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कम बर्फबारी से किन्नौरी सेब की मिठास हो सकती है फीकी! जानें वजह - किन्नौरी सेब न्यूज

भारी बर्फबारी और अपनी सेब की मिठास के लिए भी जिला किन्नौर काफी प्रसिद्ध है, लेकिन जिले में पिछले कई वर्षों से कुदरत का कहर जिले में बरसता दिख रहा है या फिर ऐसा कहें कि जिला में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों से उड़ती धूल या बड़े-बड़े निर्माणाधीन कार्यों में प्रयोग होने वाले डायनामाइट ब्लास्ट से बदलते हुए वातावरण का कहर है.

apple of Kinnaur, किन्नौर का सेब
फोटो.
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Published : Mar 11, 2021, 7:34 PM IST

Updated : Mar 12, 2021, 12:15 PM IST

किन्नौर: जिला किन्नौर अपनी कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के लिए समूचे देशभर में जाना जाता है. वहीं, भारी बर्फबारी और अपनी सेब की मिठास के लिए भी जिला किन्नौर काफी प्रसिद्ध है, लेकिन जिले में पिछले कई वर्षों से कुदरत का कहर जिले में बरसता दिख रहा है या फिर ऐसा कहें कि जिला में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों से उड़ती धूल या बड़े-बड़े निर्माणाधीन कार्यों में प्रयोग होने वाले डायनामाइट ब्लास्ट से बदलते हुए वातावरण का कहर है.

वीडियो रिपोर्ट.

किन्नौर में बदलता मौसम

किन्नौर जिला अपने भारी बर्फबारी के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है, लेकिन बदलते मौसम के साथ-साथ अब शायद जिले का वातावरण भी बदलने लगा है. कम बर्फबारी बदलता मौसम, पहाड़ों से ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी है.

नदियों का जलस्तर बढ़ा

किन्नौर जिले में शहरों की तरह बढ़ती गर्मी शायद अब जिला के नकदी फसलों के लिए भी घातक बनकर सामने आ सकती है. जिले में बीते कुछ वर्षों से बर्फ बहुत कम गिरी है. जिसके चलते जिले में धीरे-धीरे नकदी फसलों की गुणवत्ता पर भी अब असर पड़ता दिख रहा है.

जिले की मुख्य आय का साधन जिला का मशहूर किन्नौरी सेब है, लेकिन अब सेब के रंग व गुणवत्ता पर फर्क पड़ता भी दिख रहा है. जिले में हर वर्ष करीबन 30 से 32 लाख के आसपास सेब की फसल सेब के मंडियों तक निर्यात होती हैं, लेकिन जिला के सेब को अब पहले के मुताबिक उतने अच्छे दाम मिलते नहीं दिख रहे हैं. कारण है सेब की गुणवत्ता कम होना.

6 से 8 फीट बर्फबारी होती थी

जिला किन्नौर में किसी समय 6 से 8 फीट बर्फबारी होती थी तब सेब की फसल व दूसरी नकदी फसल जिसमें मटर, राजमाह, आलू, इत्यादि खूब होती थी और लोगों को बाजार से खाने पीने की चीजों की जरूरत नहीं पड़ती थी. बदलते दौर के साथ 90 के दशक के बाद जिला किन्नौर अपने सेब की अच्छी गुणवत्ता वाली फसल के लिए देशभर में जाना जाने लगा.

वर्ष 2012 तक किन्नौरी सेब ने सेब मंडी में अपनी गुणवत्ता के लिए काफी नाम कमाया था, लेकिन अब किन्नौर जिला कम बर्फबारी व सिंचाई के लिए पानी की कमी से जूझ रहा है, क्योंकि पहाड़ों पर धीरे-धीरे बर्फ कम हो रही है. छोटे-छोटे नदी के जलस्त्रोत कम हो रहे हैं.

सेब की मिठास भी छिनने लगी है

वहीं, जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों से क्षेत्र के सारे प्राकृतिक जलस्त्रोत सूखने से शायद अब जिले के सेब की मिठास भी छिनने लगी है. जिला किन्नौर में यदि सेब की फसल कम होने लगी तो जिला के बागवानों के विकास कार्यों में भी रुकावट आ सकती है.

जिला में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों के बाद परियोजनाओं के आसपास के सेब की फसल में इतनी धूल मिट्टी होती है कि उस सेब की गुणवत्ता काफी हद्द तक खराब होने की शिकायतें ग्रामीणों द्वारा सरकार को कई बार की गई है, लेकिन परियोजनाओं के कार्य के समक्ष शायद जिला के प्रभावित क्षेत्र के लोगों की आवाज दब जाती है.

