किन्नौर: प्रदेश के किन्नौर जिले में इन दिनों सेब का सीजन प्रथम चरण पर है और बागवानों के निचले क्षेत्रों में सेब के तुड़ान का कार्य भी आरंभ हो चुका है. वहीं, सेब मंडियों में इस साल सेब के फसल के अच्छे दाम भी मिल रहे हैं, क्योंकि इस वर्ष सेब मंडियों में बागवानों को प्रति किलो के हिसाब से सेब के दाम मिल रहे हैं, लेकिन उसमें सेब की गुणवत्ता देखी जा रही है. ऐसे में सेब के फसल की गुणवत्ता बनी रहे, जिसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र रिकांगपिओ के वैज्ञानिकों द्वारा सेब बागवानों के बगीचों में जाकर सेब की फसल में फैल रही बीमारियों से बचाव के तरीके और अन्य उपाय भी साझा किया जा रहा है.
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अरुण नेगी ने कहा कि किन्नौर में प्रतिवर्ष सेब की पेटियां करीब 33 न्यूनतम व अधिकतम 39 से 40 लाख पेटिया निकलती है, जो देश प्रदेश और विदेश के बड़ी सेब मंडियों और फिर लोगों तक पहुंचती है जिसकी कीमत बहुत अधिक होती है. क्योंकि किन्नौर के सेब बागवान रासायनिक छिड़काव का अधिक प्रयोग नहीं करते. लिहाजा किन्नौर के सेब के मार्केट में सबसे अधिक दाम होते हैं. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र रिकांगपिओ द्वारा बागवानों के सेब के फसल की गुणवत्ता बनी रहे, इसके लिए बागवानों को समयानुसार ऑर्गेनिक छिड़काव, समय पर सेब के बगीचों में पानी की सिंचाई, समय और गोबर लगाना, प्रूनिंग करना, व मिट्टी में फैलने वाली बीमारियों से सेब के पेड़ों को बचाने के बारे में जानकारियां दी जा रही हैं, ताकि बागवानों के सेब की फसल गुणवत्तापूर्ण हो.
अरुण नेगी ने कहा कि किन्नौर जिले में आर्थिकी का मुख्य साधन सेब है. जिसकी खेती लगभग सभी पंचायतो में होती है और हर साल मंडियों में अच्छे सेब की मांग भी रहती है. ऐसे में किन्नौर में कई सालों से लोग बागवानी क्षेत्र की ओर अग्रसर होकर सेब के खेती कर रहे हैं, लेकिन जानकारी के आभाव में कुछ सेब बागवानों को उस हिसाब से सेब की फसल नहीं मिल रहीं, जितना वे मेहनत कर रहे हैं. ऐसे में बागवानों को आधुनिक तरीकों से बागवानी करने के बारे में भी जानकारी दी जा रही है, ताकि समय बचाव, कम खेतों में सेब के बगीचे तैयार कर अच्छी आमदनी कमा सके.