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30 साल से इस लोकसभा सीट पर खेला जा रहा ठाकुर कार्ड, यहां चलता है राजपूतों का 'सिक्का'

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Published : Apr 7, 2019, 3:38 PM IST

राजपूत वोटर बहुल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस ने एक बार फिर ठाकुर कार्ड खेल दिया है. तीन दशक से इस सीट पर संसद में जाने के लिए ठाकुरों में ही जंग हो रही है.

हमीरपुर लोकसभा सीट

हमीरपुर: राजपूत वोटर बहुल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस ने एक बार फिर ठाकुर कार्ड खेल दिया है. तीन दशक से इस सीट पर संसद में जाने के लिए ठाकुरों में ही जंग हो रही है.
राजपूत वोटर ही यहां पर सत्ता का फैसला भी कर रहे हैं. साल 1988 के बाद करीब तीन दशक से भाजपा और कांग्रेस ठाकुर प्रत्याशियों पर ही अपना दांव खेल रही है. भाजपा ने 15 दिन पहले ही अनुराग ठाकुर को लगातार चौथी बार अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.

वहीं, एक बार फिर कांग्रेस ने लगातार तीन हार के बावजूद रामलाल ठाकुर पर विश्वास जताते हुए जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही क्षेत्रवाद का कार्ड भी खेल दिया है.
बता दें कि 13 लाख से अधिक वोटर वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में पांच लाख से अधिक राजपूत मतदाता हैं. संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में साल1988 से राजपूतों का ही दबदबा है, जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस ने 1988 के बाद हुए लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में राजपूत उम्मीदवारों पर ही विश्वास दिखाया है.

बता दें कि 17 विधानसभा क्षेत्रों वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण भी अहम है. हमीरपुर संसदीय सीट में कुल 13 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक राजपूत मतदाता हैं. यही कारण है कि दशकों से दोनों बड़ी पार्टियां राजपूत मतदाताओं पर विश्वास दिखाती आ रही है. हालांकि लंबे अरसे से भाजपा का इस सीट पर कब्जा है.

बता दें कि कभी कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण चंद्र पराशर के पास रही हमीरपुर संसदीय सीट तीन दशक से अब भाजपा का गढ़ बन गई है. उनके बाद कांग्रेस के एक राजपूत प्रत्याशी ने ही यहां पर कांग्रेस को वर्ष 1996 में जीत दिलाई थी. साल1996 के बाद भाजपा हमीरपुर संसदीय सीट से लगातार सात बार जीत दर्ज कर चुकी है. वर्ष 1998 के बाद लगातार तीन बार सुरेश चंदेल सांसद बने तो वहीं, साल 2007 के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर का इस सीट पर अधिपत्य है.

हमीरपुर लोकसभा सीट में रहता है जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो संसदीय क्षेत्र में 5 लाख राजपूत, 2.70 लाख ब्राह्मण, 3.23 लाख अनुसूचित जाति, 2 लाख ओबीसी वोटर हैं. 17 विधानसभा क्षेत्रों में हमीरपुर जिला की भोरंज बिलासपुर जिला के झंडुत्ता और ऊना जिला की चिंतपूर्णी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. जिला बार जातीय समीकरण की बात करें तो ऊना में 3.97 लाख सवर्ण, 8600 एस टी, 1.15 लाख एससी, हमीरपुर में 3.42 लाख सवर्ण, 3040 एस टी, 1.09 लाख एससी, बिलासपुर में 2.7 दो लाख सवर्ण, 10693 एसटी और 98989 एससी वोटर मौजूद है. संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में 6.55 लाख पुरुष मतदाता और 6.54 लाख महिला मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे.

हमीरपुर: राजपूत वोटर बहुल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस ने एक बार फिर ठाकुर कार्ड खेल दिया है. तीन दशक से इस सीट पर संसद में जाने के लिए ठाकुरों में ही जंग हो रही है.
राजपूत वोटर ही यहां पर सत्ता का फैसला भी कर रहे हैं. साल 1988 के बाद करीब तीन दशक से भाजपा और कांग्रेस ठाकुर प्रत्याशियों पर ही अपना दांव खेल रही है. भाजपा ने 15 दिन पहले ही अनुराग ठाकुर को लगातार चौथी बार अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है.

वहीं, एक बार फिर कांग्रेस ने लगातार तीन हार के बावजूद रामलाल ठाकुर पर विश्वास जताते हुए जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही क्षेत्रवाद का कार्ड भी खेल दिया है.
बता दें कि 13 लाख से अधिक वोटर वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में पांच लाख से अधिक राजपूत मतदाता हैं. संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में साल1988 से राजपूतों का ही दबदबा है, जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस ने 1988 के बाद हुए लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में राजपूत उम्मीदवारों पर ही विश्वास दिखाया है.

बता दें कि 17 विधानसभा क्षेत्रों वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण भी अहम है. हमीरपुर संसदीय सीट में कुल 13 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिसमें पांच लाख से अधिक राजपूत मतदाता हैं. यही कारण है कि दशकों से दोनों बड़ी पार्टियां राजपूत मतदाताओं पर विश्वास दिखाती आ रही है. हालांकि लंबे अरसे से भाजपा का इस सीट पर कब्जा है.

