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प्रेरणा: कभी स्कूल नहीं गई ये दिव्यांग बेटी, बिस्तर पर ही लिख दी 30 कविताएं

शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम वर्षा ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, लेकिन उसकी कविता लेखनी में इतना दम है. जिसके सामने कई डिग्रीधारी भी फेल हो जाए. अब तक 30 कविताएं लिख चुकी बर्षा ने घर पर ही पढ़ना-लिखना सीखा है.

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Published : Apr 18, 2019, 4:09 PM IST

Updated : Apr 19, 2019, 7:55 AM IST

कांगड़ा: अटल की इन पंक्तियों की तरह बर्षा ने दिव्यांग होने के बाद भी हार नहीं मानी. जिंदगी में कुछ करने की रार ठानी. दिव्यांग होने के बाद भी उसका हौंसला अटल था. ज्वाली के दरकारी पंचायत की बर्षा को भगवान ने बचपन से दिव्यांग पैदा किया था, लेकिन अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान कई चुनौतियों को पार कर कुछ ऐसा कर गुजरता है जो जिन्दगी से हार मान चुके लोगों के लिए भी प्रेरणा बन जाता है.

30 poems written by Divyang girl
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शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम वर्षा ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, लेकिन उसकी कविता लेखनी में इतना दम है. जिसके सामने कई डिग्रीधारी भी फेल हो जाए. बर्षा कभी स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन उसके हौंसलों में उड़ान थी. घर में ही पढ़ना-लिखना सीखा. लगभग नौ साल की उम्र में लिखना शुरू किया. शुरू में जब लिखना नहीं आता था तो अपने भाई को बताकर अपने मन के भावों को कागज पर बयां करती थी. फिर धीरे-धीरे लिखना-पढ़ना सीखा.

बर्षा अब तक अब तक तीस कविताएं लिख चुकी है. निश्चित रूप से वर्षा चौधरी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो इंसान शारीरिक रूप से अक्षम होने या फिर किसी कारण से जिन्दगी से मुंह मोड़ चुके है.

जानकारी देते वर्षा के परिजन

वर्षा चौधरी द्वारा लिखी गयी कविताएं
आशा न छोड़ना तुम
स्याह अंधेरी रात में जुगनू सा जगमगाना तू,
ले आना आशा का सूर्य, इन उदासीन घनेरे बदलों से न घबराना तू,
पपीहे सा प्यासा रेहना, सावन बुझाये प्यास पर तृष्णा न बुझाना तू,
जब-जब हो जीवन में अंधियारा तब-तब आशा का बस एक दीप जलाना तू!

बर्षा खुद जिंदगी से जद्दोजहद कर रही है. लेकिन बर्षा की कविताएं जिंदगी से हार मान चुके लोगों को हिम्मत भी देती है.

होगा नामुमकिन सा ज़िन्दगी का हर सफर
दिखेंगीं मुश्किलें ही इधर-उधर
बस आशा की डोर थामे हर पहाड़ चढ़ जाना तुम
हो जाएगी हर मुश्किल आसान
बस आशा की राह छोड़ निराशा की गली में न चले जाना तुम!
गमों का समंदर डुबा देगा, मझधार में तेरी कश्ती लगा देगा
रखना यकीन खुदा पे, वो देके आशा का चप्पु, तेरी कश्ती उस पार पहुंचा देगा!
बर्षा की कविताओं में उसका दर्द और चेहरे का भाव साफ दिखता है. बर्षा जब लिखती है तो कलम की स्याही आंसू बनकर बहती है.

