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KULLU: कुल्लू में फागली उत्सव की धूम, मुखौटा पहन गालियां देकर भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां

हिमाचल प्रदेश के त्योहार इसे और राज्यों से अलग बनाते हैं. इन दिनों प्रदेश के बंजार में फागली उत्सव मनाया जा रहा है. जिसे देखने के लिए बाहरी राज्य से पर्यटक भी पहुंच रहे हैं. फागली उत्सव की मान्यता जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर... (Fagli Festival Celebrate in Kullu) (Fagli Festival of Banjar)

कुल्लू का फागली उत्सव.
कुल्लू का फागली उत्सव.
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Published : Feb 14, 2023, 4:39 PM IST

कुल्लू में मनाया गया फागली उत्सव.

कुल्लू: हिमाचल की संस्कृति और त्योहार ही प्रदेश को अन्य राज्यों से अलग बनाती है. यहां पर नया साल शुरू होते ही कई त्योहारों को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो साल की अंत तक रहता है. हिमाचल की प्राचीनतम परम्पराएं ही यहां की पहचान है. यहां के लोग आज भी अपनी पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह त्योहार ही यहां के लोगों को आज भी एक दूसरे से जोड़े हुए है जिसके लिए यहां के लोग प्रशंसा के पात्र है.

बंजार में मनाया गया फागली उत्सव.
बंजार में मनाया गया फागली उत्सव.

फाल्गुन सक्रांति में मनाया जाता है ये त्योहार- ऐसा ही एक पौराणिक त्योहार आज भी हिमाचल प्रदेश में जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार में मनाया जाता है 'फागली त्योहार'. इन दिनों ग्रामीण इलाकों में फागली उत्सव मनाया जा रहा है. फागली उत्सव में ग्रामीणों द्वारा मुखौटे पहने जाते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. इन्हें पहनने के बाद वे नृत्य भी करते हैं. फागली उत्सव तीर्थन घाटी के विभिन्न गांवों में हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है.

फागली उत्सव में मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.
फागली उत्सव में मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.

मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां- कुछ चयनित किए हुए लोगों द्वारा मुखौटा नृत्य किया जाता है. इस नृत्य के जरिए गांव से बुरी शक्तियों को भगाया जाता है. जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है. इसी कड़ी में तीर्थन घाटी के गांव पेखड़ी, नाहीं , तिंदर, डिंगचा, फरियाडी, शर्ची, बशीर और कलवारी व अन्य गांवों में आजकल फागली उत्सव की धूम मची हुई है. आजकल तीर्थन घाटी में पर्यटक घूमने फिरने के साथ साथ यहां के प्राचीनतम मुखौटा नृत्य देखने का भी भरपूर आनंद ले रहे हैं.

फागली उत्सव देखने बाहरी राज्य से पहुंच रहे पर्यटक.
फागली उत्सव देखने बाहरी राज्य से पहुंच रहे पर्यटक.

फागली उत्सव देखने पहुंच रहे पर्यटक- ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए मशहूर उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थल बन गया है. अब पर्यटक यहां पर बाहरी राज्यों से ये मुखौटा नृत्य देखने के लिए पहुंच रहे हैं. पर्यटकों को ये फागली उत्सव और मुखौटा नृत्य काफी लुभा रहा है. यहां पर दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र में बसे छोटे-छोटे सुंदर गांव, यहां की नदियां नाले और झरने, चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों, जंगलों और बर्फ से ढकी ऊंची पर्वतशृंखलाएं इस घाटी की सुंदरता को चार चांद लगती हैं. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ पर्यटकों को यहां की प्राचीनतम संस्कृति भी खूब भा रही है.

फागली उत्सव में मुखौटा पहनकर और नृत्य कर गालियां देकर भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.
फागली उत्सव में मुखौटा पहनकर और नृत्य कर गालियां देकर भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.

कल होगा फागली उत्सव का समापन- कल बुधवार को इस तीन दिवसीय फागली उत्सव का समापन हो जाएगा. तीन दिवसीय मुखौटा उत्सव में घाटी के स्थानीय लोगों के इलावा बाहरी राज्यों पश्चिमी बंगाल, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व अन्य राज्यों से भी पर्यटक यहां पर शिरकत करके फागली देखने का खूब लुत्फ उठा रहे हैं. पर्यटक इस नृत्य को देख कर रोमांचित हो उठे और इसकी फोटो व वीडियो को अपने कैमरा में कैद कर रहे हैं.

हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है फागली उत्सव.
हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है फागली उत्सव.

उत्सव में बनाया जाता है विशेष व्यंजन चिलड्डू- स्थानीय निवासी परस राम, योगराज, देवेंद्र का कहना है कि फागली के पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है. जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है. दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है, जिसमें मुखौटे पहने हुए मंडयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते हैं. इस दिन पूरे गांव में एक विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है और शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है. जिसमें स्त्री व पुरुष साथ-साथ नृत्य करते हैं.

फागली उत्सव में  विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है.
फागली उत्सव में विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है.

