कुल्लू: जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर मैदान में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव जहां 24 अक्टूबर से मनाया जाएगा तो वहीं, इसकी तैयारी के लिए भी प्रशासन के द्वारा लगातार काम किया जा रहा है. देवी देवताओं के महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में हर साल सैकड़ों देवी देवता शिरकत करते हैं और लाखों की संख्या में श्रद्धालु उनके दर्शनों के लिए आते हैं.
राजा ने रोग मुक्ति पर किया था दशहरा उत्सव का आगाज: 1660 से शुरू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव को मनाया जाने के पीछे भी कई रोचक बातें हैं और देवी देवताओं की समृद्ध संस्कृति के दर्शन भी लोगों को एक साथ ढालपुर मैदान में होते हैं. ऐसे में इस बार भी जिला प्रशासन के द्वारा 332 देवी देवताओं को दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेजे गए हैं. वहीं, कुल्लू के राजा जगत सिंह को रोग से मुक्ति देने के लिए भगवान राम अयोध्या से कुल्लू आए थे. दशहरा उत्सव के पीछे भी एक रोचक कहानी है. कहा जाता है कि 1660 ईस्वी में मणिकर्ण घाटी के टिपरी गांव में एक ब्राह्मण दुर्गा दत्त रहता था. जब राजा जगत सिंह मणिकर्ण में स्नान के लिए जा रहे थे तो किसी व्यक्ति के द्वारा झूठी सूचना दी गई कि ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास सच्चे मोती हैं. वहीं, राजा ने भी बिना कोई सोच विचार किया ब्राह्मण को आदेश दिया कि वह सभी मोती उन्हें दें. वरना इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा. ऐसे में ब्राह्मण दुर्गा दत्त राजा के आदेश से डर गया, जबकि सच्चाई यह थी कि उसके पास कोई भी मोती नहीं था.
ब्राह्मण इतना डर गया कि उसने अपने घर को आग लगा दी और अपने परिवार के साथ आग में आत्मदाह कर लिया. वहीं, राजा को ब्राह्मण की हत्या का दोष लगा और राजा गंभीर बीमारी का शिकार हो गया. राजा ने कई वैद्य से इसका इलाज करवाया, लेकिन वह ठीक नहीं हो पाए. ऐसे में बीमारी से निजात पाने के लिए उन्हें सलाह दी गई कि अयोध्या से त्रेता नाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति को कुल्लू लाया जाए तब ब्राह्मण दामोदरदास को अयोध्या भेजा गया और वह अयोध्या से भगवान राम की मूर्ति को कुल्लू लेकर आए. भगवान राम के कुल्लू आने पर राजा को रोग से मुक्ति मिल गई और 1660 में राजा ने पूरा राज पाठ भगवान रघुनाथ के नाम कर दिया और खुद छड़ी बरदार बनकर सेवा करने लगे. 1660 में भगवान रघुनाथ की मूर्ति मकराहड, मणिकर्ण, हरिपुर, नगर होते हुए कुल्लू पहुंची और भगवान रघुनाथ के सम्मान में 1660 से दशहरा उत्सव का आयोजन किया जाने लगा.
1970 में मिला अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा: साल 1966 तक कुल्लू दशहरा को राज्य स्तर का दर्जा मिला और 1970 में अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने की घोषणा की गई, लेकिन इसे मान्यता नहीं मिल पाई. ऐसे में साल 2017 में से अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा दिया गया और इस देव महाकुंभ को देखने के लिए देश-विदेश से भी भारी संख्या में पर्यटक ढालपुर पहुंचते हैं.
