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किन्नौर में पारंपरिक छाटो और किलटो की मांग, जानें क्या है इनकी खासियत

किन्नौरी टोकरी व किलटे राजल नामक लकड़ी से बने होते हैं जो काफी दुर्लभ लकड़ी है. इसे किन्नौर में शुद्ध माना जाता है इसमें खाना व अन्य खाद्य पदार्थ के सामान रखने से खराब नहीं होते. इसलिए इसकी मांग पूरी हिमाचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मांग है.

किन्नौर में प्राकृतिक लकड़ी से बनाए गए छाटो (टोकरी) और किलटो की भारी मांग
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Published : Nov 3, 2019, 10:57 PM IST

किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर में स्थानीय पारंपरिक छाटो और किलटो की मांग काफी बढ़ गई है. जिसके चलते स्थानीय ग्रामीणों ने अपने छाटो और किलटो के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए रिकांगपिओ चौक के पास जगह-जगह दुकानें लगाई हैं.

इस बार छाटो (टोकरी) व किलटो की डिमांड पूरे प्रदेश के अंदर सबसे ज्यादा है जो किन्नौर से वितरित होती है. इन छाटो में किन्नौर के लोग सर्दियों में रोटी फल फ्रूट सूखे मेवे और चावल व अन्य खाद्य प्रदार्थ रखते हैं. बता दें कि यह किन्नौरी टोकरी व किलटे राजल नामक लकड़ी से बने होते हैं जो काफी दुर्लभ लकड़ी है. इसे किन्नौर में शुद्ध माना जाता है इसमें खाना व अन्य खाद्य पदार्थ के सामान रखने से खराब नहीं होते. इसलिए इसकी मांग पूरी हिमाचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मांग है.

वीडियो.

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस बार उन्हें किन्नौर महोत्सव के दौरान इसके व्यापार में काफी अच्छा मुनाफा मिला है. देश के दूर-दूर राज्यों से आए लोगों ने भी छाटो व किलटे को काफी पसंद किया और कुछ लोगों ने इसकी खरीदारी भी कर अपने क्षेत्रों की ओर ले गए इसकी गुणवत्ता के कारण ही इसकी मांग अधिक है.

बता दें कि राजल नामक लकड़ी से बना छाटो और किलटे को बनाने में 4 से 5 घंटे लगते हैं और किन्नौर में इन चीजों बनाने के कारीगर कुछ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मिलते हैं और इसकी कीमत काफी ऊंचे दाम पर मिलते हैं क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ किस्म की कारीगरी है.

ये भी पढ़ें- Exclusive: इन्वेस्टर्स मीट को लेकर CM जयराम ठाकुर की ईटीवी भारत से खास चर्चा

किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर में स्थानीय पारंपरिक छाटो और किलटो की मांग काफी बढ़ गई है. जिसके चलते स्थानीय ग्रामीणों ने अपने छाटो और किलटो के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए रिकांगपिओ चौक के पास जगह-जगह दुकानें लगाई हैं.

इस बार छाटो (टोकरी) व किलटो की डिमांड पूरे प्रदेश के अंदर सबसे ज्यादा है जो किन्नौर से वितरित होती है. इन छाटो में किन्नौर के लोग सर्दियों में रोटी फल फ्रूट सूखे मेवे और चावल व अन्य खाद्य प्रदार्थ रखते हैं. बता दें कि यह किन्नौरी टोकरी व किलटे राजल नामक लकड़ी से बने होते हैं जो काफी दुर्लभ लकड़ी है. इसे किन्नौर में शुद्ध माना जाता है इसमें खाना व अन्य खाद्य पदार्थ के सामान रखने से खराब नहीं होते. इसलिए इसकी मांग पूरी हिमाचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मांग है.

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स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस बार उन्हें किन्नौर महोत्सव के दौरान इसके व्यापार में काफी अच्छा मुनाफा मिला है. देश के दूर-दूर राज्यों से आए लोगों ने भी छाटो व किलटे को काफी पसंद किया और कुछ लोगों ने इसकी खरीदारी भी कर अपने क्षेत्रों की ओर ले गए इसकी गुणवत्ता के कारण ही इसकी मांग अधिक है.

बता दें कि राजल नामक लकड़ी से बना छाटो और किलटे को बनाने में 4 से 5 घंटे लगते हैं और किन्नौर में इन चीजों बनाने के कारीगर कुछ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मिलते हैं और इसकी कीमत काफी ऊंचे दाम पर मिलते हैं क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ किस्म की कारीगरी है.

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Intro:किंन्नौर में छाटो (टोकरी) व किलटो की भारी मांग,किन्नौर में पर्यटक कर रहे खूब खरीददारी,किन्नौरी टोकरी में नही होता खाना खराब,प्राकृतिक लकड़ी से बनाया जाता है छाटो व किलटे को।




जनजातीय जिला किन्नौर में स्थानीय पारंपरिक छाटो व किलटो की मांग काफी बढ़ गई है जिसके चलते स्थानीय ग्रामीणों ने अपने छाटो व किलटो के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए रिकांगपिओ चौक के पास जगह-जगह दुकानें लगाई है इस बार छाटो (टोकरी) व किलटो की डिमांड पूरे प्रदेश के अंदर सबसे ज्यादा है जो किन्नौर से वितरित होती है इन छाटो में किन्नौर के लोग सर्दियों में रोटी फल फ्रूट सूखे मेवे व चावल व अन्य खाद्य प्रदार्थ रखते है ।




Body:बता दे कि यह किन्नौरी टोकरी व किलटे राजल नामक लकड़ी से बने होते हैं जो काफी दुर्लभ लकड़ी है इसे किन्नौर में शुद्ध माना जाता है इसमें खाना व अन्य खाद्य पदार्थ के सामान रखने से खराब नहीं होते इसलिए इसकी मांग पूरी हिमाचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मांग है जिसके चलते स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस बार उन्हें किन्नौर महोत्सव के दौरान इसके व्यापार में काफी अच्छा मुनाफा मिला है देश के दूर-दूर राज्यों से आए लोगों ने भी छाटो व किलटे को काफी पसंद किया और कुछ लोगों ने इसकी खरीदारी भी कर अपने क्षेत्रों की ओर ले गए इसकी गुणवत्ता के कारण ही इसकी मांग अधिक हज




Conclusion:बता दें कि इन राजल नामक लकड़ी से बना छाटो व किलटे को बनाने में 4 से 5 घंटे लगते हैं और किन्नौर में इन चीजों बनाने के कारीगर कुछ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मिलते हैं और इसकी कीमत काफी ऊंचे दाम पर मिलते हैं क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ किस्म की कारीगरी है।



बाईट-----ज्ञान नेगी
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