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हिमाचल के कुल्लू से है 'राम जन्मभूमि' का अटूट रिश्ता, ये है पूरी कहानी

अयोध्या का देवभूमि के कुल्लू से अटूट रिश्ता रहा है. 650 ई. में भगवान रघुनाथ को अयोध्या से देवभूमि कुल्लू लाया गया था. इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है और यहां एक भव्य राम मंदिर भी बनाया गया है.

हिमाचल के कुल्लू से है 'राम जन्मभूमि' का अटूट रिश्ता
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Published : Nov 11, 2019, 1:04 PM IST

कुल्लू: अयोध्या (Ayodhya) का देवभूमि कुल्लू से 369 साल पुराना अटूट रिश्ता रहा है. 1650 ई. में भगवान रघुनाथ को अयोध्या से देवभूमि कुल्लू लाया गया था.

हालांकि, भगवान रघुनाथ को ढालपुर में 1660 ई. में विराजमान किया गया था. इससे पहले रघुनाथ को सबसे पहले मकराहड़ और बाद में धार्मिक स्थल मणिकर्ण में भी रखा गया. इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है और यहां एक भव्य राम मंदिर भी बनाया गया है. जिला कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

1650 ई. में कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियों को अयोध्या से दामोदर दास ने लाया था. उस समय कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में स्थापित किया था. तब एक दिन राजा को किसी दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास मोती हैं. राजा ने उससे मोती मांगे, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे. राजा के भय के कारण दुर्गा दत्त ने आत्मदाह कर लिया. इससे राजा को रोग लग गया.

रघुनाथ मंदिर कुल्लू

ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए राजा जगत सिंह (Raja Jagat Singh) के राजगुरु तारानाथ ने राजा को सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा. पथहारी बाबा ने उपाय सुझाया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में प्रतिष्ठापित किया जाए, तो राजा रोग मुक्त हो सकता है.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

पथहारी ने गुटका सिद्धि के ज्ञाता सुकेत में रह रहे अपने शिष्य दामोदर दास को अयोध्या में राम-सीता की मूर्तियों को लाने का काम सौंपा. दामोदर दास गुटका सिद्धि के प्रयोग से तत्काल अयोध्या पहुंचा. वहां पर त्रेतानाथ मंदिर में एक वर्ष तक पुजारियों की सेवा करते हुए पूजा विधि को समझता रहा.

एक दिन राम-सीता की मूर्ति उठाकर तत्काल हरिद्वार पहुंचा. पीछे से अयोध्या का गुटका सिद्धि का ज्ञाता जोधावर भी हरिद्वार पहुंच गया. दामोदर दास ने कहा कि मैं इन मूर्तियों को राजा जगत सिंह को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए ले जा रहा हूं. भगवान रघुनाथ भी स्वयं कुल्लू आना चाहते हैं. अगर विश्वास नहीं है तो मूर्तियों को उठाकर ले जाओ.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

जैसे ही जोधावर मूर्तियां उठाने लगा लेकिन उससे अंगुष्ठ मात्र मूर्तियां भी उठाई नहीं गईं, जबकि दामोदर दास ने मूर्तियों को तुरंत उठा लिया. इसके बाद मूर्तियां मकराहड़ और मणिकर्ण होते हुए कुल्लू लाई गईं. मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पीया, जिससे राजा का रोग खत्म हो गया.

जिला देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोत राम ठाकुर कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया. राजा स्वयं राजपाठ छोड़कर भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए. इसी परंपरा का निर्वहन राज परिवार सदियों से कर रहा है.

भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह का कहना है कि भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा संबंध है और अभी अयोध्या में भगवान रघुनाथ का त्रेतानाथ और राम लला का मंदिर है. अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने, ऐसी देव समाज की इच्छा है.

बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने देश के सबसे पुराने केस में ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. इस फैसले में कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला का हक दिया है, जबकि मुस्लिम पक्ष यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है.

ये भी पढ़ें- जानिए क्या है राम मंदिर का हिमाचल कनेक्शन, 1989 में बीजेपी ने रखी थी नींव

कुल्लू: अयोध्या (Ayodhya) का देवभूमि कुल्लू से 369 साल पुराना अटूट रिश्ता रहा है. 1650 ई. में भगवान रघुनाथ को अयोध्या से देवभूमि कुल्लू लाया गया था.

हालांकि, भगवान रघुनाथ को ढालपुर में 1660 ई. में विराजमान किया गया था. इससे पहले रघुनाथ को सबसे पहले मकराहड़ और बाद में धार्मिक स्थल मणिकर्ण में भी रखा गया. इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है और यहां एक भव्य राम मंदिर भी बनाया गया है. जिला कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

1650 ई. में कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियों को अयोध्या से दामोदर दास ने लाया था. उस समय कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में स्थापित किया था. तब एक दिन राजा को किसी दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास मोती हैं. राजा ने उससे मोती मांगे, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे. राजा के भय के कारण दुर्गा दत्त ने आत्मदाह कर लिया. इससे राजा को रोग लग गया.

