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अद्भुत हिमाचल: इंसान नहीं चींटियों ने बनाया था इस मंदिर का नक्शा! यहीं टूटा था लक्ष्मण सेन का घमंड

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Published : Dec 27, 2019, 9:22 AM IST

Updated : Dec 27, 2019, 10:42 AM IST

अद्भुत हिमाचल: ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज 'अद्भुत हिमाचल' में हम आपको एक ऐसे ही अद्भुत मंदिर के बारे में बताएंगे जिसका नक्शा किसी इंसान ने नहीं बल्कि चीटिंयों की डोर ने तैयार किया था. इसलिए इस मंदिर का नाम चिंडी मंदिर पड़ा.

chindi temple of karsog
special story on chindi temple

करसोग: राजधानी शिमला से लगभग 90 किलोमीटर की दुरी पर चिंडी गांव में मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है. यहां माता को चिंडी माता के नाम से पुकारते हैं. मंदिर का नक्शा किसी इंसान ने नहीं बल्कि चीटिंयों की डोर ने तैयार किया था. इसलिए इस मंदिर का नाम चिंडी मंदिर पड़ा.

करसोग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चिंडी माता का मंदिर क्षेत्र में रहने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है. यहां माता के दर्शन करने के लिए दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं.चिंडी माता मंदिर में अति प्राचीन अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है. यह मूर्ति पत्थर की बनी हुई है.

मंदिर में भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है. इसके अलावा मंदिर परिसर में भंडार कक्ष भी है, जिसमें चिंडी माता के कीमती वस्त्र और सभी श्रृंगार प्रसाधन रखे जाते हैं. चिंडी माता में लकड़ी पर सुंदर नक्काशी की गई है, जिससे यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है.

वीडियो रिपोर्ट.

कन्या रूप में प्रकट हुई थी माता

चिंडी माता मंदिर की सदियों से लेकर चली आ रही मान्यताएं आज भी बरकरार है. मान्यता है कि यहां माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी और माता ने मंदिर का निर्माण खुद चींटियों की डोर बनाकर किया था. मंदिर के साथ बने तालाब और भंडार का नक्शा भी चींटियों ने ही बनाया था.

नक्शे की जानकारी माता ने स्थानीय पंडित को स्वप्न में आकर दी थी. उसके बाद नक्शे को देखकर मंदिर बनाया गया था. कहते हैं कि चिंडी माता अपने क्षेत्र को छोड़कर कभी बाहर नहीं गई. पुरौणिक कथाओं के अनुसार एक बार सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन ने चिंडी माता को सुंदरनगर बुलाने की जिद्द की थी. कारदारों ने जैसे ही माता को चौखट से बाहर निकाला.

chindi temple of karsog
चिंडी माता का मंदिर.

उसी समय माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई. लेकिन इसके बावजूद भी राजा के आदेश के अनुसार माता को ले जाने की कोशिश की गई. माता की इच्छा के बिना उन्हें ले जाने का खामियाजा राजा को भुगतना पड़ा. राजा को माता के रौद्र रूप का सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि राजा लक्ष्मण सेन अपनी गलती का पछतावा करने खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचा था.

हर मनोकामना होती है पूरी

चिंडी माता अपनी मर्जी से हर तीसरे साल बाद मंदिर से बाहर निकलती हैं. चिंडी माता का मेला चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है. उस दौरान माता तीन दिन के लिए मंदिर से बाहर आती हैं. जब भी माता मंदिर से बाहर आती हैं, करसोग सहित दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं.श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता के मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर निसंतान दम्पत्तियों को संतान की प्राप्ति जरूर होती है. गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति भी माता के मंदिर में स्वस्थ होने की कामना करने के लिए पहुंचते हैं.

chindi temple of karsog
मंदिर के साथ बना तालाब.

कैसे पहुंचें चिंडी माता के मंदिर

यह प्रसिद्द धार्मिक स्थल शिमला मार्ग पर करसोग से 13 किलोमीटर दूर है. शिमला या करसोग से चिंडी माता के मंदिर पहुंचने के लिए आसानी से वाहनों की सुविधा मिल जाती है. चिंडी माता मंदिर से नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला में है, जो छोटी लाइन से कालका से जुड़ा हुआ है. कालका के लिए आसानी से ट्रेन से या बस से पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से भी आसानी से शिमला होते हुए करसोग पहुंचा जा सकता है.

