कुल्लू: जिला कुल्लू में अब ट्राउट मछली की ओर लोगों का रुझान बढ़ने लगा है. तो वहीं, आर्थिकी को मजबूत करने में भी अब ट्राउट मछली जिला कुल्लू में अपना अहम योगदान दे रही है. वहीं, मत्स्य विभाग के द्वारा भी 350 मीट्रिक टन ट्राउट मछली के उत्पादन का लक्ष्य जिला कुल्लू में रखा गया है. कुल्लू जिले में नीली क्रांति व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है. जिले में तकरीबन 135 ट्राउट पालक स्वरोजगार प्राप्त करके आजीविका कमाकर कामगारों को रोजगार भी प्रदान कर रहें हैं. (Trout fish farmers increasing in Kullu)
एक ट्राउट रेसवेज जिसकी लंबाई 17 मीटर, चौड़ाई 2 मीटर व गहराई डेढ़ मीटर होती है, उसमें ट्राउट पालक पांच हजार ट्राउट बीज को डाल कर एक मीट्रिक उत्पादन कर सकता है. जिले में करीब 350 ट्राउट रेसवेज का निर्माण पूरा होने से जिले में 350 मीट्रिक टन उत्पादन संभव हो सकेगा. जबकि जिले में अभी करीब 150 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा रहा है. भारत नार्वे ट्राउट कृषि परियोजना के माध्यम से वर्ष 1991 ट्राउट फार्म पतलीकूहल में दोनों सरकारों की सहायता एक आदर्श फार्म की नींव रखी गई और तब से यहां पर लोगों का ट्राउट पालन के प्रति रुझान बढ़ा. (Trout fish farming in Kullu)
आज कुल्लू जिले में ही ट्राउट पालकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 30 वर्ष पहले जिले में मात्र ट्राउट मछली उत्पादकों की संख्या 2 थी जो अब बढ़ कर 135 हो गई है. मत्स्य उपनिदेशक पतलीकूहल केएस ठाकुर ने जानकारी देते हुए कहा कि ठंडे पानी में पलने वाली ट्राउट मछली से कुल्लू जिला आने वाले वर्षों में ट्राउट हब बनने जा रहा है. उन्होंने कहा कि ट्राउट पालन के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत ट्राउट पालकों को सीड, फीड व रेसवेज बनाने के लिए 40 फीसदी अनुदान दिया जाता है.
ट्राउट पालन में लोगों की रुचि को देखते हुए कुल्लू जिले में ऐसे कई बड़े निजी ट्राउट फार्म विकसित हो चुके हैं, जो सरकारी ट्राउट फार्म से कहीं अधिक उत्पादन कर रहें हैं. मत्स्य उपनिदेशक पतलीकूहल केएस ठाकुर ने जानकारी देते हुए कहा कि प्रदेश में ट्राउट पालन जिस तरह से विकसित हो रहा है उसमें लोगों की रुचि उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा रही है जिसमें अनुदान राशि उन्हें इस व्यवसाय को और बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है. ठंडे व साफ पानी में पलने वाली यह ट्राउट आज प्रदेश के ऐसे क्षेत्र है जहां पर इनका पालन उनके वातावरण के अनुकूल है. (Trout fish Farming in Himachal)
उन्होंने बताया कि नवंबर से फरवरी तक इन चारों महीनों में ट्राउट मत्स्य आखेट पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है क्योंकि इन चार महीनों में ट्राउट प्रजनन प्रक्रिया रहती है. उन्होंने कहा कि यदि इन प्रतिबंधित महीनों में कोई नदी नालों में ट्राउट का शिकार करते पकड़ा जाता है तो उसे फिशरीज एक्ट के तहत दंडित किया जाता है. अवैध रूप से शिकार करने वालों पर भी विभाग के उड़नदस्ता नजर रखते हैं, ताकि कोई अवैध रूप से शिकार न कर सके. उपनिदेशक ने बताया कि जिले में अब तक 135 ट्राउट पालक हैं, जो व्यवसाय से कृषि व बागबानी के अतिरिक्त आय बढ़ाने में समर्थ हुए हैं. (Kullu Trout fish)
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