ETV Bharat / state

पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा, 20 आतंकियों से लड़ते-लड़ते ऐसे पाई थी शहादत - पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा

आज हम ऐसे ही एक वीर की कहानी लेकर आए हैं जिसे हर उस व्यक्ति को जानना जरूरी है जिसे भारतीय होने और भारतीय सेना पर गर्व है. हम यहां आपको युद्धभूमि में अदम्य साहस का परिचय देने वाले उस शख्स की कहानी बताएंगे जिसने खुद की जान को इस देश के लिए कुर्बान कर दिया...उस वीर का नाम है मेजर सुधीर कुमार वालिया.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
author img

By

Published : Jan 16, 2020, 8:50 PM IST

Updated : Jan 16, 2020, 10:39 PM IST

पालमपुर: ये वीर किस मिट्टी के बने होते हैं...जान दूसरे की खतरे में होती है और प्राण अपने दांव पर लगा देते हैं. आज हम ऐसे ही एक वीर की कहानी लेकर आए हैं जिसे हर उस व्यक्ति को जानना जरूरी है जिसे भारतीय होने और भारतीय सेना पर गर्व है. हम यहां आपको युद्धभूमि में अदम्य साहस का परिचय देने वाले उस शख्स की कहानी बताएंगे जिसने खुद की जान को इस देश के लिए कुर्बान कर दिया...उस वीर का नाम है मेजर सुधीर कुमार वालिया.

वीडियो.

मेजर सुधीर कुमार वालिया का जन्म 24 मई 1971 को पालमपुर के बनूरी गांव में हुआ था. मेजर सुधीर वालिया 11 जून 1988 को 3 जाट रेजिमेंट में शामिल हुए. मेजर सुधीर कुमार वालिया दिसंबर 1997 से जून 1999 तक तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक के अंगरक्षक भी रहे.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया

अब बात करेंगे मेजर सुधीर कुमार वालिया की शहादत की. 1999 को जब भारत और पाकिस्तान के साथ टकराव बढ़ता जा रहा था तो 29 अगस्त 1999 की सुबह को वीर जवान मेजर सुधीर कुमार वालिया पांच जवानों के एक दस्ते को लेकर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हफूरदा जंगल की घनी झाड़ियों की ओर बढ़े. जल्दी ही उन्हें आतंकवादियों की आवाजें सुनाई देने लगी, लेकिन वे उन्हें नजर नहीं आ रहे थे. मेजर सुधीर कुमार अपने एक साथी के साथ रेंगते हुए ऊंचे स्थान की ओर बढ़े. जब वे पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्हें केवल चार मीटर की दूरी पर खड़े दो सशस्त्र आतंकवादी और नीचे 15 मीटर की गहराई पर आतंकवादियों का एक बड़ा दल और बंद ठिकाना नजर आया.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया की वर्दी

मेजर सुधीर कुमार ने तुरंत एक नजदीकी आतंकी पर गोली चला कर उसको मार गिराया और दूसरे आतंकी पर हमला कर दिया, लेकिन वह कूद कर अपने ठिकाने में जा घुसा....... मेजर सुधीर कुमार ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने साथी सैनिक द्वारा की जा रही गोलीबारी की आड़ लेकर आतंकवादियों के ठिकाने पर धावा बोल दिया. उस ठिकाने के अंदर मौजूद लगभग 20 आतंकी मेजर सुधीर कुमार अकेले ही उनके साथ गुत्थमगुत्था हो गए और मात्र दो मीटर की दूरी से उनपर गोलीबारी कर चार आतंकवादियों को मार गिराया.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया के मेडल

गंभीर घायल होने के कारण चल पाने में असमर्थ होने के बावजूद मेजर सुधीर कुमार ने अपने सभी कमांडरों और आसपास तैनात टुकड़ियों से रेडियो सेट पर संपर्क करते हुए उन्हें निर्देश दिए कि वे डटे रहें और बाकी बचे आतंकवादियों को भागने का मौका ना दिया जाए. इस भीषण मुठभेड़ में उनके चेहरे, सीने और बाहों में कई गोलियां लग गई और काफी ज्यादा खून बह जाने के कारण वे उस ठिकाने के द्वार पर गिर पड़े और अपना रेडियो सेट थामे हुए ही मेजर सुधीर कुमार वीरगति को प्राप्त हुए.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया को मिला अशोक चक्र

मेजर सुधीर कुमार ने अति उत्कृष्ट वीरता, साहस और अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की उच्चतम परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र के लिए सर्वाोच्च बलिदान दिया. 26 जनवरी 2000 को उन्हें भारत के महामहिम राष्ट्रपति के आर नारायणन द्वारा शांतिकालीन सर्वाोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया. यह सम्मान उनके पिता रिटायर्ड सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया ने ग्रहण किया.