रघुनाथ मंदिर कुल्लू

ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए राजा जगत सिंह (Raja Jagat Singh) के राजगुरु तारानाथ ने राजा को सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा. पथहारी बाबा ने उपाय सुझाया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में प्रतिष्ठापित किया जाए, तो राजा रोग मुक्त हो सकता है.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

पथहारी ने गुटका सिद्धि के ज्ञाता सुकेत में रह रहे अपने शिष्य दामोदर दास को अयोध्या में राम-सीता की मूर्तियों को लाने का काम सौंपा. दामोदर दास गुटका सिद्धि के प्रयोग से तत्काल अयोध्या पहुंचा. वहां पर त्रेतानाथ मंदिर में एक वर्ष तक पुजारियों की सेवा करते हुए पूजा विधि को समझता रहा.

एक दिन राम-सीता की मूर्ति उठाकर तत्काल हरिद्वार पहुंचा. पीछे से अयोध्या का गुटका सिद्धि का ज्ञाता जोधावर भी हरिद्वार पहुंच गया. दामोदर दास ने कहा कि मैं इन मूर्तियों को राजा जगत सिंह को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए ले जा रहा हूं. भगवान रघुनाथ भी स्वयं कुल्लू आना चाहते हैं. अगर विश्वास नहीं है तो मूर्तियों को उठाकर ले जाओ.

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रघुनाथ मंदिर कुल्लू

जैसे ही जोधावर मूर्तियां उठाने लगा लेकिन उससे अंगुष्ठ मात्र मूर्तियां भी उठाई नहीं गईं, जबकि दामोदर दास ने मूर्तियों को तुरंत उठा लिया. इसके बाद मूर्तियां मकराहड़ और मणिकर्ण होते हुए कुल्लू लाई गईं. मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पीया, जिससे राजा का रोग खत्म हो गया.

जिला देवी-देवता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोत राम ठाकुर कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया. राजा स्वयं राजपाठ छोड़कर भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए. इसी परंपरा का निर्वहन राज परिवार सदियों से कर रहा है.

भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह का कहना है कि भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा संबंध है और अभी अयोध्या में भगवान रघुनाथ का त्रेतानाथ और राम लला का मंदिर है. अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने, ऐसी देव समाज की इच्छा है.

बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने देश के सबसे पुराने केस में ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. इस फैसले में कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला का हक दिया है, जबकि मुस्लिम पक्ष यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है.

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अयोध्या का देवभूमि कुल्लू से 369 साल पुराना अटूट रिश्ता रहा है। 1650 ई. में भगवान रघुनाथ को अयोध्या से देवभूमि कुल्लू लाया गया था। हालांकि, रघुनाथ को ढालपुर के रघुनाथ में 1660 ई. में विराजमान किया गया था। इससे पहले रघुनाथ को सबसे पहले मकराहड़ और बाद में धार्मिक स्थल मणिकर्ण में भी रखा गया। इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है और यहां एक भव्य राम मंदिर भी बनाया गया है। जिला कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है। 1650 ई. में कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियों को अयोध्या से दामोदर दास ने लाया था। उस समय कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में स्थापित किया था। तब एक दिन राजा को किसी दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास मोती हैं। राजा ने उससे मोती मांगे लेकिन उसके पास मोती नहीं थे। राजा के भय के कारण दुर्गा दत्त ने आत्मदाह कर लिया। इससे राजा को रोग लग गया। ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने राजा को सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा। पथहारी बाबा ने उपाय सुझाया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में प्रतिष्ठापित किया जाए, तो राजा रोग मुक्त हो सकता है। पथहारी ने गुटका सिद्धि के ज्ञाता सुकेत में रह रहे अपने शिष्य दामोदर दास को अयोध्या में राम-सीता की मूर्तियों को लाने का काम सौंपा। दामोदर दास गुटका सिद्धि के प्रयोग से तत्काल अयोध्या पहुंचा। वहां पर त्रेतानाथ मंदिर में एक वर्ष तक पुजारियों की सेवा करते हुए पूजा विधि को समझता रहा। एक दिन राम-सीता की मूर्ति उठाकर तत्काल हरिद्वार पहुंचा। पीछे से अयोध्या का गुटका सिद्धि का ज्ञाता जोधावर भी हरिद्वार पहुंच गया। दामोदर दास ने कहा कि मैं इन मूर्तियों को राजा जगत सिंह को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए ले जा रहा हु। भगवान रघुनाथ भी स्वयं कुल्लू आना चाहते हैं। अगर विश्वास नहीं है तो मूर्तियों को उठाकर ले जाओ। जोधावर मूर्तियां उठाने लगा लेकिन उससे अंगुष्ठ मात्र मूर्तियां भी उठाई नहीं गईं। जबकि दामोदर दास ने मूर्तियों को तुरंत उठा लिया। इसके बाद मूर्तियां मकराहड़ और मणिकर्ण होते हुए कुल्लू लाई गईं। मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पीया, जिससे राजा का रोग खत्म हो गया। जिला देवीी वता कारदार संघ के पूर्व अध्यक्ष दोत राम ठाकुर कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया। राजा स्वयं राजपाठ छोड़कर भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए। इसी परंपरा का निर्वहन राज परिवार सदियों से कर रहा है।
Conclusion:बॉक्स
वही, भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह का कहना है कि भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा संबंध है और अभी अयोध्या में भगवान रघुनाथ का त्रेतानाथ और राम लला का मंदिर है। अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने, ऐसी देव समाज की इच्छा है।
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