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पांच दिवसीय राज्य स्तरीय गुरु सांगयास मेले का समापन, कलाकारों ने बांधा समां - बौद्ध धर्म

जिला के पूह खण्ड के तहत रारंग गांव में पांच दिवसीय गुरु सांगयास मेला का समापन हो गया है. बता दें कि ये मेला सांगयास गुरुओं की याद में मनाया जाता है.

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Published : Jul 12, 2019, 12:38 PM IST

किन्नौर: जिला के पूह खण्ड के तहत रारंग गांव में पांच दिवसीय गुरु सांगयास मेला का समापन हो गया है. बता दें कि पांच दिनों में गुरु सांगयास कार्यक्रम में अलग-अलग नृत्य, धार्मिक, अनुष्ठान, हवन किये जाते हैं, जिसमें सम्पूर्ण समाज के सुखी रहने कामना की जाती है.

डुकपा गुरु छोग्योंन रिनपोछे ने बताया कि गुरु सांगयास गुरुओं की याद व उनके तपस्या से किन्नौर की भूमि को पवित्र बनाया गया है, इसलिए हिमालयी क्षेत्रों में इस पर्व को मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि इस पर्व को पचास वर्षों से मनाया जा रहा है और इस पर्व में छम्म मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

गुरु सांगयास मेला(विडियो)

बता दें कि छम्म मेला का आयोजन 7 जुलाई से 11 जुलाई तक किया गया था. छम्म मेला बोदिस्ट में एक कलाकारी नृत्य है. जिसमें लामा नृत्य कर लोगों को आकर्षित किया जाती है. साथ ही मुखटे पहनकर बोदिस्ट व किन्नौरी नृत्य करते हैं, जिसे कायनग कहते है. कार्यक्रम में आए गुरु छोग्योंन रिंपोछे का जन्म पहले रारंग में हुआ था, लेकिन इस जन्म में उन्होंने लद्दाख में जन्म लिया है. हर साल अपने पुराने जन्म स्थल रारंग में गुरु सांगयास कार्यक्रम में आते हैं, जिसका इंतजार तमाम किन्नौरवासियों को रहता है.

किन्नौर: जिला के पूह खण्ड के तहत रारंग गांव में पांच दिवसीय गुरु सांगयास मेला का समापन हो गया है. बता दें कि पांच दिनों में गुरु सांगयास कार्यक्रम में अलग-अलग नृत्य, धार्मिक, अनुष्ठान, हवन किये जाते हैं, जिसमें सम्पूर्ण समाज के सुखी रहने कामना की जाती है.

डुकपा गुरु छोग्योंन रिनपोछे ने बताया कि गुरु सांगयास गुरुओं की याद व उनके तपस्या से किन्नौर की भूमि को पवित्र बनाया गया है, इसलिए हिमालयी क्षेत्रों में इस पर्व को मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि इस पर्व को पचास वर्षों से मनाया जा रहा है और इस पर्व में छम्म मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

गुरु सांगयास मेला(विडियो)

बता दें कि छम्म मेला का आयोजन 7 जुलाई से 11 जुलाई तक किया गया था. छम्म मेला बोदिस्ट में एक कलाकारी नृत्य है. जिसमें लामा नृत्य कर लोगों को आकर्षित किया जाती है. साथ ही मुखटे पहनकर बोदिस्ट व किन्नौरी नृत्य करते हैं, जिसे कायनग कहते है. कार्यक्रम में आए गुरु छोग्योंन रिंपोछे का जन्म पहले रारंग में हुआ था, लेकिन इस जन्म में उन्होंने लद्दाख में जन्म लिया है. हर साल अपने पुराने जन्म स्थल रारंग में गुरु सांगयास कार्यक्रम में आते हैं, जिसका इंतजार तमाम किन्नौरवासियों को रहता है.

Intro:
किन्नौर के पूह खण्ड के तहत रारँग गाँव मे पांच दिवसीय गुरु सांगयास मेला जो 7 जुलाई से 11 जुलाई तक चला जिसका आज समापन हुआ,इस कार्यक्रम के बतौर मुख्यातिथि प्रदेश वन निगम उपाध्यक्ष सूरत नेगी मौजूद रहे,व उनके साथ प्रशासन की ओर से एडीएम पूह अश्वनी कुमार,डीएफओ किन्नौर चमन राव,एक्सईन कल्पा बीएस गुलेरिया, प्रदेश एसटी मोर्चा के महासचिव यशवंत नेगी व बौद्ध बिक्षुगन व अन्य गणमान्य भी मौजूद रहे।Body: इस दौरान डुकपा गुरु छोग्योंन रिनपोछे ने सभी गन्मानयो का रारंग गुरु सांगयास में पधारने पर हार्दिक अभिनन्दन किया व गुरु सांगयास के कार्यक्रम की जानकारी दी उन्होंने कहा कि गुरु सांगयास गुरुओं की यादों व उनके तपस्या से किन्नौर की भूमि को पवित्र बनाया और हिमालयी क्षेत्रो में इस पर्व को मनाया जाता है व धर्म गुरुओं जिनकी याद में यह कार्यक्रम मनाया जाता है उन्होंने बताया कि इस पर्व को पच्चास वर्षो से मनाया जा रहा है और इस पर्व में छम्म मेले को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है Conclusion:बता दे कि छम्म मेला बोदिस्ट में एक कलाकारी नृत्य है जिसमे लामा नृत्य कर लोगो को आकर्षित करते है,और मुखोटे पहनकर बोदिस्ट व किन्नौरी नृत्य किया करते है जिसे कायनग कहते है बताते चले कि इन पांच दिनों में गुरु सांगयास कार्यक्रम में अलग अलग नृत्य,धार्मिक अनुष्ठान,हवन किये जाते है जिसमें सम्पूर्ण समाज को सुखी की कामना भी मांगी जाती है इस कार्यक्रम में आये मुख्य रूप से गुरु छोग्योंन रिंपोछे का जन्म पहले रारँग में था लेकिन इस जन्म में उन्होंने लद्दाख में जन्म लिया है लेकिन वे हर वर्ष अपने पुराने जन्म स्थल रारँग में गुरु सांगयास कार्यक्रम में आते है जिसका इंतज़ार तमाम किन्नौरवासियो को रहता है और उनके आशीर्वाद से ही इस कार्यक्रम की शुरुआत व अंत होता है।
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