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इस दिन मनाई जाएगी अक्षय नवमी, इस विधि से करें पूजा, मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद - अक्षय नवमी पर आवला पेड़ की पूजा

Akshaya Navami 2023: इस बार 21 नबंवर को अक्षय नवमी मनाई जाएगी. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं. ऐसे में आंवेल के पेड़ की पूजा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है.

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 18, 2023, 9:17 PM IST

कुल्लू: सनातन धर्म में कार्तिक मास का काफी महत्व है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर अक्षय नवमी मनाई जाती है. अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. अक्षय नवमी पर किए गए कार्यों से व्यक्ति को अक्षय फलों के प्राप्ति होती है. जिसका कभी क्षय नहीं होता है. वहीं, शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी. इसलिए अक्षय नवमी के दिन को सतयुग आदि के रूप में भी जाना जाता है. सभी प्रकार के दान पुण्य कार्यों के लिए इस तिथि का काफी महत्व है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर पूर्णिमा के दिन तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं. यही कारण है कि अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है.

आचार्य दीप कुमार का कहना है कि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक नवमी के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 21 नवंबर सुबह 3:16 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 22 नवंबर को रात 1:09 पर होगा. ऐसे में अक्षय नवमी मंगलवार के दिन 21 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 से लेकर दोपहर 12:07 तक रहेगा.

आचार्य दीप कुमार ने बताया कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. इस दिन जल में कच्चा दूध मिलाकर आंवले के पेड़ की जड़ में अर्पित किया जाता है और पेड़ पर फूल माला सिंदूर आदि से उसकी पूजा की जाती है. पेड़ के तने में कच्चा सूत या मौली को आठ बार लपेट कर और उसके बाद व्रत की कथा जरूर सुने. इस दिन पूरे परिवार के साथ भोजन भी आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है.

शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के पवित्र अवसर पर भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन में परिक्रमा करने का भी काफी महत्व है. इस दिन भगवान कृष्ण और विष्णु के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. पश्चिम बंगाल में इस दिन को जगाधत्री पूजा के नाम से जाना जाता है और यहां पर भी सभी महिलाएं अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए उपवास रखती है.

इस दिन भक्त आंवले के वृक्ष की परिक्रमा कर भक्त भोग लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उनसे सुख शांति काफी वरदान हासिल करते हैं. अक्षय नवमी को अक्षय तृतीया के बराबर ही महत्व दिया गया है. क्योंकि अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी और अक्षय नवमी के दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी.

ये भी पढ़ें: Rashifal : इन राशियों का जरूरी सामान खरीदने पर धन होगा खर्च, जानिए अपना राशिफल

कुल्लू: सनातन धर्म में कार्तिक मास का काफी महत्व है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर अक्षय नवमी मनाई जाती है. अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. अक्षय नवमी पर किए गए कार्यों से व्यक्ति को अक्षय फलों के प्राप्ति होती है. जिसका कभी क्षय नहीं होता है. वहीं, शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी. इसलिए अक्षय नवमी के दिन को सतयुग आदि के रूप में भी जाना जाता है. सभी प्रकार के दान पुण्य कार्यों के लिए इस तिथि का काफी महत्व है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर पूर्णिमा के दिन तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं. यही कारण है कि अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है.

आचार्य दीप कुमार का कहना है कि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक नवमी के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 21 नवंबर सुबह 3:16 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 22 नवंबर को रात 1:09 पर होगा. ऐसे में अक्षय नवमी मंगलवार के दिन 21 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:48 से लेकर दोपहर 12:07 तक रहेगा.

आचार्य दीप कुमार ने बताया कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. इस दिन जल में कच्चा दूध मिलाकर आंवले के पेड़ की जड़ में अर्पित किया जाता है और पेड़ पर फूल माला सिंदूर आदि से उसकी पूजा की जाती है. पेड़ के तने में कच्चा सूत या मौली को आठ बार लपेट कर और उसके बाद व्रत की कथा जरूर सुने. इस दिन पूरे परिवार के साथ भोजन भी आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर करने का विधान शास्त्रों में कहा गया है.

शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के पवित्र अवसर पर भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन में परिक्रमा करने का भी काफी महत्व है. इस दिन भगवान कृष्ण और विष्णु के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है. पश्चिम बंगाल में इस दिन को जगाधत्री पूजा के नाम से जाना जाता है और यहां पर भी सभी महिलाएं अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए उपवास रखती है.

इस दिन भक्त आंवले के वृक्ष की परिक्रमा कर भक्त भोग लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उनसे सुख शांति काफी वरदान हासिल करते हैं. अक्षय नवमी को अक्षय तृतीया के बराबर ही महत्व दिया गया है. क्योंकि अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी और अक्षय नवमी के दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी.

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