ये भी पढ़ें- चौकीदार के पदों के लिए बीटेक...एमटेक पास युवाओं ने भी किया अप्लाई, 15 सीटों के लिए 6 हजार से अधिक आवेदन

पालमपुर: ये वीर किस मिट्टी के बने होते हैं...जान दूसरे की खतरे में होती है और प्राण अपने दांव पर लगा देते हैं. आज हम ऐसे ही एक वीर की कहानी लेकर आए हैं जिसे हर उस व्यक्ति को जानना जरूरी है जिसे भारतीय होने और भारतीय सेना पर गर्व है. हम यहां आपको युद्धभूमि में अदम्य साहस का परिचय देने वाले उस शख्स की कहानी बताएंगे जिसने खुद की जान को इस देश के लिए कुर्बान कर दिया...उस वीर का नाम है मेजर सुधीर कुमार वालिया.

वीडियो.

मेजर सुधीर कुमार वालिया का जन्म 24 मई 1971 को पालमपुर के बनूरी गांव में हुआ था. मेजर सुधीर वालिया 11 जून 1988 को 3 जाट रेजिमेंट में शामिल हुए. मेजर सुधीर कुमार वालिया दिसंबर 1997 से जून 1999 तक तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक के अंगरक्षक भी रहे.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया

अब बात करेंगे मेजर सुधीर कुमार वालिया की शहादत की. 1999 को जब भारत और पाकिस्तान के साथ टकराव बढ़ता जा रहा था तो 29 अगस्त 1999 की सुबह को वीर जवान मेजर सुधीर कुमार वालिया पांच जवानों के एक दस्ते को लेकर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हफूरदा जंगल की घनी झाड़ियों की ओर बढ़े. जल्दी ही उन्हें आतंकवादियों की आवाजें सुनाई देने लगी, लेकिन वे उन्हें नजर नहीं आ रहे थे. मेजर सुधीर कुमार अपने एक साथी के साथ रेंगते हुए ऊंचे स्थान की ओर बढ़े. जब वे पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्हें केवल चार मीटर की दूरी पर खड़े दो सशस्त्र आतंकवादी और नीचे 15 मीटर की गहराई पर आतंकवादियों का एक बड़ा दल और बंद ठिकाना नजर आया.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया की वर्दी

मेजर सुधीर कुमार ने तुरंत एक नजदीकी आतंकी पर गोली चला कर उसको मार गिराया और दूसरे आतंकी पर हमला कर दिया, लेकिन वह कूद कर अपने ठिकाने में जा घुसा....... मेजर सुधीर कुमार ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने साथी सैनिक द्वारा की जा रही गोलीबारी की आड़ लेकर आतंकवादियों के ठिकाने पर धावा बोल दिया. उस ठिकाने के अंदर मौजूद लगभग 20 आतंकी मेजर सुधीर कुमार अकेले ही उनके साथ गुत्थमगुत्था हो गए और मात्र दो मीटर की दूरी से उनपर गोलीबारी कर चार आतंकवादियों को मार गिराया.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया के मेडल

गंभीर घायल होने के कारण चल पाने में असमर्थ होने के बावजूद मेजर सुधीर कुमार ने अपने सभी कमांडरों और आसपास तैनात टुकड़ियों से रेडियो सेट पर संपर्क करते हुए उन्हें निर्देश दिए कि वे डटे रहें और बाकी बचे आतंकवादियों को भागने का मौका ना दिया जाए. इस भीषण मुठभेड़ में उनके चेहरे, सीने और बाहों में कई गोलियां लग गई और काफी ज्यादा खून बह जाने के कारण वे उस ठिकाने के द्वार पर गिर पड़े और अपना रेडियो सेट थामे हुए ही मेजर सुधीर कुमार वीरगति को प्राप्त हुए.

Heroic tale of 3 Jat Regiment martyr Major Sudhir Kumar Walia from Palampur, पालमपुर के रहने वाले 3 जाट रेजिमेंट के जवान की शौर्यगाथा
शहीद मेजर सुधीर कुमार वालिया को मिला अशोक चक्र

मेजर सुधीर कुमार ने अति उत्कृष्ट वीरता, साहस और अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की उच्चतम परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र के लिए सर्वाोच्च बलिदान दिया. 26 जनवरी 2000 को उन्हें भारत के महामहिम राष्ट्रपति के आर नारायणन द्वारा शांतिकालीन सर्वाोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया. यह सम्मान उनके पिता रिटायर्ड सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया ने ग्रहण किया.