ये भी पढे़ं: अद्भुत हिमाचल: यहां विराजमान है पत्थरों से बनाई गई पांडवों की पांच मूर्तियां

करसोग: राजधानी शिमला से लगभग 90 किलोमीटर की दुरी पर चिंडी गांव में मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है. यहां माता को चिंडी माता के नाम से पुकारते हैं. मंदिर का नक्शा किसी इंसान ने नहीं बल्कि चीटिंयों की डोर ने तैयार किया था. इसलिए इस मंदिर का नाम चिंडी मंदिर पड़ा.

करसोग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चिंडी माता का मंदिर क्षेत्र में रहने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है. यहां माता के दर्शन करने के लिए दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं.चिंडी माता मंदिर में अति प्राचीन अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है. यह मूर्ति पत्थर की बनी हुई है.

मंदिर में भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है. इसके अलावा मंदिर परिसर में भंडार कक्ष भी है, जिसमें चिंडी माता के कीमती वस्त्र और सभी श्रृंगार प्रसाधन रखे जाते हैं. चिंडी माता में लकड़ी पर सुंदर नक्काशी की गई है, जिससे यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है.

वीडियो रिपोर्ट.

कन्या रूप में प्रकट हुई थी माता

चिंडी माता मंदिर की सदियों से लेकर चली आ रही मान्यताएं आज भी बरकरार है. मान्यता है कि यहां माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी और माता ने मंदिर का निर्माण खुद चींटियों की डोर बनाकर किया था. मंदिर के साथ बने तालाब और भंडार का नक्शा भी चींटियों ने ही बनाया था.

नक्शे की जानकारी माता ने स्थानीय पंडित को स्वप्न में आकर दी थी. उसके बाद नक्शे को देखकर मंदिर बनाया गया था. कहते हैं कि चिंडी माता अपने क्षेत्र को छोड़कर कभी बाहर नहीं गई. पुरौणिक कथाओं के अनुसार एक बार सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन ने चिंडी माता को सुंदरनगर बुलाने की जिद्द की थी. कारदारों ने जैसे ही माता को चौखट से बाहर निकाला.

chindi temple of karsog
चिंडी माता का मंदिर.

उसी समय माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई. लेकिन इसके बावजूद भी राजा के आदेश के अनुसार माता को ले जाने की कोशिश की गई. माता की इच्छा के बिना उन्हें ले जाने का खामियाजा राजा को भुगतना पड़ा. राजा को माता के रौद्र रूप का सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि राजा लक्ष्मण सेन अपनी गलती का पछतावा करने खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचा था.

हर मनोकामना होती है पूरी

चिंडी माता अपनी मर्जी से हर तीसरे साल बाद मंदिर से बाहर निकलती हैं. चिंडी माता का मेला चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है. उस दौरान माता तीन दिन के लिए मंदिर से बाहर आती हैं. जब भी माता मंदिर से बाहर आती हैं, करसोग सहित दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं.श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता के मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर निसंतान दम्पत्तियों को संतान की प्राप्ति जरूर होती है. गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति भी माता के मंदिर में स्वस्थ होने की कामना करने के लिए पहुंचते हैं.

chindi temple of karsog
मंदिर के साथ बना तालाब.

कैसे पहुंचें चिंडी माता के मंदिर

यह प्रसिद्द धार्मिक स्थल शिमला मार्ग पर करसोग से 13 किलोमीटर दूर है. शिमला या करसोग से चिंडी माता के मंदिर पहुंचने के लिए आसानी से वाहनों की सुविधा मिल जाती है. चिंडी माता मंदिर से नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला में है, जो छोटी लाइन से कालका से जुड़ा हुआ है. कालका के लिए आसानी से ट्रेन से या बस से पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से भी आसानी से शिमला होते हुए करसोग पहुंचा जा सकता है.