नहीं जलाया जाता है रावण का पुतला: पूरे देश भर में जहां नवरात्रि में रामलीला का आयोजन किया जाता है तो वहीं, ढालपुर के दशहरा उत्सव में ना तो रामलीला की जाती है और ना ही रावण के पुतले को जलाया जाता है. यहां पर विजयदशमी के दिन अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शुरुआत होती है और भगवान रघुनाथ के रथ यात्रा के साथ-साथ दिनों तक इस मेले को ढालपुर मैदान में मनाया जाता है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से शुरू होने के एक सप्ताह बाद इसका समापन किया जाता है और इसे देवी देवताओं का वार्षिक सम्मेलन भी कहा जाता है. कहा जाता है कि विजयदशमी के दिन भगवान राम के द्वारा रावण की सेना पर जीत हासिल की गई थी. ऐसे में दशमी के दिन ही यहां पर दशहरा उत्सव मनाया जाता है. दशहरा उत्सव के सातवें दिन लंका दहन किया जाता है और उसके साथ ही दशहरे का समापन किया जाता है. लंका दहन के दिन भी रथ यात्रा निकाली जाती है और भगवान रघुनाथ वापस रघुनाथपुर अपने मंदिर की ओर लौट जाते हैं.
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PM मोदी ने भी देखा है अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव: साल 2022 के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले दिन ढालपुर मैदान आए थे और उन्होंने भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा को देखा था. ऐसे में साल 2022 के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने शिरकत की थी. ढालपुर मैदान में पहले दशहरा उत्सव में सिर्फ देवी देवताओं का भव्य मिलन होता था और लोग भी उनके दर्शनों को आते थे, लेकिन धीरे-धीरे व्यापार भी होने लगा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाने लगा. आज अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव अपने व्यापार के लिए जाना जाता है और देश भर से व्यापारी यहां पर विभिन्न तरह का सामान बेचने के लिए आते हैं. इसके अलावा लालचंद प्रार्थी कला केंद्र में भी 7 दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसमें देश-विदेश के कलाकार अपनी संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं.
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में माता हिडिंबा, देवता बिजली महादेव, माता भेखली, जमदग्नि ऋषि सहित कुछ प्रमुख देवी देवता हैं. जिनके बिना दशहरा उत्सव संपन्न नहीं किया जा सकता है. माता हिडिंबा के राजमहल में आने के बाद दशहरा उत्सव की तैयारी शुरू की जाती है. इसके अलावा दिन भर यहां देवी देवता भी भगवान रघुनाथ के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. शाम के समय ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा आयोजित की जाती है. जिसमें हजारों लोगों की भीड़ भगवान रघुनाथ के रथ को खींचने के लिए उमड़ती है. भगवान रघुनाथ 7 दिनों तक ढालपुर के अस्थाई शिविर में विराजमान रहते हैं और सातवें दिन लंका दहन के साथ में वापस अपने मंदिर की ओर लौट जाते हैं.
रावण की मौत से संबंध: ढालपुर के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के आयोजन को लेकर यह कहा जाता है कि विजयदशमी के दिन भगवान राम ने रावण की नाभि पर तीर मारा था और रावण की सेना पर जीत हासिल की थी. तब से लेकर पूरे भारत में विजयदशमी का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन रावण की मृत्यु उस दिन नहीं हुई थी. रावण की मृत्यु विजयदशमी के 7 दिन के बाद हुई थी. ऐसे में भगवान राम के द्वारा रावण का अंत किया गया था. इसीलिए ढालपुर का दशहरा उत्सव विजयदशमी से शुरू होकर 7 दिनों तक मनाया जाता है.
कोरोना में सूना नजर आया था दशहरा उत्सव: साल 2020 में कोरोना के दौर में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में मात्र 7 देवी देवताओं के द्वारा भाग लिया गया था और यहां पर सभी प्रकार की गतिविधियां बंद कर दी गई थी. साल 2021 में मात्र देवी देवताओं को ही दशहरा उत्सव में आने दिया गया था. वहीं, साल 2022 में देवी देवताओं के साथ व्यापारिक गतिविधियां भी की गई और 7 दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया. ऐसे में कोरोना के दौर में पहली बार अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव काफी सूना नजर आया.
इस बार क्या रहेगा खास?: डीसी कुल्लू आशुतोष गर्ग ने बताया कि इस बार 15 से अधिक देशों के सांस्कृतिक दल भी ढालपुर आएंगे. वहीं, ढालपुर मैदान में पहली बार सफेद रंग के कैनोपी टेंट भी लगाए गए हैं. व्यापारियों के लिए भी यहां पर पंडाल तैयार किया जा रहे हैं और देवी देवताओं के शिविरों को भी सजाया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव अबकी बार एक नए स्वरूप में नजर आएगा.