ETV Bharat / state

हींग व केसर से लहलहाएगा हिमाचल, आईएचबीटी पालमपुर व कृषि विभाग में समझौता पत्र हुआ हस्ताक्षर

प्रदेश में पहली बार हींग और केसर की खेती बड़े स्तर पर किए जाने की तैयारी है. देश पूरी तरह से हींग को आयात करता है और केसर भी देश में मांग के अनुरूप उपलब्ध नहीं है. हिमालय जैव संपदा प्रयोग के संस्थान और कृषि विभाग हिमाचल ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर हाथ मिलाया है. दोनों संस्थानों ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर संपूर्ण सहयोग को लेकर समझौता पत्र हस्ताक्षरित किया है.

Asafoetida and saffron cultivation
हींग व केसर से लहलहाएगा हिमाचल
author img

By

Published : Jun 7, 2020, 6:05 PM IST

पालमपुर/कांगड़ा: प्रदेश में पहली बार हींग और केसर की खेती बड़े स्तर पर किए जाने की तैयारी है. देश पूरी तरह से हींग को आयात करता है और केसर भी देश में मांग के अनुरूप उपलब्ध नहीं है. वहीं, बड़े स्तर पर केसर का आयात भी किया जाता है. हिमालय जैव संपदा प्रयोग के संस्थान और कृषि विभाग हिमाचल ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर हाथ मिलाया है. दोनों संस्थानों ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर संपूर्ण सहयोग को लेकर समझौता पत्र हस्ताक्षरित किया है.

एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 100 टन केसर की मांग रहती है जबकि देश में इसका उत्पादन मात्र 6 से 7 टन के लगभग ही हो पाता है. जम्मू कश्मीर में 2825 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की खेती की जाती है. ऐसे में अब हिमाचल में भी केसर उत्पादित हो इसके लिए हिमालय जैव संपदा प्रयोग की संस्था ने केसर उत्पादन की प्रौद्योगिकी विकसित की है.

हिमाचल के साथ उत्तराखंड में भी इसकी खेती को आरंभ किया जाएगा. इन दोनों प्रदेशों के गैर परंपरागत क्षेत्रों में किसानों को इसकी खेती से जोड़ा जाएगा. केसर के रोग रहित कोरम के लिए संस्थान ने टिशू कल्चर प्रोटोकॉल विकसित किया है.

वहीं, हींग उत्पादन से अछूते रहे देश में हिमाचल हींग उत्पादन की पहल करने जा रहा है. देश में प्रतिवर्ष अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान आदि देशों से लगभग 600 करोड रुपये की लागत का 12100 मीट्रिक टन हींग आयात की जाती है. हिमालय जैव संपदा प्रयोग की संस्थान ने एनबीपीजीआर के सहयोग से ईरान से हींग के 6 परिग्रहण प्राप्त कर इसके उत्पादन के लिए प्रोटोकॉल का मानकीकरण किया है.

प्रदेश में हींग व केसर के बीज उत्पादन केंद्रों की स्थापना की जाएगी और अगले 5 वर्ष में 750 एकड़ भूमि को हींग व केसर की खेती के अंतर्गत लाया जाएगा. यहीं नहीं हिमालय जैव संपदा संस्थान प्रदेश के किसानों को इन दोनों फसलों से संबंधित पूरी जानकारी उपलब्ध करवाएगा.

वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक डॉ संजय कुमार और कृषि विभाग हिमाचल के निदेशक डॉ. आरके कौंडल की उपस्थिति में शनिवार को दोनों पक्षों में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया. इस अवसर पर कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉक्टर एनके धीमान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राकेश और डॉ अशोक उपस्थित रहे.

ये भी पढ़ें: स्वास्थ्य विभाग में कथित घोटालों को लेकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री जयराम से मांगा इस्तीफा

पालमपुर/कांगड़ा: प्रदेश में पहली बार हींग और केसर की खेती बड़े स्तर पर किए जाने की तैयारी है. देश पूरी तरह से हींग को आयात करता है और केसर भी देश में मांग के अनुरूप उपलब्ध नहीं है. वहीं, बड़े स्तर पर केसर का आयात भी किया जाता है. हिमालय जैव संपदा प्रयोग के संस्थान और कृषि विभाग हिमाचल ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर हाथ मिलाया है. दोनों संस्थानों ने हींग और केसर के उत्पादन को लेकर संपूर्ण सहयोग को लेकर समझौता पत्र हस्ताक्षरित किया है.

एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 100 टन केसर की मांग रहती है जबकि देश में इसका उत्पादन मात्र 6 से 7 टन के लगभग ही हो पाता है. जम्मू कश्मीर में 2825 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की खेती की जाती है. ऐसे में अब हिमाचल में भी केसर उत्पादित हो इसके लिए हिमालय जैव संपदा प्रयोग की संस्था ने केसर उत्पादन की प्रौद्योगिकी विकसित की है.

हिमाचल के साथ उत्तराखंड में भी इसकी खेती को आरंभ किया जाएगा. इन दोनों प्रदेशों के गैर परंपरागत क्षेत्रों में किसानों को इसकी खेती से जोड़ा जाएगा. केसर के रोग रहित कोरम के लिए संस्थान ने टिशू कल्चर प्रोटोकॉल विकसित किया है.

वहीं, हींग उत्पादन से अछूते रहे देश में हिमाचल हींग उत्पादन की पहल करने जा रहा है. देश में प्रतिवर्ष अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान आदि देशों से लगभग 600 करोड रुपये की लागत का 12100 मीट्रिक टन हींग आयात की जाती है. हिमालय जैव संपदा प्रयोग की संस्थान ने एनबीपीजीआर के सहयोग से ईरान से हींग के 6 परिग्रहण प्राप्त कर इसके उत्पादन के लिए प्रोटोकॉल का मानकीकरण किया है.

प्रदेश में हींग व केसर के बीज उत्पादन केंद्रों की स्थापना की जाएगी और अगले 5 वर्ष में 750 एकड़ भूमि को हींग व केसर की खेती के अंतर्गत लाया जाएगा. यहीं नहीं हिमालय जैव संपदा संस्थान प्रदेश के किसानों को इन दोनों फसलों से संबंधित पूरी जानकारी उपलब्ध करवाएगा.

वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक डॉ संजय कुमार और कृषि विभाग हिमाचल के निदेशक डॉ. आरके कौंडल की उपस्थिति में शनिवार को दोनों पक्षों में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया. इस अवसर पर कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉक्टर एनके धीमान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राकेश और डॉ अशोक उपस्थित रहे.

ये भी पढ़ें: स्वास्थ्य विभाग में कथित घोटालों को लेकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री जयराम से मांगा इस्तीफा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.