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कांगड़ा के मैदानी इलाके में लहलहाई सेब की फसल, पूर्ण चंद ने रची सफलता की कहानी

कांगड़ा जिले के शाहपुर के बागवान पूर्ण चंद ने सेब के बागानों के जरिए सफलता की कहानी लिखी है. ठंडे पहाड़ों में उगने वाली सेब की फसल का गर्म और मैदानी इलाके में पैदावार कर पूर्ण चंद बाकि लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हैं. सेब की पैदावर से वह लाखों रुपये कमा रहे हैं और लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं.

Purna Chand produced apples in Shahpur in Kangra.
कांगड़ा के मैदानी इलाके में सेब की पैदावार.
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Published : Jun 6, 2023, 5:37 PM IST

कांगड़ा के मैदानी इलाके में सेब की पैदावार.

धर्मशाला: मिट्टी से सोना उगाने का हुनर रखने वाले लोग खेती में नया पन लाकर केवल पैसा ही नहीं कमाते, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन जाते हैं. ऐसे ही एक बागवान हैं, कांगड़ा जिले के शाहपुर के गांव दुरगेला के बागवान पूर्ण चंद. बागवान पूर्ण चंद ने कांगड़ा के मैदानी इलाके में ठंडे पहाड़ों की फसल कही जाने वाले सेब की पैदावार से सफलता की ऐसी कहानी लिखी है, जो पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणा बन गई है. उनको देखकर अब आसपास के गांवों के लोग भी स्वरोजगार का रुख करने लगे हैं.

परंपरागत खेती छोड़ सेब की पैदावार में अजमाया हाथ: पूर्ण चंद ने अन्ना व डोरसेट प्रजाति के करीब 300 सेब के पौधे अपने बागान में लगाए हैं, जिनमें से लगभग 140 पौधों में अभी फल आना शुरू हो गए हैं. इस सीजन में सेब की पैदावार को देखते हुए उन्हें एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई की उम्मीद है. पूर्ण चंद ने बताया कि पहले वह अपनी जमीन पर गेहूं, मक्की की परंपरागत खेती करते थे, लेकिन इसमें उसे कुछ भी लाभ नहीं मिल रहा था. जिसके चलते 4 साल पहले से उन्होंने बागवानी विभाग के सहयोग से अपनी जमीन पर सेब का बगीचा लगाया. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां के स्थानीय लोगों और प्रदेश के अन्य हिस्सों से कई लोगों को यहां पर 12 महीने स्थाई रोजगार उपलब्ध है. प्रदेश सरकार के पास पूर्ण चंद ने अपनी नर्सरी को पंजीकृत भी करवाया है.

Purna Chand produced apples in Shahpur of Kangra.
बागवान पूर्ण चंद के सेब के बागान.

रासायनिक खाद या स्प्रे का नहीं करते इस्तेमाल: पूर्ण चंद ने बताया कि उनके बगीचे की खासियत यह है कि वह अपने सेब बागान में किसी तरह की रासायनिक खाद या स्प्रे का इस्तेमाल नहीं करते हैं. उन्होंने बताया कि वह विभिन्न दालें, किचन वेस्ट, ऑयल सीड, गौ मूत्र तथा गोबर द्वारा स्वंय की बनाई हुई जैविक खादों का ही इस्तेमाल करते हैं. लोगों को रायासनमुक्त और पौष्टिक फल मुहैया कराने के उद्देश्य से उन्होंने अपने बगीचे में किसी रासायनिक खाद या स्प्रे का उपयोग न करने का प्रण लिया है.

देशभर में सेब के पौधों की सप्लाई: पूर्ण चंद ने सेब के पौधों की एक नर्सरी भी लगाई है. उन्होंने बताया कि बीते दो सालों में प्रदेश के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों में अपनी नर्सरी के पौधे भेज चुके हैं. महाराष्ट्र के विदर्भ, औरंगाबाद, नागपुर, अमरावती, अहमदनगर के साथ मध्यप्रदेश के जबलपुर, नीमच, भोपाल और राजस्थान के जयपुर और हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक के बीजापुर इत्यादि राज्यों में साल 2021-22 में 10,000 सेब के पौधों और साल 2022-23 में 20,000 सेब के पौधों की सप्लाई कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि समय-समय पर वह खुद वहां जाकर उनकी प्रूनिंग इत्यादि का कार्य करते हैं तथा वहां के बागवानों को इन पौधों की रख-रखाव के बारे में बताते हैं. वर्तमान समय में पूर्ण चंद की नर्सरी में लगभग 40 हजार सेब के पौधे आने वाले सीजन की सप्लाई के लिए बिलकुल तैयार हैं.

Purna Chand produced apples in Shahpur of Kangra.
बागवान पूर्ण चंद के सेब के पौधों की नर्सरी.

