कुल्लू: देवी-देवताओं की मान्यताओं को जहां कुछ बातों को लेकर अंधविश्वास से जोड़ा जाता है, लेकिन एक परिपेक्ष्य ऐसा भी है जहां ये मान्यताएं लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. पर्यावरण संरक्षण के लिए आज ये मान्यताएं अहम भूमिक निभा रही है.
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में लोग सदियों पुरानी देव आज्ञा का आज भी पूरी शिद्दत से पालन करते हैं. धूमपान निषेध से दूर रहने के साथ ही जंगल यानी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाना पाप समझते हैं. जिले में फोजल क्षेत्र समेत आठ ऐसे जंगल हैं, जिनमें दराट (दरांती) और कुल्हाड़ी नहीं चलती.
इन जंगलों में कुल्हाड़ी न चलने का कारण देव आज्ञा माना जाता है. लोग मानते हैं कि पेड़ों में देवी-देवता वास करते हैं. इन जंगलों से ग्रामीणों का घास-पत्ती व लकड़ी लाना भी वर्जित है. राज्य का वन विभाग भी गांव के लोगों का सहयोग व समर्थन करता है. वन्य क्षेत्रों में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है और सूचना बोर्ड भी लगे हैं.
जिला मुख्यालय के साथ लगते लगवैली क्षेत्र में ही चार जंगल ऐसे हैं जहां वन विभाग भी कटान नहीं करवाता, जबकि स्थानीय लोगों के हिसाब से इन वनों का रखरखाव ही किया जा रहा है. लोगों ने जंगलों को देवताओं का नाम दे रखा है. इनमें लगवैली फॉरेस्ट बीट के फलाणी नारायण जंगल, पंचाली नारायण, माता फूंगणी व धारा फूंगणी जंगल मुख्य हैं.
बंजार वैली में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का कुछ वन क्षेत्र, शांगड़ के साथ लगता जंगल, मणिकर्ण घाटी में पुलगा का जंगल व जीवनाला रेंज के तहत भी दो-तीन हेक्टेयर जंगल को प्राचीन समय से ही प्रतिबंधित रखा गया है.
कुल्लू जिला देवी देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोत राम ने कहा कि पेड़ों में देवी-देवता वास करते हैं, इसलिए जंगलों में दराट-कुल्हाड़ी नहीं लगाते. उन्होंने कहा कि देव स्थानों के आसपास देवी स्वरूप जोगणियां भी रहती हैं, जिससे जंगलों की पवित्रता पर खास ध्यान दिया जाता है.
बता दें कि आज यानि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर केन्द्र सरकार ने देशव्यापी स्तर पर पौधारोपण अभियान से लोगों को सेल्फी के माध्यम से जोड़ने की पहल की है. विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र की एक पहल है जिसके माध्यम से पूरा विश्व इस दिन को प्रकृति को समर्पित कर देता है. लोग इस दिन को पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाते हैं.
बता दें कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया. इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया.
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