कुल्लू: लाहौल स्पीति हिमाचल का सबसे बड़ा जिला है. यहां कि भौगोलिक परिस्थितियां बहुत कठिन हैं. यहां इतनी अधिक बर्फबारी होती है कि इसके कई इलाके महीनों तक देश और दुनिया से कट जाते हैं. हर तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है. इसलिए इसे बर्फ का रेगिस्तान भी कहते हैं. बर्फ के ढके पहाड़ों के बीच भी यहां के लोग अपने त्यौहारों को पूरी शिद्दत से मनाते हैं.
ये त्यौहार बर्फ में घरों के बीच कैद लोगों को बाहर निकलकर एक साथ खुशियां मनाने का मौका देते हैं. लाहौल-स्पीति की गाहर घाटी में गौची उत्सव को मनाने की परंपरा है. घाटी के लोग आज भी इस अनोखे उत्सव को पूरी शान-ओ-शौकत के साथ मनाते हैं.
इस उत्सव में धनुष का एक-एक बाण ये तय करता है कि भविष्य में यहां कितने पुत्र जन्म लेंगे. इस पुत्रोत्सव में लोग अपने इष्ट देवी-देवताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. लोगों का मानना है कि इष्ट देवी-देवताओं की कृपा से ही पुत्रहीन परिवारों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी.
लोग गांव के पुजारी के घर एकत्रित होकर युल्सा देवता की आराधना करते हैं
गौची उत्सव में केवल वही परिवार हिस्सा लेते हैं जिनके घर में कुछ दिनों पहले पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. इस खास अवसर पर गौची समुदाय के लोग गांव के पुजारी के घर एकत्रित होकर युल्सा देवता की आराधना करते हैं. इसके बाद पुजारी और सहायक पुजारी पांरपरिक वेशभूषा में तैयार होकर उन घरों में जाते हैं जिन घरों में बेटा पैदा हुआ हो.
ये सारे परिवार धार्मिक कार्यों को पूरा करने के लिए खुलसी यानि भूसे से भरी हुई बकरी की खाल, पोकन यानी आटे की तीन फीट ऊंची आकृति, छांग मतलब मक्खन से बनी बकरी की आकृति, हालड़ा और मशाल देंगे और देव स्थान पर विधिपूर्वक स्थापित करते हैं.
पुजारी इस बात की भविष्यवाणी करता है कि आने वाले समय में कितने पुत्रों की प्राप्ति होगी
हर प्रहार के बाद पुजारी इस बात की भविष्यवाणी करता है कि आने वाले समय में कितने पुत्रों की प्राप्ति होगी. उत्सव में भाग लेने वाले हर परिवार को इस बात की आशा रहती है कि आने वाले समय में उनके घर में बेटा ही जन्म लेगा. सरकार बेटियों को बचाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी मुहिम चला रही है. लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान लाहौल स्पीति में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले 111 अधिक थी. जिससे साफ है कि लाहौल के लोग बेटियों को बचा भी रहे हैं और पढ़ा भी रहे हैं.