वैदिक विधि से खेती: पूर्ण चंद ने बताया कि वह अपने बागानों में वैदिक विधि से खेती से जोर दे रहे हैं. देसी गाय के गोबर और गौ मूत्र का प्रयेाग करते हैं और इसके साथ ही अग्निहोत्र क्रिया का उपयोग करने के बाद जो राख बचती है, उससे बागान में छिड़काव करते हैं. पूर्ण चंद का मानना है कि इससे उनके बागान के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और जिससे उन्हें स्वस्थ पौधे व उत्तम गुणवत्ता के फल प्राप्त होते हैं.

क्या है सेब की सघन खेती: जिला कांगड़ा के बागवानी विभाग के उपनिदेशक डॉ. कमलशील नेगी ने बताया कि सेब की सघन खेती में क्लोनल रूट स्टॉक के बौने और मध्यम बौने पौधे आपस में कम दूरी पर लगाए जाते हैं, इससे भूमि का ज्यादा उपयोग किया जा सकता है. इस खेती के जरीए थोड़ी सी जगह में ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं और बच्ची हुई जमीन पर अन्य खेती करके और फायदा ले सकते हैं.

सरकार की ओर से प्रोत्साहन: डॉ. कमलशील नेगी ने बताया कि प्रदेश सरकार सघन खेती फलों के उत्पादन के लिए 50% ग्रेच्युटी प्रदान करती है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 'प्रत्येक बूंद अधिक फसल' के तहत बगीचे में टपक सिंचाई योजना स्थापित करने के लिए भी ग्रांट दिया जाता है. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 50 हजार क्षमता तक पानी इकट्ठा करने का टैंक बनाने के लिए 50% या अधिकतम 70 हजार रुपये तक का ग्रांट दिया जाता है. फल भंडारण पैक व ग्रेडिंग हाउस बनाने के लिए अधिकतम 2 लाख या 50% ग्रांट का प्रावधान है. उपनिदेशक डॉ. नेगी ने बताया कि कृषि उत्पादन संरक्षण योजना के अंतर्गत एंटी हेलनेट की स्थापना के लिए बांस का ढांचा बनाने को 50% या अधिकतम 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तथा लोहे के ढांचे हेतु 1.20 लाख रुपये का ग्रांट दिया जाता है.

क्या कहते हैं डीसी कांगड़ा?: डीसी कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल का कहना है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के निर्देशानुसार कांगड़ा जिले में बागवानी गतिविधियों को नई रफ्तार देने के प्रयास किए जा रहे हैं. प्रशासन, उद्यान विभाग के सहयोग से जिले में बागवानी की मौजूदा स्थिति में व्यापक सुधार और मजबूती के लिए लगातार प्रयासरत है. किसानों-बागवानों को सरकारी मदद मुहैया कराने, खेती की पैदावार बढ़ाने और इससे जुड़े कार्यों को मुनाफे वाला बनाकर किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए कदम उठाए गए है.

ये भी पढ़ें: कांगड़ा में बागवानों के लिए वरदान बनी बारिश, उन्नत किस्म के सेब की पैदावार होगी तैयार

कांगड़ा के मैदानी इलाके में सेब की पैदावार.

धर्मशाला: मिट्टी से सोना उगाने का हुनर रखने वाले लोग खेती में नया पन लाकर केवल पैसा ही नहीं कमाते, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन जाते हैं. ऐसे ही एक बागवान हैं, कांगड़ा जिले के शाहपुर के गांव दुरगेला के बागवान पूर्ण चंद. बागवान पूर्ण चंद ने कांगड़ा के मैदानी इलाके में ठंडे पहाड़ों की फसल कही जाने वाले सेब की पैदावार से सफलता की ऐसी कहानी लिखी है, जो पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणा बन गई है. उनको देखकर अब आसपास के गांवों के लोग भी स्वरोजगार का रुख करने लगे हैं.

परंपरागत खेती छोड़ सेब की पैदावार में अजमाया हाथ: पूर्ण चंद ने अन्ना व डोरसेट प्रजाति के करीब 300 सेब के पौधे अपने बागान में लगाए हैं, जिनमें से लगभग 140 पौधों में अभी फल आना शुरू हो गए हैं. इस सीजन में सेब की पैदावार को देखते हुए उन्हें एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई की उम्मीद है. पूर्ण चंद ने बताया कि पहले वह अपनी जमीन पर गेहूं, मक्की की परंपरागत खेती करते थे, लेकिन इसमें उसे कुछ भी लाभ नहीं मिल रहा था. जिसके चलते 4 साल पहले से उन्होंने बागवानी विभाग के सहयोग से अपनी जमीन पर सेब का बगीचा लगाया. वहीं, उन्होंने बताया कि यहां के स्थानीय लोगों और प्रदेश के अन्य हिस्सों से कई लोगों को यहां पर 12 महीने स्थाई रोजगार उपलब्ध है. प्रदेश सरकार के पास पूर्ण चंद ने अपनी नर्सरी को पंजीकृत भी करवाया है.

Purna Chand produced apples in Shahpur of Kangra.
बागवान पूर्ण चंद के सेब के बागान.