ऐसे में जिला किन्नौर में सेब ही नहीं अन्य पारंपरिक फसलें भी लुप्त होने की कगार पर हैं या मानें कि कम बर्फबारी से भी सभी नकदी व पारंपरिक फसलें अब जिला के खेतों से गायब होने लगी है.

किन्नौरी सेब की खासियत

किन्नौरी सेब इसलिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है, क्योंकि यह मीठा व लंबे समय तक चलने वाला सेब है. जिसे शहरों के कोल्ड स्टोर में रखने के बाद भी यह एक वर्ष तक खराब नहीं होता और यह इसलिए होता है क्योंकि यहां के सेब के बगीचों में हर वर्ष भारी बर्फबारी से चिलिंग आवर पूरा होता है और ठंड के कारण यहां के सेब की कठोरता दूसरे क्षेत्रों के सेब के मुकाबले कई गुना ज्यादा है, लेकिन इस वर्ष इतनी कम बर्फबारी हुई है कि जिससे शायद जिला के सेब बागवान भी खुश नहीं दिख रहे हैं.

इस बार न ही चिलिंग आवर का समय पूरा हुआ है न ही जिला के मुख्य जलस्रोत के बढ़ने की आशंका दिख रही है, क्योंकि जिला के पहाड़ों में बर्फ कम टिकी हुई है जो जल्द ही पिघल सकती है और गर्मियों में सिंचाई के लिए पानी की दिक्कत हो सकती है.

जिला किन्नौर से अधिक बर्फबारी उन क्षेत्रों में हुई जहां जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्य नहीं चले हैं या जहां पर जलविद्युत परियोजनाओं के कार्य नहीं हुए हैं. इस बारे में किन्नौर जिला के जानकार बताते हैं कि इस वर्ष शिमला जिले जो किन्नौर से काफी समतल स्थान है.

जिला किन्नौर के उद्यान विभाग के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. सूरत नेगी का कहना है कि इस वर्ष बर्फबारी काफी कम हुई है. जिसके चलते जिला के सेब बगीचों को चिलिंग आवर पूरी तरह पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि सेब के बगीचों को करीबन 1600 घंटे तक चिलिंग आवर की जरूरत होती है, लेकिन इस वर्ष चिलिंग आवर भी सही रूप से नहीं हो पाया.

सेब की गुणवत्ता पर असर

शायद इस कारण भी इस बार सेब की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है और जिला में कम बर्फबारी होना भी सेब बागवानों के लिए चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि ऐसे में इस वर्ष समय से थोड़ी जल्दी सेब का सीजन भी शुरू होने की उम्मीद है और सेब की गुणवत्ता पर भी काफी प्रभाव पड़ सकता है जो बागवानों के लिए समस्या भी पैदा कर सकती है.

उन्होंने कहा कि यदि समय-समय पर बारिश होती रही तो शायद सेब की फसल में सिंचाई की समस्या से निजात मिल सकती है. उन्होंने कहा कि जिले का सेब बहुत रसीला और बिना रासायनिक छिड़काव के कारण काफी अच्छा रहता है, क्योंकि यहां अच्छी बर्फबारी के कारण यहां के सेब की गुणवत्ता अच्छी होती है, लेकिन इस वर्ष शायद किन्नौरी सेब की वो मीठी महक व स्वाद पर भी असर कर सकता है.

बता दें कि इस वर्ष जिला के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी कम बर्फबारी से जल्द ही हरियाली आ रही है. जिससे जिले की प्राकृतिक चीजों में बदलाव आना कहीं जिला के बदलते मौसम व जलविद्युत परियोजनाओं का कहर है इसे कहना भी मुश्किल है और यह भी शायद कारण हो सकता है.

लोग अब मजबूरन खेतों में सिंचाई कर रहे हैं

इस बार सर्दियों के कम पड़ने से भी न ही जमीन को वो सकूंन मिला न ही सेब के बागवानों की जरूरत पूरी हुई. बस इंतजार था तो बर्फबारी का, लेकिन वो भी इस वर्ष नहीं हुई. जिला में इस वर्ष बर्फबारी नहीं होने से लोग अब मजबूरन खेतों में सिंचाई कर रहे हैं, जबकि जिला में जून जुलाई के बाद ही सिंचाई होती थी. पहली बार लोगों ने मार्च महीने में सिंचाई व खेतों के दूसरे काम शुरू किए हैं जो कुदरत के बदलते स्वरूप को भी दर्शा रहा है या मानव जाति को कुदरत की खतरे चेतावनी है.