मैं क्या जानुं
दूध की पतिली खाली है
मैं कैसे कागज़ पर चांद बनाऊं
बेटी भूखी प्यासी है, घर में रोटी भी तो बासी है
मैं कैसे झूम के मल्हार सुनाऊं
बस यूं कर दूं अपनी कलम से सबको दिवाना
पर कुटिया में रौशनी का दीया कहां से सजाऊं.
पतझड़ में गिरते पत्तों की फड़फड़ाहट की झंकार का मजा, मैं क्या जानु
मेरी तो आंख में गरीबी की बदहाली है.
मां के हाथों में भी तो बदनसीबी के छाले हैं
मेरी तो कलम सियाही से खाली है

वर्षा की यह कविताएं वाकई में कविताओं में रूचि रखने वाले लोगों के मन में बहुत सुकून देती है, लेकिन सरकार, साहित्यकारों, कवियों का ध्यान कभी भी वर्षा की ओर नहीं गया. सरकार एक व्हील चेयर भी उसे नहीं दे सकी.

कांगड़ा: अटल की इन पंक्तियों की तरह बर्षा ने दिव्यांग होने के बाद भी हार नहीं मानी. जिंदगी में कुछ करने की रार ठानी. दिव्यांग होने के बाद भी उसका हौंसला अटल था. ज्वाली के दरकारी पंचायत की बर्षा को भगवान ने बचपन से दिव्यांग पैदा किया था, लेकिन अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान कई चुनौतियों को पार कर कुछ ऐसा कर गुजरता है जो जिन्दगी से हार मान चुके लोगों के लिए भी प्रेरणा बन जाता है.

30 poems written by Divyang girl
डिजाइन फोटो

शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम वर्षा ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, लेकिन उसकी कविता लेखनी में इतना दम है. जिसके सामने कई डिग्रीधारी भी फेल हो जाए. बर्षा कभी स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन उसके हौंसलों में उड़ान थी. घर में ही पढ़ना-लिखना सीखा. लगभग नौ साल की उम्र में लिखना शुरू किया. शुरू में जब लिखना नहीं आता था तो अपने भाई को बताकर अपने मन के भावों को कागज पर बयां करती थी. फिर धीरे-धीरे लिखना-पढ़ना सीखा.

बर्षा अब तक अब तक तीस कविताएं लिख चुकी है. निश्चित रूप से वर्षा चौधरी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो इंसान शारीरिक रूप से अक्षम होने या फिर किसी कारण से जिन्दगी से मुंह मोड़ चुके है.

जानकारी देते वर्षा के परिजन

वर्षा चौधरी द्वारा लिखी गयी कविताएं
आशा न छोड़ना तुम
स्याह अंधेरी रात में जुगनू सा जगमगाना तू,
ले आना आशा का सूर्य, इन उदासीन घनेरे बदलों से न घबराना तू,
पपीहे सा प्यासा रेहना, सावन बुझाये प्यास पर तृष्णा न बुझाना तू,
जब-जब हो जीवन में अंधियारा तब-तब आशा का बस एक दीप जलाना तू!

बर्षा खुद जिंदगी से जद्दोजहद कर रही है. लेकिन बर्षा की कविताएं जिंदगी से हार मान चुके लोगों को हिम्मत भी देती है.

होगा नामुमकिन सा ज़िन्दगी का हर सफर
दिखेंगीं मुश्किलें ही इधर-उधर
बस आशा की डोर थामे हर पहाड़ चढ़ जाना तुम
हो जाएगी हर मुश्किल आसान
बस आशा की राह छोड़ निराशा की गली में न चले जाना तुम!
गमों का समंदर डुबा देगा, मझधार में तेरी कश्ती लगा देगा
रखना यकीन खुदा पे, वो देके आशा का चप्पु, तेरी कश्ती उस पार पहुंचा देगा!
बर्षा की कविताओं में उसका दर्द और चेहरे का भाव साफ दिखता है. बर्षा जब लिखती है तो कलम की स्याही आंसू बनकर बहती है.

