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कुल्लू में राख के ढेर पर खड़े कई गांव, घास व लकड़ी भंडारण बन रहा आग का कारण

कुल्लू के प्राचीन और ऐतिहासिक गांव राख के ढेर पर है. दर्जनों अग्निकांड की घटनाएं होने के बावजूद लोग जागरूक नहीं हो रहे है. छोटी सी चिंगारी ही गांव को राख के ढेर में तबदील कर देती हैं. अब तक इन अग्निकांडों में कई गांव, प्राचीन मंदिर व भवन राख हो चुके हैं.

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Published : Jan 12, 2020, 10:39 AM IST

Updated : Jan 12, 2020, 10:46 AM IST

Many villages in Kullu fire hazard
Many villages in Kullu fire hazard

कुल्लू: जिला कुल्लू के प्राचीन और ऐतिहासिक गांव राख के ढेर पर है. दर्जनों अग्निकांड की घटनाएं होने के बावजूद लोग जागरूक नहीं हो रहे है. यहां पर आग लगने का प्रमुख कारण घरों में रखा घास व लकड़ियां हैं.

छोटी सी चिंगारी ही गांव को राख के ढेर में तबदील कर देती हैं. अब तक इन अग्निकांडों में कई गांव, प्राचीन मंदिर व भवन राख हो चुके हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन भी इस तरह के बड़े अग्निकांड पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं.

कुल्लू के कई ऐतिहासिक गांवों पर अब भी खतरे के बादल हैं. कुल्लू का मलाणा अग्निकांड आज भी किसी को भूला नहीं है. कुल्लू जिला के ज्यादातर मकान काष्ठकुणी शैली के बने हैं. इसमें कुल्लू के आनी, मनाली, बंजार, निरमंड आदि क्षेत्र शामिल हैं.

वीडियो.

बीते साल सैंज घाटी के शैंशर गांव में भी घर जल गए थे. इसमें शंगचूल महादेव का मंदिर भी शामिल था. जिला के कई गांव ऐसे हैं जहां पर आज भी पानी के भंडारण के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है. इन गांवों में हलकी सी आग की चिंगारी भी सब कुछ पलभर में राख कर सकती है.

Many villages in Kullu fire hazard
कुल्लू में राख की ढेर पर खड़े कई गांव.

ज्यादातर गांवों में पानी के भंडारण टैंक तो बनाए गए हैं, लेकिन वे केवल मात्र शो-पीस ही हैं. उनमें ना तो पानी होता है और ना ही प्रयोग योग्य बनाए गए है. स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर सरकारी योजनाओं का अभाव भी है.

सरकार और विभाग को चाहिए कि गांवों में आग से बचाव के तरीके बताए जाएं. गांव में पानी के स्टोर का होना भी जरूरी है. अगर पानी पूर्ण मात्रा में हो तो आग पर काबू पाया जा सकता है. सड़कों की हालत सुधारने पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.

जिला अग्निशमन अधिकारी दुर्गा दास ने बताया कि जिला में आगजनी से बचने के लिए समय-समय पर लोगों के लिए जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं. इसके लिए पंचायतों को भी निर्देश जारी कर दिए हैं कि लोगों को जागरूक करें. लोग घास व लकडि़यां घरों से दूर रखें, ताकि आग न लग सके.

ये भी पढ़ेंः सेब के पौधे लगाने में जुटे बागवान, बागवानी विभाग बांट रहा सेब की नई किस्में

कुल्लू: जिला कुल्लू के प्राचीन और ऐतिहासिक गांव राख के ढेर पर है. दर्जनों अग्निकांड की घटनाएं होने के बावजूद लोग जागरूक नहीं हो रहे है. यहां पर आग लगने का प्रमुख कारण घरों में रखा घास व लकड़ियां हैं.

छोटी सी चिंगारी ही गांव को राख के ढेर में तबदील कर देती हैं. अब तक इन अग्निकांडों में कई गांव, प्राचीन मंदिर व भवन राख हो चुके हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन भी इस तरह के बड़े अग्निकांड पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं.

कुल्लू के कई ऐतिहासिक गांवों पर अब भी खतरे के बादल हैं. कुल्लू का मलाणा अग्निकांड आज भी किसी को भूला नहीं है. कुल्लू जिला के ज्यादातर मकान काष्ठकुणी शैली के बने हैं. इसमें कुल्लू के आनी, मनाली, बंजार, निरमंड आदि क्षेत्र शामिल हैं.