बता दें कि कभी कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण चंद्र पराशर के पास रही हमीरपुर संसदीय सीट तीन दशक से अब भाजपा का गढ़ बन गई है. उनके बाद कांग्रेस के एक राजपूत प्रत्याशी ने ही यहां पर कांग्रेस को वर्ष 1996 में जीत दिलाई थी. साल1996 के बाद भाजपा हमीरपुर संसदीय सीट से लगातार सात बार जीत दर्ज कर चुकी है. वर्ष 1998 के बाद लगातार तीन बार सुरेश चंदेल सांसद बने तो वहीं, साल 2007 के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर का इस सीट पर अधिपत्य है.

हमीरपुर लोकसभा सीट में रहता है जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो संसदीय क्षेत्र में 5 लाख राजपूत, 2.70 लाख ब्राह्मण, 3.23 लाख अनुसूचित जाति, 2 लाख ओबीसी वोटर हैं. 17 विधानसभा क्षेत्रों में हमीरपुर जिला की भोरंज बिलासपुर जिला के झंडुत्ता और ऊना जिला की चिंतपूर्णी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. जिला बार जातीय समीकरण की बात करें तो ऊना में 3.97 लाख सवर्ण, 8600 एस टी, 1.15 लाख एससी, हमीरपुर में 3.42 लाख सवर्ण, 3040 एस टी, 1.09 लाख एससी, बिलासपुर में 2.7 दो लाख सवर्ण, 10693 एसटी और 98989 एससी वोटर मौजूद है. संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में 6.55 लाख पुरुष मतदाता और 6.54 लाख महिला मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे.

Intro: 30 बरस से इस सीट पर खेला जा रहा ठाकुर कार्ड, इस बार जातीय समीकरण के साथ ही कांग्रेस ने क्षेत्रवाद भी साधा हमीरपुर.
राजपूत वोटर बहुल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र मैं दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने एक बार फिर ठाकुर कार्ड खेल दिया है. तीन दशक से इस सीट पर संसद में जाने के लिए ठाकुरों की ही जंग हो रही है और राजपूत वोटर ही यहां पर सत्ता का फैसला भी कर रहे हैं. वर्ष 1988 के बाद करीब तीन दशक से भाजपा और कांग्रेस ठाकुर प्रत्याशियों पर ही अपना दांव लड़ा रही है. भाजपा ने 15 दिन पहले ही अनुराग ठाकुर को लगातार चौथी बार अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था वही एक बार फिर कांग्रेस ने लगातार तीन हार के बावजूद रामलाल ठाकुर पर विश्वास जताते हुए जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही क्षेत्रवाद का कार्ड भी खेल दिया है. बता दें कि 13 लाख से अधिक वोटर वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में पांच लाख से अधिक राजपूत मतदाता है.


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संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में वर्ष 1988 से राजपूतों का ही दबदबा है. जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस ने 1988 के बाद हुए लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में राजपूत उम्मीदवारों पर ही विश्वास दिखाया है. वहीं दूसरी ओर राजपूत मतदाताओं ने ही हर बार सत्ता का फैसला भी किया है. बता दें कि 17 विधानसभा क्षेत्रों वाले हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में जातीय समीकरण भी अहम है. हमीरपुर संसदीय सीट में कुल 13 लाख से अधिक मतदाता है इसमें से 5 लाख से अधिक राजपूत मतदाता है. यही कारण है कि दशकों से दोनों बड़ी पार्टियां राजपूत मतदाताओं पर विश्वास दिखाती आ रही है. हालांकि लंबे अरसे से भाजपा का इस सीट पर कब्जा है।


Conclusion:कभी कांग्रेस के प्रत्याशी नारायण चंद्र पराशर के पास रही हमीरपुर संसदीय सीट तीन दशक से अब भाजपा का गढ़ बन गई है। उनके बाद कांग्रेस के एक राजपूत प्रत्याशी ने ही यहां पर कांग्रेस को वर्ष 1996 में जीत दिलाई थी। यह कांग्रेस की इस सीट पर अंतिम जीत और भाजपा की अंतिम हार थी। उसके बाद से भाजपा यहां पर लगातार सात बार जीत दर्ज कर चुकी है। वर्ष 1998 के बाद लगातार तीन बार सुरेश चंदेल सांसद बने तो वही 2007 के बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर का यह सीट पर अधिपत्य है।

जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो संसदीय क्षेत्र में 5 लाख राजपूत, 2.70 लाख ब्राह्मण, 3.23 लाख अनुसूचित जाति, 2 लाख ओबीसी वोटर है। 17 विधानसभा क्षेत्रों में हमीरपुर जिला की भोरंज बिलासपुर जिला के झंडुत्ता और ऊना जिला की चिंतपूर्णी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। जिला बार जातीय समीकरण की बात करें तो ऊना में 3.97 लाख सवर्ण, 8600 एस टी, 1.15 लाख एससी, हमीरपुर में 3.42 लाख सवर्ण, 3040 एस टी, 1.09 लाख एससी, बिलासपुर में 2.7 दो लाख सवर्ण, 10693 एसटी और 98989 एससी वोटर मौजूद है। संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में 6.55 लाख पुरुष मतदाता और 6.54 लाख महिला मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे।
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