कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा करीब तीन सौ साल से मनाया जा रहा है. सप्ताह भर चलना वाला ये उत्सव इसलिए अनूठा है क्योंकि जब देश के बाकी हिस्सों में दशहरा उत्सव समाप्त हो जाता है तब इसका आयोजन किया जाता है. कहा जाता है कि इस अद्भुत पर्व में स्वर्ग से धरती पर देवी-देवता आते हैं. लोगों की उत्सव को लेकर अटूट आस्था जुड़ी हुई है. ये इसी से देखा जा सकता है कि कैसे देवताओं को लेकर लोग मीलों पैदल कुल्लू दशहरा में पहुंचते हैं.
दशहरे का आगाज बीज पूजा और देवी हिडिंबा, बिजली महादेव और माता भेखली का इशारा मिलने के बाद ही होता है. उसके बाद भगवान रघुनाथ जी की पालकी निकाली जाती है. भगवान रघुनाथ की पालकी और रथयात्रा निकलने के दौरान यहां पुलिस नहीं बल्कि उनके आगे चलने वाले देवता (धूमल नाग) ट्रैफिक का नियंत्रण करते हैं. कुल्लू दशहरा का वास्तविक नाम विजयादशमी से जोड़ा जाता है.
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अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के दौरान सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया जाता है. संध्या में देश- विदेश से कलाकार अपनी प्रस्तुतियां देने आते हैं. इसके अलावा दशहरा में खेल प्रेमियों के लिए खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित की जाती है.
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