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देशभर में मशहूर है किन्नौर का चिलगोजा, बदलते दौर के साथ अब हो रहा विलुप्त - पाइंस जिराडियाना

हिमाचल के किन्नौर में पाया जाने वाला चिलगोजा इन दिनों विलुप्त होने की कगार पर है. दरअसल जिले में विकास के नाम पर इन पेड़ों को काटा जा रहा है जिससे यहां रहने वाले लोगों की आर्थिकी पर खासा असर पड़ेगा. सेब के बाद चिलगोजा किन्नौर वासियों के लिए आर्थिकी का दूसरा साधन है. लेकिन जिले में पेड़ों का कटान लोगों की परेशानी बन गया है.

चिलगोजे से फल निकालते लोग
चिलगोजे से फल निकालते लोग
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Published : Aug 20, 2021, 3:37 PM IST

Updated : Aug 20, 2021, 5:16 PM IST

किन्नौर: जिला किन्नौर अपने सबसे अलग प्राकृतिक चीजों के लिए पूरे देशभर में जाना जाता है, लेकिन आज यहां आधुनिकता और विकास कार्यों के चलते जिले की कई दुर्लभ चीजें हमसे दूर होती नजर आ रही हैं. दरअसल जिले किन्नौर में चिलगोजा नाम का फल पाया जाता है. सेब के बाद यहां चिलगोजा ही किन्नौर वासियों की आमदनी का जरिया है. इन दिनों जिले में जलविद्युत परियोजनाओं के चलते हजारों की संख्या में पेड़ों का कटान हो रहा है. इसकी वजह से चिलगोजे की ये प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है.

चिलगोजा भारतवर्ष के कुछेक हिस्सों में ही पाया जाता है. भारतीय बाजार में इसकी कीमत 2 से 3 हजार रुपए प्रतिकिलो है. वहीं, अब इसके कटान से किन्नौर वासियों की परेशानी बढ़ गई है. वे सरकार और प्रशासन से इनके कटान को रोकने की मांग कर रहे हैं.

वीडियो.

चिलगोजे का पेड़ सदाबहार होता है जो 12 महीने हराभरा रहता है. इस पेड़ में इस वर्ष की फसल लगने के साथ साथ अगले वर्ष की फसल भी इसी वर्ष पेड़ में तैयार हो जाती है जो इस प्राकृतिक पेड़ की खासियत है. चिलगोजे की फसल को तैयार होने में करीब 7 महीने लग जाते हैं जिसके बाद इस फसल को पेड़ों से निकालने के लिए स्पेशल मजदूरों को लाया जाता है जिन्हें चिलगोजे के पेड़ से फसल को तोड़ने का अनुभव हो. दरअसल इस वर्ष की फसल के साथ दूसरे वर्ष की फसल भी लगी होती है जिसे नुकसान न हो, इसलिए अनुभवी मजदूर ही इसकी फसल को तोड़ते हैं.

chilgoza pine trees
चिलगोजे से फल निकालते लोग

जब चिलगोजे की फसल पेड़ों पर लगती है तो समूचा क्षेत्र हराभरा और इस पेड़ की वजह से पूरे क्षेत्र का नजारा देखने लायक होता है. इस पेड़ से निकला चिलगोजा बहुत ही गुणकारी होता है जिसे जिला किन्नौर में बर्फबारी के दौरान अपने शरीर को गर्म रखने के लिए आग पर भुनकर भी खाया जाता है. यही नहीं चिलगोजे से निकला तेल भी बहुत ही गुणकारी माना जाता है और चिलगोजे के गिरी को पीसकर नमकीन चाय और चटनी आदि में भी प्रयोग किया जाता है. चिलगोजे का पेड़ एक ऐसा पेड़ है जिसकी लकड़ी, फसल और इससे निकलने वाला चिपचिपा गोंद भी आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है.

chilgoza pine trees
चिलगोजा

चिलगोजे का पेड़ ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में भी सक्षम है और इस पेड़ के आसपास इसकी गंध के कारण पक्षी भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते. चिलगोजे की फसल रिहायशी इलाकों से काफी दूर दराज जंगल वाले क्षेत्रों में तैयार होती है और इस फसल को न तो बंदर खाते हैं, न ही कोई जंगली जानवर. इसका वानस्पतिक नाम पाइंस जिराडियाना है.

chilgoza pine trees
चिलगोजे के पेड़ से निकला फल

चिलगोजे का महत्व किन्नौर जिले के हर कार्यक्रम और शादी समारोह में है. यहां की संस्कृति में चिलगोजा शुद्ध और सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक माना जाता है. वहीं, देवी देवताओं को भी चिलगोजे की माला पहनाकर पूजा-आराधना की जाती है.