मैं क्या जानुं
दूध की पतिली खाली है
मैं कैसे कागज़ पर चांद बनाऊं
बेटी भूखी प्यासी है, घर में रोटी भी तो बासी है
मैं कैसे झूम के मल्हार सुनाऊं
बस यूं कर दूं अपनी कलम से सबको दिवाना
पर कुटिया में रौशनी का दीया कहां से सजाऊं.
पतझड़ में गिरते पत्तों की फड़फड़ाहट की झंकार का मजा, मैं क्या जानु
मेरी तो आंख में गरीबी की बदहाली है.
मां के हाथों में भी तो बदनसीबी के छाले हैं
मेरी तो कलम सियाही से खाली है

वर्षा की यह कविताएं वाकई में कविताओं में रूचि रखने वाले लोगों के मन में बहुत सुकून देती है, लेकिन सरकार, साहित्यकारों, कवियों का ध्यान कभी भी वर्षा की ओर नहीं गया. सरकार एक व्हील चेयर भी उसे नहीं दे सकी.


---------- Forwarded message ---------
From: Swarn Rana <swarnhimachalkesari@gmail.com>
Date: Wed, Apr 17, 2019, 11:43 PM
Subject: SWARN RANA NURPUR
To: <rajneeshkumar@etvbharat.com>


HP_NURPUR_DIVYANG_VARSHA_A_AMAZING_WRITER_FILE_SWARN_RANA

 

अद्भुत है वर्षा चौधरी की प्रतिभा

दिव्यांग होने के साथ स्कूली शिक्षा ग्रहण ना करने के बाबजूद भी लिखती है कवितायेँ

किसी ने खूब कहा है :

मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं,

जिन के सपनों में जान होती है

पंखों से कुछ नहीं होता,

हौसलों से उड़ान होती है’

 

अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो इंसान कई चुनौतियों को पार कर कुछ ऐसा कर गुजरता है जो जिन्दगी से हार मान चुके इंसानों के भी प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है|ऐसा ही कुछ कर दिखाया है ज्वाली विधानसभा के दरकारी पंचायत से सम्बन्ध रखने वाली वर्षा चौधरी ने|भगवान् ने वर्षा को जिस्म से तो दिव्यांग पैदा किया लेकिन उसे मन से मजबूत रखा और यही कारण है शारीरिक रूप से पूरी तरह अक्षम वर्षा ने कभी स्कूल का भी मुंह भी नहीं देखा लेकिन उसकी कविता लेखनी में इतना दम दीखता है जिसके सामने कई डिग्रीधारी भी फेल हो जाए|बिना स्कूल गये कविता लेखनी में महारत हासिल करने की वर्षा की यह प्रतिभा हर किसी को अचरज में दाल देती है 28 वर्षीय वर्षा के परिजनों की माने तो वह शारीरिक रूप से अक्षम है। इसलिए स्कूल नहीं जा पायी और उसने घर में ही पढ़ना-लिखना सीखा। लगभग नौ वर्ष की उम्र में लिखना शुरू किया। शुरू में जब लिखना नहीं आता था तो अपने भाई को बताकर अपने मन के भावों को कागज पर बयां करती थी। फिर धीरे-धीरे लिखना-पढ़ना सीखा। इसके लिये उनकी भाभी ने  भी उन्हें हौंसला दिया और प्रेरित किया।बचपन से ही उसे लिखने का बड़ा शौक था और तभी से शौकिया रूप से लिखते रहती थी। अब तक उसने तीस कविताएं लिखी हैं। 

निश्चित रूप से वर्षा चौधरी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो इंसान शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण जिन्दगी से मुंह मोड़ चुके है|

 वहीं वर्षा चौधरी के पिता बलदेव राज का कहना है कि हमने अपनी बेटी के इलाज के लिएकोई अस्पताल नहीं छोड़ा| लेकिन बड़े बड़े डाक्टर इसकी बीमारी की तह तक नहीं पहुँच पाए जिससे थक हार कर उन्होंने अब इसकी घर में ही देखभाल करने का फैंसला लिया|पिता का कहना है कि उनकी बेटी एक बहुत ही होनहार है जो कि है तो बिल्कुल अनपढ़ लेकिन उसकी लेखनी अद्भुत है|वहीँ उन्हें सरकार से भी मलाल है कि सरकार ने उनकी आज तक कोई मदद नहीं की|उनका कहना है कि उसे अपाहिज पेंशन भी अब 1 साल पहले लगी है|उन्होंने दुःख जताते हुए कहा कि सरकार वादे तो बहुत करती है लेकिन उसकी बेटी के लिए आज तक एक व्हीलचेयर भी नही दे पाई|

