आनी/कुल्लू: सैंज जल विद्युत परियोजना में सब कुछ न्योछावर करने वाले प्रभावित परिवारों ने अब परियोजना प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ग्रामीणों ने परियोजना प्रबंधन को दो टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि सैंज परियोजना बीते कई वर्षों से प्रभावित परिवारों को ना तो रोजगार दे रही हैं और ना ही आरआर प्लान के तहत मिलने वाली सुविधाएं प्रदान कर रही है.
प्रभावित परिवारों ने अब प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से परियोजना प्रबंधन की शिकायत करने का मन बना लिया है. 100 मेगावाट उत्पादन क्षमता की सैज जल विद्युत परियोजना भले ही प्रदेश और देश के लिए हितकारी साबित हुई हो, लेकिन परियोजना से प्रभावित हुए घाटी के 130 परिवारों को 1000 दिन का रोजगार छह परिवारों को परियोजना में स्थाई रोजगार का वादा अभी तक भी परियोजना प्रबंधन में पूरा नहीं किया है.
एक दशक बीत जाने के बावजूद अभी तक ना तो 130 परिवारों को 1000 दिन का रोजगार मिल पाया है और ना ही परियोजना क्षेत्र के छह परिवारों को स्थाई रोजगार मिला है. यही नहीं परियोजना प्रबंधन ने आज तक परियोजना क्षेत्र में आरआर प्लान के तहत ग्रामीणों को मिलने वाली सुविधाओं को भी प्रदान नहीं किया है.
प्रभावित विस्थापित संघ के प्रधान राजकुमार सचिव रमेश कुमार ने बताया कि राष्ट्रहित में अपनी मातृभूमि कुर्बान करने के बाद भी सैंज जल विद्युत परियोजना घाटी के प्रभावित परिवारों के लिए गम लेकर आई है. वहीं, जिला कुल्लू सड़क संघर्ष समिति व सैन्ज संयुक्त संघर्ष समिति भी प्रभावित विस्थापित परिवार व यूनियन के साथ खड़ी हो गई है.
जिला कुल्लू सड़क संघर्ष समिति के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री ठाकुर सत्य प्रकाश व सैंज संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष महेश शर्मा ने कहा कि लोगों के साथ नाइंसाफी हुई है, जिसका हम ग्रामीणों के साथ मिलकर उनके हकों की लड़ाई लड़ेंगे.
विस्थापित नेता नारायण सिंह ठाकुर ने कहां कि परियोजना की खातिर अपनी मातृभूमि को कुर्बान करने वाले सैकड़ों परिवारों ने सैंज जल विद्युत परियोजना की खातिर मिट्टी में सोना उगाने वाली उपजाऊ भूमि को राष्ट्रहित में कुर्बान किया है, लेकिन बदले में सैंज परियोजना ने ग्रामीणों को जख्म के सिवा कुछ नहीं दिया है.
प्रभावित परिवार आज भी रोजगार मिलने का इंतजार कर रहे हैं. ग्रामीण ने कहा कि परियोजना निर्माण के समय परियोजना प्रबंधन ने ग्रामीणों को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए थे, लेकिन परियोजना तैयार होने के बाद अब परियोजना प्रबंधन सभी बातों को भूल विस्थापितों को नजरअंदाज कर रहा है.
हालांकि परियोजना बनकर तैयार हो चुकी है, लेकिन प्रभावित व विस्थापित परिवारों का रोजगार का मामला अभी भी सिरे नहीं चढ़ पाया है. विस्थापित परिवार पिछले 10 वर्षों से रोजगार के लिए परियोजना प्रबंधन ब प्रशासन के द्वारा कई वार गुहार लगा चुके हैं लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि सैंज परियोजना प्रबंधन विस्थापितों को स्थाई रोजगार तो दूर लेकिन अस्थाई रोजगार भी नहीं दे पाया है.
सैंज परियोजना विस्थापितों की माने तो ग्रामीणों का आरोप है कि परियोजना प्रबंधन अपने चहेतों को चोर दरवाजे से नौकरियां बांट रहा है और विस्थापितों परिवारों को नो वैकेंसी का बहाना बनाकर खाली हाथ वापस लौटा रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि सैंज जल विद्युत परियोजना चिन्हित परिवारों को भी रोजगार मुहैया करने में नाकाम साबित हुई है. विस्थापित परिवारों ने परियोजना प्रबंधन की करनी और कथनी में सवाल खड़े करते हुए कहा कि सैंज जल विद्युत परियोजना में विस्थापित परिवारों की बेकद्री हो रही है और विस्थापित परिवार रोजगार के लिए पिछले एक दशक से दर-दर भटक रहे हैं और परियोजना प्रबंधन चोर दरवाजे से नौकरियां बांट रहा है.
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