ये भी पढ़ें- चौकीदार के पदों के लिए बीटेक...एमटेक पास युवाओं ने भी किया अप्लाई, 15 सीटों के लिए 6 हजार से अधिक आवेदन

Intro:मेजर सुधीर वालिया का जन्म 24 मई 1968 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ। उनके पिता रिटायर सूबेदार मेजर रुलिया राम ने भी सेना में अपनी सेवाए दी है । मेजर सुधीर वालिया 11 जून 1988 को 3 जाट रेजिमेंट में शामिल हुए। मेजर सुधीर कुमार ने आठ साल कश्मीर में आतंकियो से लड़ाई में बिताए। इसी आधार पर उन्हें भारतीय शांति सेना में श्रीलंका में भी नियुक्त किया गया। श्रीलंका में उन्होंने जंगलों में गोरिल्ला युद्ध से लड़ना सीखा। फिर वह स्काई डाईवर बनने के लिए पैराशूट रेजिमेंट में शामिल हुए। वह रेडियो कम्युनिकेशन, विस्फोटकों के उपयोग और लड़ाई के हर तरह के हथियार से निशाना लगाने में माहिर थे। वह इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून में प्रतिष्ठित इंस्ट्रक्टर भी रहे और इंटेलिजेंस कोर्स के लिए अमेरिका भी भेजे गए। इस कोर्स में वह शीर्ष तक पहुंचे और अलाबामा के गवर्नर द्वारा उन्हें प्रमाणपत्र देकर अलाबामा आर्मी के मानद कर्नल के सम्मान से सम्मानित किया गया।Body:मेजर सुधीर कुमार दिसंबर 1997 से जून 1999 तक तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक के अंगरक्षक रहे। कारगिल युद्ध छिड़ने पर उन्होंने अपनी यूनिट के साथ मौर्चे पर जाने के लिए स्वेच्छा से सेनाध्यक्ष के ।कब् का ंेेपहदउमदज छोड़ दिया और लड़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। 29 अगस्त 1999 को प्रातः 8रू30 बजे मेजर सुधीर कुमार पांच जवानों के एक दस्ते को लेकर जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हफूरदा जंगल की घनी झाड़ियों की ओर बढ़े। शीघ्र ही उन्हें आतंकवादियों की आवाजें सुनाई देने लगी किंतु वे उन्हें नजर नहीं आ रहे थे। मेजर सुधीर कुमार अपने एक साथी के साथ रेंगते हुए ऊंचे स्थान की ओर बढ़े। जब वे पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्हें केवल चार मीटर की दूरी पर खड़े दो सशस्त्र आतंकवादी और नीचे 15 मीटर की गहराई पर आतंकवादियों का एक बड़ा और बंद ठिकाना नजर आया। मेजर सुधीर कुमार ने तुरंत एक नजदीकी आतंकी पर गोली चला कर उसको मार गिराया और दूसरे आतंकी पर हमला कर दिया किंतु वह कूद कर अपने ठिकाने में जा घुसा।Conclusion:मेजर सुधीर कुमार ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने साथी सैनिक द्वारा की जा रही गोलीबारी की आड़ लेकर आतंकवादियों के ठिकाने पर धावा बोल दिया। उस ठिकाने के अंदर मौजूद लगभग 20 आतंकी मेजर सुधीर कुमार की इस वीरतापूर्ण कार्रवाई से भौंचक्के रह गए और वे वहां से निकल भागने के प्रयास में बाहर की ओर दौड़ पड़े। मेजर सुधीर कुमार अकेले ही उनके साथ गुत्थमगुत्था हो गए और मात्र दो मीटर की दूरी से उनपर गोलीबारी कर चार आतंकवादियों को मार गिराया। इस भीषण मुठभेड़ में उनके चेहरे, सीने तथा बाहों में कई गोलियां लग गई और अत्यधिक खून बह जाने के कारण वे उस ठिकाने के द्वार पर गिर पड़े। गंभीर घायल होने के कारण चल पाने में असमर्थ होने के बावजूद मेजर सुधीर कुमार ने अपने सभी ट्रूप कमांडरों और आसपास तैनात टुकड़ियों से रेडियो सेट पर संपर्क करते हुए उन्हें निर्देश दिए कि वे डटे रहें और बाकी बचे आतंकवादियो को भागने का मौका ना दिया जाए।35 मिनट के पश्चात जब दोनों ओर से गोलीबारी रुक गई तभी वे वहां से हटाए जाने के लिए तैयार हुए। अत्यधिक खून बहते जाने के बावजूद वे उस क्षेत्र में अपने सैन्य बलों को रेडियो सेट से लगातार निर्देश देते रहे। अपना रेडियो सेट थामे हुवे ही मेजर सुधीर कुमार वीरगति को प्राप्त हुए।
मेजर सुधीर कुमार ने अति उत्कृष्ट वीरता, साहस तथा अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भारतीय सेना की उच्चतम परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया। 26 जनवरी 2000 को उन्हें भारत के महामहिम राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा शांतिकालीन सर्वाेच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके पिता रिटा. सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया द्वारा ग्रहण किया गया।
Last Updated : Jan 16, 2020, 10:39 PM IST

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.