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Intro:प्राचीन काल से चिंडी माता के प्रति श्रद्धालुओं की आस्थाआज के इंटरनेट युग मे भी पहले जैसी ही कायम है। माता के चमत्कारी करिश्मों से आज भी हर साल दिल्ली सहित कलकत्ता और मुंबई से श्रद्धालु चिंडी मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं। करसोग से 13 किलोमीटर पीछे शिमला मार्ग पर स्थित चिंडी नामक स्थान पर माता रानी का ये प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता कन्या रूप में प्रकट हुई थी और माता ने मंदिर साथ बने तालाब व भंडार सहित मंदिर का निर्माण खुद चींटियों की डोर बनाकर किया था।Body:करसोग अदभुत के लिए विशेष रिपोर्ट
अदभुत शक्तियों से प्रभवित होकर सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन भी दंडवत प्रणाम करने चिंडी माता पहुंचे थे। करसोग के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक चिंडी माता मंदिर को लेकर सदियों से लेकर चली आ रही मान्यताएं आज भी बरकरार है। कहते हैं कि जब किसी के यहां संतान प्राप्ति नहीं होती तो ऐसे दंपतियों को चिंडी माता मंदिर आने पर संतान सुख प्राप्त हुआ है , इसी तरह के गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति जो अपनी अंतिम सांस गिन रहा हो और जिसे अस्पताल से भी लौटाया जा चुका हो , चिंडी माता के दर्शन करने मात्र से ही बड़े से बड़े असाध्य रोग भी दूर हुए हैं। अब भी इसी मान्यता के साथ हजारों श्रद्धालुओं की मंदिर में आने पर मनोकामना पूर्ण होती है। जिसके बाद श्रद्धालु माता का आभार प्रकट करने के लिए मंदिर में भंडारे भी लगाते हैं। सदियों पहले भी चिंडी सहित आसपास के क्षेत्रों में अशाध्य बीमारी फैली थी, जो माता के प्रताप से दूर हुई थी।


इतनी बार मंदिर के बाहर निकलती है माता:
चिंडी माता साल दो बार और तीसरे साल में तीन बार ही मंदिर से बाहर निकलती है। चिंडी माता का मेला हर साल 2 से 4 अगस्त को चंकरंठ नामक स्थान पर लगता है। उस दौरान माता तीन दिन के लिए मंदिर से बाहर आती है। इसके बाद क्षेत्र में होने वाले करियाला के समय भी माता मंदिर से बाहर आती है। हर तीसरे साल में माता तीन बार मंदिर से बाहर निकलती है। जब भी माता मंदिर से बाहर आती है, करसोग सहित दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर पहुंचते हैं।


जबरन सुंदरनगर बुलाया माता को मांगनी पड़ी थी माफी:
कहते हैं कि चिंडी माता अपने क्षेत्र को छोड़कर कभी बाहर नहीं गई। एक बार सुकेत रियासत के राजा लक्ष्मण सेन ने चिंडी माता की सुंदरनगर बुलाने की जिद की थी और उसे माता की नाराजगी झेलनी पड़ी थी। उस दौरान पूरे सुकेत से देवी और देवता राजा के बुलावे पर सुंदरनगर जाते थे और राजा ने चिंडी माता को भी सुंदरनगर आने का बुलावा भेजा। राज दंड के डर से कारदारों ने भारी मन से माता को जैसे ही मंदिर को चौखट से बाहर निकाला माता के प्रकोप से अष्ट धातु की मूर्ति काली पड़ गई, लेकिन राजा के आदर्शों को टाला नहीं जा सकता था, इसके बाद जैसे ही माता रानी का रथ पांगणा स्थित नाले के करीब पहुंचा, उसी वक्त माता के रौद्र रूप के कारण राजा के साथ अजीबो गरीब घटनाएं घटने लगी। जिसके बाद राजा को माता की भविष्यवाणी हुई और रथ को संदेश के बाद यहीं से वापिस मंदिर लाया गया। बताया जाता है कि राजा लक्ष्मण सेन खुद दंडवत होकर माता से माफी मांगने मंदिर पहुंचे थे। आज भी क्षेत्र के लोगों से ये बात सुनी जा सकती है।



Conclusion:मंदिर कमेटी चिंडी के प्रधान नानकचंद शर्मा का कहना है
इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां जिस स्थान पर माता विराजमान है और यहां साथ लगते तालाब व भंडार का निर्माण माता ने खुद चींटियों की डोर पर करवाया है। इस बात की जानकारी माता ने पहले ही स्थानीय पंडित को स्वप्न में आकर दे दी थी। उन्होंने कहा कि यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं माता उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करती है। उन्होंने बताया कि निसंतान दम्पतियों को यहां आने पर पुत्र रत्न को प्राप्ति होती है। इसी तरह से माता के चमत्कारों से अस्पताल से छोड़े जाने वाले मरीज भी मंदिर आने पर स्वस्थ होकर वापिस लौटे हैं। उन्होंने कहा कि मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में माता रानी के नाम से भंडारे लगाते है।

Last Updated : Dec 27, 2019, 10:42 AM IST
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