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नहीं रहे सुभाष चंद्र बोस के 'शेरे हिंद', आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लिया था लोहा - शेर सिंह पुत्र नरपत राम

शेर सिंह पुत्र नरपत राम 25 वर्ष की आयु में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे और उसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ रंगून और वर्मा में लड़ाई लड़ी थी. उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था. उनकी बहादुरी को देखते हुए नेता जी ने उन्हें शेरे हिन्द की उपाधि से विभूषित किया था.

fighter Sher Singh is no more
स्वतंत्रता सेनानी शेर सिंह
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Published : Feb 11, 2020, 8:15 PM IST

मंडी: नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के वीर सैनिक शेर सिंह ने मंगलवार सुबह अपने पैतृक गांव में अंतिम सांस ली. सरकाघाट की परसदा हवानी पंचायत के त्रिलोचन कोठी गांव के निवासी शेर सिंह 98 वर्ष के थे. शेर सिंह पिछले 2 वर्षों से बीमार चल रहे थे और उनके इलाज का सारा खर्चा सरकार की ओर से वहन किया गया. पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.

शेर सिंह पुत्र नरपत राम 25 वर्ष की आयु में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे और उसके बाद अंग्रेजों से रंगून और वर्मा में लड़ाई लड़ी थी. उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था. उनकी बहादुरी को देखते हुए नेता जी ने उन्हें शेरे हिन्द की उपाधि से अलंकृत किया था.

freedom fighter Sher Singh
प्रशासन ने राजकीय सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई

बाद में ये अपनी सैन्य टुकड़ी से बिछड़ गए और दो वर्षों तक वर्मा के जंगलों की खाक छानते रहे. बाद में जब भूखे प्यासे अपने घर पहुंचे तो उस समय देश आजाद हो चुका था और वे अपनी खेतीबाड़ी और घर गृहस्थी बसाने में लग गए. जब भारत सरकार ने आजाद हिंद फौज के वीर सैनिकों को उनकी देश के प्रति की गई सेवाओं के लिए पेंशन दी तो सम्मान पूर्वक अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे.

स्वर्गीय शेर सिंह 94 वर्ष की आयु तक हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के उपमंडल स्तर के समारोह में भाग लेते थे और प्रशासन की ओर से उनको सम्मानपूर्वक घर से लाया और छोड़ा जाता था. समारोह में उन्हें विशिष्ट अतिथि का दर्जा दिया जाता था. प्रशासन ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.

ये भी पढ़ें: शिक्षा विभाग ने गेहडवी स्कूल का किया निरीक्षण, समय पर नहीं पहुंचा स्टाफ...बच्चों का स्तर निराशाजनक

मंडी: नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के वीर सैनिक शेर सिंह ने मंगलवार सुबह अपने पैतृक गांव में अंतिम सांस ली. सरकाघाट की परसदा हवानी पंचायत के त्रिलोचन कोठी गांव के निवासी शेर सिंह 98 वर्ष के थे. शेर सिंह पिछले 2 वर्षों से बीमार चल रहे थे और उनके इलाज का सारा खर्चा सरकार की ओर से वहन किया गया. पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.

शेर सिंह पुत्र नरपत राम 25 वर्ष की आयु में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे और उसके बाद अंग्रेजों से रंगून और वर्मा में लड़ाई लड़ी थी. उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था. उनकी बहादुरी को देखते हुए नेता जी ने उन्हें शेरे हिन्द की उपाधि से अलंकृत किया था.

freedom fighter Sher Singh
प्रशासन ने राजकीय सम्मान के साथ दी अंतिम विदाई

बाद में ये अपनी सैन्य टुकड़ी से बिछड़ गए और दो वर्षों तक वर्मा के जंगलों की खाक छानते रहे. बाद में जब भूखे प्यासे अपने घर पहुंचे तो उस समय देश आजाद हो चुका था और वे अपनी खेतीबाड़ी और घर गृहस्थी बसाने में लग गए. जब भारत सरकार ने आजाद हिंद फौज के वीर सैनिकों को उनकी देश के प्रति की गई सेवाओं के लिए पेंशन दी तो सम्मान पूर्वक अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे.

स्वर्गीय शेर सिंह 94 वर्ष की आयु तक हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के उपमंडल स्तर के समारोह में भाग लेते थे और प्रशासन की ओर से उनको सम्मानपूर्वक घर से लाया और छोड़ा जाता था. समारोह में उन्हें विशिष्ट अतिथि का दर्जा दिया जाता था. प्रशासन ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.

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Intro:मंडी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के वीर सैनिक शेर सिंह ने आज सुबह अपने पैतृक गांव में अंतिम सांस ली। सरकाघाट की परसदा हवानी पंचायत के त्रिलोचन कोठी गांव के निवासी शेर सिंह 98 वर्ष के थे। अपने पैतृक गांव में आज प्रातः अंतिम सांस ली। शेर सिंह पिछले 2 वर्षों से बीमार चल रहे थे और उनके इलाज का सारा खर्चा सरकार द्वारा वहन किया गया। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

Body:शेर सिंह पुत्र नरपत राम 25 वर्ष की आयु में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे और उसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध रंगून और वर्मा में आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजी सेना से लोहा लिया था। उनकी बहादुरी को देखते हुए नेता जी ने उन्हें शेरे हिन्द की उपाधि से विभूषित किया था। बाद में ये अपनी सैन्य टुकड़ी से बिछुड़ गए और दो वर्षों तक वर्मा के जंगलों की खाक छानते रहे। बाद में जब भूखे प्यासे अपने घर पहुंचे तो उस समय देश आजाद हो चुका था और वे अपनी खेतीबाड़ी और घर गृहस्थी बसाने में लग गए। जब भारत सरकार ने आज़ाद हिंद फौज के वीर सैनिकों को उनकी देश के प्रति की गई सेवाओं के लिए पेंशन दी तो सम्मान पूर्वक अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करने लगे।स्वर्गीय शेर सिंह 94 वर्ष की आयु तक हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के उपमण्डल स्तर के समारोह में भाग लेते थे और प्रशासन द्वारा उनको सम्मानपूर्वक घर से लाया और छोड़ा जाता था। समारोह में उन्हें विशिष्ट अतिथि का दर्जा दिया जाता था। सुबह जब स्थानीय प्रशासन को उनके देहावसान का समाचार मिला तो एसडीएम जफ़र इक़बाल, डीएसपी चन्दरपाल सिंह और क्षेत्र के गणमान्य लोगों ने उनकी अंतिम विदाई में भाग लिया। प्रशासन ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया। Conclusion:इनके देहावसान पर कर्नल बाला राम, कैप्टन सुरेंद्र सिंह, कैप्टन वीर सिंह, कैप्टन प्रकाश सिंह, कैप्टन रघुवीर सिंह, समाजसेवी सोहन सिंह हाज़री, मंगत राम नेगी सहित अन्य लोगों ने गहरा शोक प्रकट करते हुए शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की है।
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