कुल्लू: सनातन धर्म में तीज-त्योहार के साथ-साथ व्रतों का बड़ा महत्व है और खासकर हर महीने शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों में आने वाली एकादशी के व्रतों को बहुत ही शुभ और फलदायी माना जाता है. इस बार की एकादशी और भी खास है क्योंकि आज की एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है.
भगवान विष्णु की पूजा और तिल का दान- इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है. इस दिन तिल का इस्तेमाल और दान करने से भक्त पुण्य का भी भागीदार बनता है. मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त भगवान विष्णु के लिए व्रत रखते हैं, उनका जीवन कष्ट और रोगों से मुक्त होता है. इस बार षटतिला एकादशी बुधवार 18 जनवरी को है.
षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त- आचार्य पुष्पराज शर्मा के मुताबिक माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी भी कहते हैं. आज यानी बुधवार 18 जनवरी को पड़ने वाली षटतिला एकादशी की शुरुआत 17 जनवरी को शाम 6 बजकर 5 मिनट पर होगी और इसका समापन 18 जनवरी शाम 4 बजकर 3 मिनट पर होगा. इसका पारण 19 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. उदयातिथि के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत 18 जनवरी को रखा जाएगा.
षटतिला एकादशी के दिन क्या करें- षटतिला एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है. षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करना सबसे शुभ माना जाता है. इसके अलावा षटतिला एकादशी का व्रत घर में सुख शांति लाता है और ऐसे इंसान को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही इंसान को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- षटतिला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
- उसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करें.
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और गंगाजल में तिल मिलाकर तस्वीर पर छीटें दें. भगवान विष्णु को पुष्प, धूप आदि अर्पित करें.
- फिर भगवान विष्णु सहस्नाम का पाठ करें और आरती उतारें.
- उसके बाद भगवान को तिल का भोग लगाएं. इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें.
- रात्रि में जागरण और हवन करें. इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं.
- ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करें.
षटतिला एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा- धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के पास बैकुण्ठ धाम पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी, जिसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी. एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी. इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी. अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया. जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया.
कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई. यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला, जिसे देख वो घबराकर बोली बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली. तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था. उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानो कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है
घर में होगा लक्ष्मी का वास और खुलेगा बैकुंठ का द्वार- षटतिला एकादशी पर भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाया जाता है. मकर संक्रांति की तरह ही इस दिन भी तिल का दान शुभ माना जाता है. ऐसा करने से मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि माघ मास में जितना तिल का दान करेंगे उतने हजार साल तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होगा. भगवान विष्णु की अराधना से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है और उनकी कृपा दृष्टि भी घर पर बनी रहती है.
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