कुल्लू: देश-दुनिया में अपनी प्राचीन लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए जाने जाने वाला मलाणा गांव इस बार भी आपकी बार विधानसभा चुनावों (Himachal assembly election 2022) में अपनी हिस्सेदारी देगा. मलाणा गांव में अपनी अलग संसद बैठाने वाले प्राचीन गांव मलाणा में अभी तक 75 प्रतिशत लोग सरकार बनाने में अपना योगदान देते हैं. यहां पर मतदान तो ग्रामीण करते हैं, लेकिन नियम व कानून देवता के आदेशों से ही चलाते हैं. यही कारण है कि जिला प्रशासन हर बार यहां पर 100 प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को हासिल करने के लिए टीम तो भेजता है. लेकिन यह लक्ष्य मलाणा की चढ़ाई में ही दम तोड़ देता है.
मतदान के प्रति ग्रामीणों को किया जा रहा जागरूक: इस बार भी जिला प्रशासन मलाणा गांव को मतदान के बारे में जागरूक करने के लिए प्रयास कर रहा है. कुल्लू जिले की कुल्लू विधानसभा के तहत ये गांव आता है. इस बार यहां पर 967 मतदाता हैं, जिनमें 477 पुरुष और 490 महिलाएं हैं. मतदान के लिए बूथ गांव में ही बनाया गया है और पोलिंग पार्टी को करीब 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद यहां पहुंचना पड़ता है. (Malana Village in Himachal assembly election).
आज तक नहीं हुआ सौ प्रतिशत मतदान: साल 2017 के विधानसभा चुनावों की अगर बात करें तो यहां पर 843 मतदाता थे. इनमें 309 पुरुष और 184 महिला मतदाताओं ने मतदान किया था. जिसके चलते 57.55 प्रतिशत मतदान हुआ था. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 456 पुरुषों और 467 महिलाओं ने अपने मत का प्रयोग किया था. वहीं, साल 2021 के उपचुनाव में 914 मतदाताओं में से 344 पुरुष व 354 महिलाओं ने यहां मतदान किया था. इस दौरान मत प्रतिशतता 75.62 आंकी गई थी. ऐसे में इस बार जिला प्रशासन को उम्मीद है कि यह प्रतिशतता 100 का आंकड़ा पूरा कर पाएगी. (election in malana village of kullu).
यहां है भगवान परशुराम के पिता का मंदिर: गांव में देवता जमदग्नि ऋषि का एक मंदिर भी है, जिसे यहां देवता जमलू के नाम से भी जाना जाता है. जमदग्नि विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पिता थे. मान्यता है कि ऋषि जमलू ध्यानमग्न होने के लिये किसी एकांत स्थान की खोज कर रहे थे. इसी कड़ी में वो मलाणा पहुंचे, जहां आज उन्हें जमलू ऋषि के नाम से पूजा जाता है. दिलचस्प बात ये है कि पूरे गांव में जमलू देवता का एक भी चित्र नहीं है, पत्थर और लकड़ी से बने मंदिर में ऋषि जमलू की छोटी सी स्वर्ण जड़ित प्रतिमा है. इस मंदिर में किसी भी चीज को छूने की मनाही है. (Jamadagni Rishi Temple in Malana village)
मंदिर को छूने पर मिलता है दंड: मलाणा गांव में पर्यटक भी आते रहे हैं, लेकिन कोई भी बाहरी गांव में रात को नहीं रुक सकता है. गांव के गेट पर बाहरी लोगों से ग्रामीणों द्वारा पूछताछ भी की जाती है. गांव के प्रवेश गेट पर लगे बोर्ड पर कुछ नियम-कायदे हिंदी और अंग्रेजी में लिखे हुए हैं. ये दिशा निर्देश गांव में प्रवेश करने वाले बाहरी या पर्यटकों के लिए हैं. ये नियम कायदे खुद ग्रामीणों ने बनाए हैं, जिनमें साफ लिखा हुआ है कि गांव के देव स्थानों में किसी भी चीज को छूना मना है. ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान है.
मलाणा में रहते हैं सिकंदर के वंशज: कहा जाता है कि मलाणा गांव में सिकंदर के वंशज जिंदा हैं. आज भी यहां का अपना ही कानून है, जो इतना सख्त है कि लोग इस गांव में जाने तक से डरते हैं. कहा जाता है कि सिकंदर अपनी फौज के साथ खुद यहां आया था. भारत के कई क्षेत्रों पर जीत हासिल करने और राजा पोरस को हराने के बाद सिंकदर के कई वफादार सैनिक जख्मी हो गए थे. सिकंदर खुद भी बहुत थक गया था और वह घर वापस जाना चाहता था.
ब्यास तट के बाद जब सिकंदर इस गांव में पहुंचा तो यहां का शांत वातावरण उसे बेहद पसंद आया. वह काफी दिनों तक यहां ठहरा. कहा जाता है कि बाद में कुछ यौद्धा और सैनिक ऐसे थे जो वापस नहीं जा सकते थे. सिकंदर ने उन्हें यहीं रुकने का आदेश दिया था. बाद में वे लोग यहीं बस गए. मलाणा गांव में इन्होंने अपना परिवार बसाया और वंश आगे बढ़ाया (Ancient Democracy of the World Malana Village).
विश्व का अनूठा लोकतंत्र चलाने वाले मलाणा गांव में जहां पहले अपने ही नियम कायदे हुआ करते थे. वहीं, अब समय के साथ बदलाव भी होने लगे हैं. पहले यहां लोग लोकतंत्र के महापर्व चुनावों में भाग नहीं लेते थे, लेकिन अब लोगों का रुझान इस ओर बढ़ने लगा है. चुनाव आयोग को भी उम्मीद है कि अबकी बार यहां पर मतदान की प्रतिशतता शत-प्रतिशत हो. इससे पहले चुनावों में ग्रामीणों ने 50% से लेकर 75% तक अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है. वहीं, साल 2022 के विधानसभा चुनावों में अब लगता है कि ग्रामीण खुलकर मतदान करने आगे आएंगे. ताकि हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने में मलाणा की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सके.
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