कुल्लू: कुल्लू घाटी के आराध्य देवता गुग्गा जाहर पीर को तलाश करने के लिए उनकी बहन गुगड़ी घाटी की परिक्रमा पर निकल गई हैं. देवता के गुर गोपाल ने बताया कि गुग्गा देवता की बहन का छत्र पूरे क्षेत्र की परिक्रमा कर रहा है और हर जगह लोग इस छत्र का स्वागत कर रहे हैं.
वहीं, गुग्गा देवता की बहन गुगड़ी भी लोगों के आमंत्रण पर घरों में भी जा रही हैं और श्रद्धालु भी देव छत्र का भव्य स्वागत कर रहे हैं. गुग्गा मंदिर रघुनाथपुर गंगेड़ी में रक्षा बंधन वाले दिन इस छत्र को सजाने के बाद ये त्योहार आरंभ होता है. देवता के प्रस्थान करने के बाद इस दिन तीन घर मांगे जाते हैं और ऐसा करके गुरु गोरखनाथ की रस्मों को निभाया जाता है. इसके बाद यह छत्र वापस अपने स्थान पर आ जाते हैं. दूसरे दिन गुगड़ी का यह छत्र रघुनाथपुर में घर-घर जाकर लोगों को आशीर्वाद देती हैं और यह प्रथा पुराने समय से चली आ रही है.
देवता के गुर गोपाल ने बताया कि यह प्रक्रिया पूरे सात दिन तक चलती है और इस दौरान देवता के हरियान भी घर-घर जाकर देवता की गाथा सुनाते हैं. जन्माष्टमी वाले दिन देवता भी अपने समस्त हरियानों के साथ माता जगन्नाथी भेखली के चरणों में आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं और प्राचीन परंपरा के मुताबिक गांववासी देवता को अन्न अर्पित करते हैं. इस अन्न से गुग्गा नवमी के दिन गुरु गोरखनाथ के लिए रोट बनाया जाता है.
देवता के गुर गोपाल ने बताया कि भेखली माता मंदिर से आने के बाद देवी का यह छत्र अपने स्थान लौट आते हैं. इस छत्र का श्रृंगार और डोरियों को वापिया उतारा जाता है. गुग्गा नवमी के दिन गुग्गा देवता का श्राद्ध छोड़ा जाता है. श्राद्ध छोड़ने के बाद चौथे पहर को देवता के गुरु गोरखनाथ की सात अनाज के साथ पूजा की जाती है. प्राचीन मान्यता के अनुसार गुरु पूजा के बाद देवता देवता जीवित हो जाते हैं. इस दिन भंडारा भी लगाया जाता है.
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