ये भी पढ़ें- राजधानी शिमला में महाशिवरात्रि की धूम, शिवालयों में गूंजे महादेव के जयकारे

किन्नौर: जिला किन्नौर अपनी कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के लिए समूचे देशभर में जाना जाता है. वहीं, भारी बर्फबारी और अपनी सेब की मिठास के लिए भी जिला किन्नौर काफी प्रसिद्ध है, लेकिन जिले में पिछले कई वर्षों से कुदरत का कहर जिले में बरसता दिख रहा है या फिर ऐसा कहें कि जिला में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों से उड़ती धूल या बड़े-बड़े निर्माणाधीन कार्यों में प्रयोग होने वाले डायनामाइट ब्लास्ट से बदलते हुए वातावरण का कहर है.

वीडियो रिपोर्ट.

किन्नौर में बदलता मौसम

किन्नौर जिला अपने भारी बर्फबारी के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है, लेकिन बदलते मौसम के साथ-साथ अब शायद जिले का वातावरण भी बदलने लगा है. कम बर्फबारी बदलता मौसम, पहाड़ों से ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी है.

नदियों का जलस्तर बढ़ा

किन्नौर जिले में शहरों की तरह बढ़ती गर्मी शायद अब जिला के नकदी फसलों के लिए भी घातक बनकर सामने आ सकती है. जिले में बीते कुछ वर्षों से बर्फ बहुत कम गिरी है. जिसके चलते जिले में धीरे-धीरे नकदी फसलों की गुणवत्ता पर भी अब असर पड़ता दिख रहा है.

जिले की मुख्य आय का साधन जिला का मशहूर किन्नौरी सेब है, लेकिन अब सेब के रंग व गुणवत्ता पर फर्क पड़ता भी दिख रहा है. जिले में हर वर्ष करीबन 30 से 32 लाख के आसपास सेब की फसल सेब के मंडियों तक निर्यात होती हैं, लेकिन जिला के सेब को अब पहले के मुताबिक उतने अच्छे दाम मिलते नहीं दिख रहे हैं. कारण है सेब की गुणवत्ता कम होना.

6 से 8 फीट बर्फबारी होती थी

जिला किन्नौर में किसी समय 6 से 8 फीट बर्फबारी होती थी तब सेब की फसल व दूसरी नकदी फसल जिसमें मटर, राजमाह, आलू, इत्यादि खूब होती थी और लोगों को बाजार से खाने पीने की चीजों की जरूरत नहीं पड़ती थी. बदलते दौर के साथ 90 के दशक के बाद जिला किन्नौर अपने सेब की अच्छी गुणवत्ता वाली फसल के लिए देशभर में जाना जाने लगा.

वर्ष 2012 तक किन्नौरी सेब ने सेब मंडी में अपनी गुणवत्ता के लिए काफी नाम कमाया था, लेकिन अब किन्नौर जिला कम बर्फबारी व सिंचाई के लिए पानी की कमी से जूझ रहा है, क्योंकि पहाड़ों पर धीरे-धीरे बर्फ कम हो रही है. छोटे-छोटे नदी के जलस्त्रोत कम हो रहे हैं.

सेब की मिठास भी छिनने लगी है

वहीं, जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों से क्षेत्र के सारे प्राकृतिक जलस्त्रोत सूखने से शायद अब जिले के सेब की मिठास भी छिनने लगी है. जिला किन्नौर में यदि सेब की फसल कम होने लगी तो जिला के बागवानों के विकास कार्यों में भी रुकावट आ सकती है.

जिला में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों के बाद परियोजनाओं के आसपास के सेब की फसल में इतनी धूल मिट्टी होती है कि उस सेब की गुणवत्ता काफी हद्द तक खराब होने की शिकायतें ग्रामीणों द्वारा सरकार को कई बार की गई है, लेकिन परियोजनाओं के कार्य के समक्ष शायद जिला के प्रभावित क्षेत्र के लोगों की आवाज दब जाती है.

ऐसे में जिला किन्नौर में सेब ही नहीं अन्य पारंपरिक फसलें भी लुप्त होने की कगार पर हैं या मानें कि कम बर्फबारी से भी सभी नकदी व पारंपरिक फसलें अब जिला के खेतों से गायब होने लगी है.