उत्सव में गालियां और अश्लील हरकतें की जाती हैं- इस तीन दिवसीय फागली उत्सव में परिवार के कुछ चयनित पुरुष सदस्य अपने अपने मुंह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते है और तीन दिन तक हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं. अंतिम दिन देव पूजा अर्चना के पश्चात देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृत्ति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है. इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है. क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियां देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है.

ये भी पढ़ें: होली उत्सव सुजानपुर में पहली बार मनाया जाएगा सरस मेला, जानिए इस उत्सव में और क्या रहेगा खास

कुल्लू में मनाया गया फागली उत्सव.

कुल्लू: हिमाचल की संस्कृति और त्योहार ही प्रदेश को अन्य राज्यों से अलग बनाती है. यहां पर नया साल शुरू होते ही कई त्योहारों को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो साल की अंत तक रहता है. हिमाचल की प्राचीनतम परम्पराएं ही यहां की पहचान है. यहां के लोग आज भी अपनी पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह त्योहार ही यहां के लोगों को आज भी एक दूसरे से जोड़े हुए है जिसके लिए यहां के लोग प्रशंसा के पात्र है.

बंजार में मनाया गया फागली उत्सव.
बंजार में मनाया गया फागली उत्सव.

फाल्गुन सक्रांति में मनाया जाता है ये त्योहार- ऐसा ही एक पौराणिक त्योहार आज भी हिमाचल प्रदेश में जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार में मनाया जाता है 'फागली त्योहार'. इन दिनों ग्रामीण इलाकों में फागली उत्सव मनाया जा रहा है. फागली उत्सव में ग्रामीणों द्वारा मुखौटे पहने जाते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. इन्हें पहनने के बाद वे नृत्य भी करते हैं. फागली उत्सव तीर्थन घाटी के विभिन्न गांवों में हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है.

फागली उत्सव में मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.
फागली उत्सव में मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.

मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां- कुछ चयनित किए हुए लोगों द्वारा मुखौटा नृत्य किया जाता है. इस नृत्य के जरिए गांव से बुरी शक्तियों को भगाया जाता है. जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है. इसी कड़ी में तीर्थन घाटी के गांव पेखड़ी, नाहीं , तिंदर, डिंगचा, फरियाडी, शर्ची, बशीर और कलवारी व अन्य गांवों में आजकल फागली उत्सव की धूम मची हुई है. आजकल तीर्थन घाटी में पर्यटक घूमने फिरने के साथ साथ यहां के प्राचीनतम मुखौटा नृत्य देखने का भी भरपूर आनंद ले रहे हैं.

फागली उत्सव देखने बाहरी राज्य से पहुंच रहे पर्यटक.
फागली उत्सव देखने बाहरी राज्य से पहुंच रहे पर्यटक.

फागली उत्सव देखने पहुंच रहे पर्यटक- ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए मशहूर उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थल बन गया है. अब पर्यटक यहां पर बाहरी राज्यों से ये मुखौटा नृत्य देखने के लिए पहुंच रहे हैं. पर्यटकों को ये फागली उत्सव और मुखौटा नृत्य काफी लुभा रहा है. यहां पर दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र में बसे छोटे-छोटे सुंदर गांव, यहां की नदियां नाले और झरने, चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों, जंगलों और बर्फ से ढकी ऊंची पर्वतशृंखलाएं इस घाटी की सुंदरता को चार चांद लगती हैं. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ पर्यटकों को यहां की प्राचीनतम संस्कृति भी खूब भा रही है.

फागली उत्सव में मुखौटा पहनकर और नृत्य कर गालियां देकर भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.
फागली उत्सव में मुखौटा पहनकर और नृत्य कर गालियां देकर भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां.

कल होगा फागली उत्सव का समापन- कल बुधवार को इस तीन दिवसीय फागली उत्सव का समापन हो जाएगा. तीन दिवसीय मुखौटा उत्सव में घाटी के स्थानीय लोगों के इलावा बाहरी राज्यों पश्चिमी बंगाल, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान व अन्य राज्यों से भी पर्यटक यहां पर शिरकत करके फागली देखने का खूब लुत्फ उठा रहे हैं. पर्यटक इस नृत्य को देख कर रोमांचित हो उठे और इसकी फोटो व वीडियो को अपने कैमरा में कैद कर रहे हैं.

हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है फागली उत्सव.
हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है फागली उत्सव.

उत्सव में बनाया जाता है विशेष व्यंजन चिलड्डू- स्थानीय निवासी परस राम, योगराज, देवेंद्र का कहना है कि फागली के पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है. जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है. दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है, जिसमें मुखौटे पहने हुए मंडयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते हैं. इस दिन पूरे गांव में एक विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है और शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है. जिसमें स्त्री व पुरुष साथ-साथ नृत्य करते हैं.

फागली उत्सव में  विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है.
फागली उत्सव में विशेष व्यंजन चिलड्डू बनाया जाता है.

उत्सव में गालियां और अश्लील हरकतें की जाती हैं- इस तीन दिवसीय फागली उत्सव में परिवार के कुछ चयनित पुरुष सदस्य अपने अपने मुंह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते है और तीन दिन तक हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं. अंतिम दिन देव पूजा अर्चना के पश्चात देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृत्ति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है. इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है. क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियां देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है.

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