्यक्ष, लोगों का किया धन्यावाद

करसोग/मंडी: विज्ञान के इस युग ने भले ही कई समृद्ध परंपराएं आधुनिकता की बलि चढ़ी हों, लेकिन करसोग में आज भी गौधन को पूजनीय माना जाता है. पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे माल उत्सव को ग्रामीण अब भी पहले की तरह ही मनाते हैं. करसोग में शनिवार को माल पर्व उत्साह के साथ मनाया गया.

ग्रामीणों ने सुबह सुबह उठकर गौधन को फूलमालाएं डालकर सजाया और माथे पर तिलक लगाकर उनकी विधिपुरक पूजा की गई. उसके बाद घर पर बने कई तरह के पकवान सबसे पहले गौधन को परोसे गए. इस दौरान महिलाओं ने पशुओं के लिए पारंपरिक लोक गीत भी गाए.

वीडियो

माल की रात गौशाला के बाहर बने आंगन को पहले रंगोली से सजाया गया. माल पर्व की सुबह सबसे पहले गौधन को तरह तरह के रंग लगाकर सजाया गया. गौधन को फूलमाला डालकर माथे पर तिलक लगाया गया, जिसके बाद सुबह-सुबह हाथों में मशालें लेकर पशुओं की खरीफ फसल के बाद खाली हुए खेतों में छोड़ा गया.

दोपहर से पहले महूर्त के मुताबिक पशुओं को घर लाया गया. यहां घर की महिलाएं गौशाला के बाहर हाथों में पूजा की थाली लिए खड़ी थी और शास्त्रों के मुताबिक गौधन की पूजा की गई. इसके तुरंत बाद ही घर में नई फसल के तैयार पकवान गौधन को परोसे गए और सुख समृद्धि की कामना की गई.

माल पर्व के साथ ही लोग सर्द ऋतु का भी स्वागत करते हैं. विद्ववानों के मुताबिक माल का वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों ही तरह का महत्व है. सदियों से चली आ रही इस समृद्ध परंपरा को आज भी ग्रामीण उत्साह के साथ निभाते हैं.

समाजसेवी नेकराम शर्मा का कहना है कि किसान और पशुधन का आपस में गहरा संबंध है. ग्रामीण क्षेत्रों में बिना पशुओं के खेतीबाड़ी संभव नहीं है. आज भी करसोग में पशुओं का त्योहार उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में माल भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि माल के दिन गौधन को नया अनाज खिलाया जाता है और महिलाएं इस अवसर पर पारंपरिक लोकगीत गाकर माल उत्सव को मनाती हैं.

पढ़ें: अखिल गुप्ता बने सरकाघाट युवा कांग्रेस के अध्यक्ष, लोगों का किया धन्यावाद

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.