 

वर्षा चौधरी द्वारा लिखी गयी कविताए

 

*आशा न छोड़ना तुम* 

 

 

स्याह अँधेरी रात में जुगनू सा जगमगाना तू,  

ले आना आशा का सूर्य, इन उदासीन घनेरे बदलों से न घबराना तू

 

पपीहे सा प्यासा रेहना, सावन बुझाये प्यास पर तृष्णा न बुझाना तू, जब-जब हो जीवन में अँधियारा तब-तब आशा का बस एक दीप जलाना तू! 

 

चढ़ना-उतरना, गिरना गिरके संभालना, हज़ारों ठोकरें गिरायेगी तुम्हें, निराशा की राह दिखाएगी तुम्हें, हर ठोकर पर मुस्कुरा लेना तुम

 

दिखे जब भी निराशा, उसे आशा का पता बता देना तुम, होगा नामुमकिन सा ज़िन्दगी का हर सफर, दिखेंगीं मुश्किलें ही इधर उधर, बस आशा की डोर थामे हर पहाड़ चढ़ जाना तुम

 

हो जाएगी हर मुश्किल आसान, बस आशा की राह छोड़ निराशा की गली में न चले जाना तुम!  

 

 

गमों का समंदर डुबा देगा, मझधार में तेरी कश्ती लगा देगा, रखना यकीन खुदा पे, वो देके आशा का चप्पु, तेरी कश्ती उस पार पहुंचा देगा! 

 

कभी जो गिरो उम्मीदों की शाख से तो आशा का  नया बीज ऊगाना तुम, तकदीर के हवाले न छोड़ना, खुदकी बंजर ज़मीं पे खुदही बरस जाना तुम

 

जीवन को सही दिशा सही परिभाषा देना तुम, न रखना किसी से आशा, बस किसी की आशा बन जाना तुम !

 

 

 

 

*मैं क्या जानु*

 

दूध की पतिली खाली है 

 

 मैं कैसे कागज़ पर चाँद बनाऊं।

 

बेटी भूखी प्यासी हैघर में रोटी भी तो बासी है

 

      मैं कैसे झूम के मल्हार सुनाऊं।

 

बस यूँ करदूँ अपनी कलम से सबको दिवाना,

 

पर कुटिया में रौशनी का दीया कहां से सजाऊं।

 

फागुन के  त्यौहार  का नशा मैं क्या जानु। 

 

पतझड़ में गिरते पत्तों की फड़फड़ाहट की झंकार का मज़ा  मैं क्या जानु

 

मेरी तो आंख में गरीबी की बदहाली है

 

माँ के हाथों में भी तो बदनसीबी के छाले हैं,

 

 बसंत में फूटती नई कूपलों की बहार का समां  मैं क्या जानु

 

कहते हो लिख दो कलम से इश्क़-ए-दास्तां में कैसे घुलती है मोहब्बत की फ़िज़ा

 

मेरी तो कलम सियाही से खाली है

 

मैं कहां से शायरी की बौछार चलाऊं 

वर्षा की यह कविताएं वाकई में कविताओं में रूचि रखने वाले लोगों के मन में बहुत सकूं देती है और हर कोई कलम की धनि इस बेटी की प्रशंसा करने के लिए बाध्य हो जाता है|हम तो भगवान् से वर्षा के स्वास्थ्य जीवन की कामना करते हुए सिर्फ यही कह सकते है कि वो जीवन में इसी तरह अपनी इस प्रतिभा से सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी रहे|

बाईट_बलदेव राज,वर्षा के पिता

बाईट_वर्षा के भाई

 

Last Updated : Apr 19, 2019, 7:55 AM IST
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