रासायनिक खाद या स्प्रे का नहीं करते इस्तेमाल: पूर्ण चंद ने बताया कि उनके बगीचे की खासियत यह है कि वह अपने सेब बागान में किसी तरह की रासायनिक खाद या स्प्रे का इस्तेमाल नहीं करते हैं. उन्होंने बताया कि वह विभिन्न दालें, किचन वेस्ट, ऑयल सीड, गौ मूत्र तथा गोबर द्वारा स्वंय की बनाई हुई जैविक खादों का ही इस्तेमाल करते हैं. लोगों को रायासनमुक्त और पौष्टिक फल मुहैया कराने के उद्देश्य से उन्होंने अपने बगीचे में किसी रासायनिक खाद या स्प्रे का उपयोग न करने का प्रण लिया है.

देशभर में सेब के पौधों की सप्लाई: पूर्ण चंद ने सेब के पौधों की एक नर्सरी भी लगाई है. उन्होंने बताया कि बीते दो सालों में प्रदेश के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों में अपनी नर्सरी के पौधे भेज चुके हैं. महाराष्ट्र के विदर्भ, औरंगाबाद, नागपुर, अमरावती, अहमदनगर के साथ मध्यप्रदेश के जबलपुर, नीमच, भोपाल और राजस्थान के जयपुर और हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक के बीजापुर इत्यादि राज्यों में साल 2021-22 में 10,000 सेब के पौधों और साल 2022-23 में 20,000 सेब के पौधों की सप्लाई कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि समय-समय पर वह खुद वहां जाकर उनकी प्रूनिंग इत्यादि का कार्य करते हैं तथा वहां के बागवानों को इन पौधों की रख-रखाव के बारे में बताते हैं. वर्तमान समय में पूर्ण चंद की नर्सरी में लगभग 40 हजार सेब के पौधे आने वाले सीजन की सप्लाई के लिए बिलकुल तैयार हैं.

Purna Chand produced apples in Shahpur of Kangra.
बागवान पूर्ण चंद के सेब के पौधों की नर्सरी.

वैदिक विधि से खेती: पूर्ण चंद ने बताया कि वह अपने बागानों में वैदिक विधि से खेती से जोर दे रहे हैं. देसी गाय के गोबर और गौ मूत्र का प्रयेाग करते हैं और इसके साथ ही अग्निहोत्र क्रिया का उपयोग करने के बाद जो राख बचती है, उससे बागान में छिड़काव करते हैं. पूर्ण चंद का मानना है कि इससे उनके बागान के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और जिससे उन्हें स्वस्थ पौधे व उत्तम गुणवत्ता के फल प्राप्त होते हैं.

क्या है सेब की सघन खेती: जिला कांगड़ा के बागवानी विभाग के उपनिदेशक डॉ. कमलशील नेगी ने बताया कि सेब की सघन खेती में क्लोनल रूट स्टॉक के बौने और मध्यम बौने पौधे आपस में कम दूरी पर लगाए जाते हैं, इससे भूमि का ज्यादा उपयोग किया जा सकता है. इस खेती के जरीए थोड़ी सी जगह में ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं और बच्ची हुई जमीन पर अन्य खेती करके और फायदा ले सकते हैं.

सरकार की ओर से प्रोत्साहन: डॉ. कमलशील नेगी ने बताया कि प्रदेश सरकार सघन खेती फलों के उत्पादन के लिए 50% ग्रेच्युटी प्रदान करती है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 'प्रत्येक बूंद अधिक फसल' के तहत बगीचे में टपक सिंचाई योजना स्थापित करने के लिए भी ग्रांट दिया जाता है. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 50 हजार क्षमता तक पानी इकट्ठा करने का टैंक बनाने के लिए 50% या अधिकतम 70 हजार रुपये तक का ग्रांट दिया जाता है. फल भंडारण पैक व ग्रेडिंग हाउस बनाने के लिए अधिकतम 2 लाख या 50% ग्रांट का प्रावधान है. उपनिदेशक डॉ. नेगी ने बताया कि कृषि उत्पादन संरक्षण योजना के अंतर्गत एंटी हेलनेट की स्थापना के लिए बांस का ढांचा बनाने को 50% या अधिकतम 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तथा लोहे के ढांचे हेतु 1.20 लाख रुपये का ग्रांट दिया जाता है.

क्या कहते हैं डीसी कांगड़ा?: डीसी कांगड़ा डॉ. निपुण जिंदल का कहना है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के निर्देशानुसार कांगड़ा जिले में बागवानी गतिविधियों को नई रफ्तार देने के प्रयास किए जा रहे हैं. प्रशासन, उद्यान विभाग के सहयोग से जिले में बागवानी की मौजूदा स्थिति में व्यापक सुधार और मजबूती के लिए लगातार प्रयासरत है. किसानों-बागवानों को सरकारी मदद मुहैया कराने, खेती की पैदावार बढ़ाने और इससे जुड़े कार्यों को मुनाफे वाला बनाकर किसानों की आय में बढ़ोतरी के लिए कदम उठाए गए है.

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