वीडियो.

बीते साल सैंज घाटी के शैंशर गांव में भी घर जल गए थे. इसमें शंगचूल महादेव का मंदिर भी शामिल था. जिला के कई गांव ऐसे हैं जहां पर आज भी पानी के भंडारण के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है. इन गांवों में हलकी सी आग की चिंगारी भी सब कुछ पलभर में राख कर सकती है.

Many villages in Kullu fire hazard
कुल्लू में राख की ढेर पर खड़े कई गांव.

ज्यादातर गांवों में पानी के भंडारण टैंक तो बनाए गए हैं, लेकिन वे केवल मात्र शो-पीस ही हैं. उनमें ना तो पानी होता है और ना ही प्रयोग योग्य बनाए गए है. स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर सरकारी योजनाओं का अभाव भी है.

सरकार और विभाग को चाहिए कि गांवों में आग से बचाव के तरीके बताए जाएं. गांव में पानी के स्टोर का होना भी जरूरी है. अगर पानी पूर्ण मात्रा में हो तो आग पर काबू पाया जा सकता है. सड़कों की हालत सुधारने पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.

जिला अग्निशमन अधिकारी दुर्गा दास ने बताया कि जिला में आगजनी से बचने के लिए समय-समय पर लोगों के लिए जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं. इसके लिए पंचायतों को भी निर्देश जारी कर दिए हैं कि लोगों को जागरूक करें. लोग घास व लकडि़यां घरों से दूर रखें, ताकि आग न लग सके.

ये भी पढ़ेंः सेब के पौधे लगाने में जुटे बागवान, बागवानी विभाग बांट रहा सेब की नई किस्में

Intro:कुल्लू में राख की ढेर पर खड़े है कई गांव
घरों में घास व लकड़ी का भंडारण बन रहा आग का
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जिला कुल्लू के प्राचीन और ऐतिहासिक गांव राख के ढेर पर है। दर्जनों अग्निकांड की घटनाएं होने के बावजूद लोग जागरूक नहीं हो रहे है। यहां पर आग लगने का प्रमुख कारण घरों में रखा घास व लकडि़यां होते है। छोटी सी चिंगारी ही गांव को राख के ढेर में तबदील कर देती है। इन अग्निकांडो में कई गांव, प्राचीन मंदिर व भवन राख हो चुके है। लेकिन सरकार और प्रशासन भी इन अग्निकांडो पर रोक नहीं लगा पा रहे है। कुल्लू के कई ऐतिहासिक गांवों पर अब भी खतरे के बादल है। कुल्लू का मलाणा अग्निकांड आज भी किसी को भूला नहीं है। कुल्लू जिला के ज्यादातर मकान काष्ठकुणी शैली के बने है। इसमें कुल्लू के आनी, मनाली, बंजार, निरमंड आदि क्षेत्र शामिल है। बीते साल पहले सैंज घाटी के शैंशर गांव में भी घर जल गए थे। इसमें शंगचूल महादेव का मंदिर भी शामिल था। जिला के कई गांव ऐसे है जहां पर आज भी पानी के भंडारण के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है। इन गांवों में हलकी सी आग की चिंगारी भी सब कुछ पलभर में राख कर सकती है। ज्यादातर गांवों में पानी के भंडारण टैंक तो बनाए गए है, लेकिन वे केवल मात्र शोपीस ही है। उनमें न तो पानी होता है और न ही प्रयोग योग्य बनाए गए है। स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर सरकारी योजनाओं का अभाव भी है। सरकार और विभाग को चाहिए कि गांवों में आग से बचाव के तरीके बताए जाएं। गांव में पानी के स्टोर का होना भी जरूरी है। अगर पानी पूर्ण मात्रा में हो तो आग पर काबू पाया जा सकता है। सड़को की हालत सुधारने पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
Conclusion:


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जिला में आगजनी से बचने के लिए समय-समय पर लोगों के लिए जागरूकता शिविर लगाए जाते है। इसके लिए पंचायतों को भी निर्देश जारी कर दिए है कि लोगों को जागरूक करे। लोग घास व लकडि़यां घरों से दूर रखे, ताकि आग न लग सके।
दुर्गा दास जिला अग्निशमन अधिकारी।
Last Updated : Jan 12, 2020, 10:46 AM IST
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