chilgoza pine trees
चिलगोजे का पेड़

जिला किन्नौर की चिलगोजे की वजह से समूचे देश में अलग पहचान है, लेकिन आज चिलगोजे के पेड़ों की विकास के नाम पर कटाई शुरू की जा चुकी है. हजारों की संख्या में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों में इन पेड़ों को काटकर इसकी प्रजाति को विलुप्त किया जा रहा है.

chilgoza pine trees
सड़क किनारे रखे चिलगोजे

ये भी पढ़ें: पूर्व पीएम राजीव गांधी की 77वीं जयंती: सीएम जयराम सहित कांग्रेस नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

ये भी पढ़ें: पत्रकारों ने पूछा सीएम कब बनोगे, अनुराग ठाकुर ने दिया ये जवाब

किन्नौर: जिला किन्नौर अपने सबसे अलग प्राकृतिक चीजों के लिए पूरे देशभर में जाना जाता है, लेकिन आज यहां आधुनिकता और विकास कार्यों के चलते जिले की कई दुर्लभ चीजें हमसे दूर होती नजर आ रही हैं. दरअसल जिले किन्नौर में चिलगोजा नाम का फल पाया जाता है. सेब के बाद यहां चिलगोजा ही किन्नौर वासियों की आमदनी का जरिया है. इन दिनों जिले में जलविद्युत परियोजनाओं के चलते हजारों की संख्या में पेड़ों का कटान हो रहा है. इसकी वजह से चिलगोजे की ये प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है.

चिलगोजा भारतवर्ष के कुछेक हिस्सों में ही पाया जाता है. भारतीय बाजार में इसकी कीमत 2 से 3 हजार रुपए प्रतिकिलो है. वहीं, अब इसके कटान से किन्नौर वासियों की परेशानी बढ़ गई है. वे सरकार और प्रशासन से इनके कटान को रोकने की मांग कर रहे हैं.

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चिलगोजे का पेड़ सदाबहार होता है जो 12 महीने हराभरा रहता है. इस पेड़ में इस वर्ष की फसल लगने के साथ साथ अगले वर्ष की फसल भी इसी वर्ष पेड़ में तैयार हो जाती है जो इस प्राकृतिक पेड़ की खासियत है. चिलगोजे की फसल को तैयार होने में करीब 7 महीने लग जाते हैं जिसके बाद इस फसल को पेड़ों से निकालने के लिए स्पेशल मजदूरों को लाया जाता है जिन्हें चिलगोजे के पेड़ से फसल को तोड़ने का अनुभव हो. दरअसल इस वर्ष की फसल के साथ दूसरे वर्ष की फसल भी लगी होती है जिसे नुकसान न हो, इसलिए अनुभवी मजदूर ही इसकी फसल को तोड़ते हैं.

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चिलगोजे से फल निकालते लोग

जब चिलगोजे की फसल पेड़ों पर लगती है तो समूचा क्षेत्र हराभरा और इस पेड़ की वजह से पूरे क्षेत्र का नजारा देखने लायक होता है. इस पेड़ से निकला चिलगोजा बहुत ही गुणकारी होता है जिसे जिला किन्नौर में बर्फबारी के दौरान अपने शरीर को गर्म रखने के लिए आग पर भुनकर भी खाया जाता है. यही नहीं चिलगोजे से निकला तेल भी बहुत ही गुणकारी माना जाता है और चिलगोजे के गिरी को पीसकर नमकीन चाय और चटनी आदि में भी प्रयोग किया जाता है. चिलगोजे का पेड़ एक ऐसा पेड़ है जिसकी लकड़ी, फसल और इससे निकलने वाला चिपचिपा गोंद भी आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है.

chilgoza pine trees
चिलगोजा

चिलगोजे का पेड़ ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में भी सक्षम है और इस पेड़ के आसपास इसकी गंध के कारण पक्षी भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते. चिलगोजे की फसल रिहायशी इलाकों से काफी दूर दराज जंगल वाले क्षेत्रों में तैयार होती है और इस फसल को न तो बंदर खाते हैं, न ही कोई जंगली जानवर. इसका वानस्पतिक नाम पाइंस जिराडियाना है.

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चिलगोजे के पेड़ से निकला फल

चिलगोजे का महत्व किन्नौर जिले के हर कार्यक्रम और शादी समारोह में है. यहां की संस्कृति में चिलगोजा शुद्ध और सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक माना जाता है. वहीं, देवी देवताओं को भी चिलगोजे की माला पहनाकर पूजा-आराधना की जाती है.

chilgoza pine trees
चिलगोजे का पेड़

जिला किन्नौर की चिलगोजे की वजह से समूचे देश में अलग पहचान है, लेकिन आज चिलगोजे के पेड़ों की विकास के नाम पर कटाई शुरू की जा चुकी है. हजारों की संख्या में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माणाधीन कार्यों में इन पेड़ों को काटकर इसकी प्रजाति को विलुप्त किया जा रहा है.

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सड़क किनारे रखे चिलगोजे

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Last Updated : Aug 20, 2021, 5:16 PM IST
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