किन्नौरी सेब की खासियत

किन्नौरी सेब इसलिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है, क्योंकि यह मीठा व लंबे समय तक चलने वाला सेब है. जिसे शहरों के कोल्ड स्टोर में रखने के बाद भी यह एक वर्ष तक खराब नहीं होता और यह इसलिए होता है क्योंकि यहां के सेब के बगीचों में हर वर्ष भारी बर्फबारी से चिलिंग आवर पूरा होता है और ठंड के कारण यहां के सेब की कठोरता दूसरे क्षेत्रों के सेब के मुकाबले कई गुना ज्यादा है, लेकिन इस वर्ष इतनी कम बर्फबारी हुई है कि जिससे शायद जिला के सेब बागवान भी खुश नहीं दिख रहे हैं.

इस बार न ही चिलिंग आवर का समय पूरा हुआ है न ही जिला के मुख्य जलस्रोत के बढ़ने की आशंका दिख रही है, क्योंकि जिला के पहाड़ों में बर्फ कम टिकी हुई है जो जल्द ही पिघल सकती है और गर्मियों में सिंचाई के लिए पानी की दिक्कत हो सकती है.

जिला किन्नौर से अधिक बर्फबारी उन क्षेत्रों में हुई जहां जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्य नहीं चले हैं या जहां पर जलविद्युत परियोजनाओं के कार्य नहीं हुए हैं. इस बारे में किन्नौर जिला के जानकार बताते हैं कि इस वर्ष शिमला जिले जो किन्नौर से काफी समतल स्थान है.

जिला किन्नौर के उद्यान विभाग के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. सूरत नेगी का कहना है कि इस वर्ष बर्फबारी काफी कम हुई है. जिसके चलते जिला के सेब बगीचों को चिलिंग आवर पूरी तरह पूरा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि सेब के बगीचों को करीबन 1600 घंटे तक चिलिंग आवर की जरूरत होती है, लेकिन इस वर्ष चिलिंग आवर भी सही रूप से नहीं हो पाया.

सेब की गुणवत्ता पर असर

शायद इस कारण भी इस बार सेब की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है और जिला में कम बर्फबारी होना भी सेब बागवानों के लिए चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि ऐसे में इस वर्ष समय से थोड़ी जल्दी सेब का सीजन भी शुरू होने की उम्मीद है और सेब की गुणवत्ता पर भी काफी प्रभाव पड़ सकता है जो बागवानों के लिए समस्या भी पैदा कर सकती है.

उन्होंने कहा कि यदि समय-समय पर बारिश होती रही तो शायद सेब की फसल में सिंचाई की समस्या से निजात मिल सकती है. उन्होंने कहा कि जिले का सेब बहुत रसीला और बिना रासायनिक छिड़काव के कारण काफी अच्छा रहता है, क्योंकि यहां अच्छी बर्फबारी के कारण यहां के सेब की गुणवत्ता अच्छी होती है, लेकिन इस वर्ष शायद किन्नौरी सेब की वो मीठी महक व स्वाद पर भी असर कर सकता है.

बता दें कि इस वर्ष जिला के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी कम बर्फबारी से जल्द ही हरियाली आ रही है. जिससे जिले की प्राकृतिक चीजों में बदलाव आना कहीं जिला के बदलते मौसम व जलविद्युत परियोजनाओं का कहर है इसे कहना भी मुश्किल है और यह भी शायद कारण हो सकता है.

लोग अब मजबूरन खेतों में सिंचाई कर रहे हैं

इस बार सर्दियों के कम पड़ने से भी न ही जमीन को वो सकूंन मिला न ही सेब के बागवानों की जरूरत पूरी हुई. बस इंतजार था तो बर्फबारी का, लेकिन वो भी इस वर्ष नहीं हुई. जिला में इस वर्ष बर्फबारी नहीं होने से लोग अब मजबूरन खेतों में सिंचाई कर रहे हैं, जबकि जिला में जून जुलाई के बाद ही सिंचाई होती थी. पहली बार लोगों ने मार्च महीने में सिंचाई व खेतों के दूसरे काम शुरू किए हैं जो कुदरत के बदलते स्वरूप को भी दर्शा रहा है या मानव जाति को कुदरत की खतरे चेतावनी है.

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Last Updated : Mar 12, 2021, 12:15 PM IST
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