हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश में अब फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) तकनीक से 675 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण होगा. इस तकनीक के इस्तेमाल से बनने वाली सड़क 10 साल तक खराब नहीं होगी. हर बरसात या बर्फबारी के बाद सड़कें उखड़ने की समस्या पहाड़ी राज्य हिमाचल में आम है. जिस वजह से सरकार को हर साल राजस्व का नुकसान होता है और लोगों को भी यातायात दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इस समस्या से निपटने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने यूपी और उत्तराखंड में अपने गए फॉर्मूलों को हिमाचल में लागू करने का निर्णय लिया है. बड़ी बात यह है कि इन सड़कों के निर्माण में अतिरिक्त लागत नहीं आएगी, जबकि वर्तमान में जितने लगातार ही है. उससे कम लागत में ही यह सड़क बनेगी. दरअसल, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत हिमाचल में सैकड़ों किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, उसमें से कुछ सड़कों के निर्माण में यह तकनीक अपनाई जा रही है ताकि पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर कैसे तकनीक को अपनाकर इसके नतीजे को परखा जा सके.
उखाड़ी गई सड़कों की सामग्री भी होगी इस्तेमाल: हिमाचल प्रदेश में वर्तमान तकनीक में सड़कों के नव निर्माण में पुरानी सामग्री अथवा टायरिंग की लेयर अथवा गिट्टी को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है जबकि एफडीआर तकनीक में इस लेयर का भी इस्तेमाल किया जाता है. पुरानी तकनीक में सड़क निर्माण के दौरान टायरिंग की पुरानी लेयर को उखाड़कर फेंक दिया जाता था जबकि नए लेयर बिछाई जाती थी. एफडीआर तकनीक में पुरानी लेयर का भी इस्तेमाल किया जाता है और सीमेंट और केमिकल की कंपोजिशन से पुरानी सामग्री को इतनी बारीकी से मेल्ट किया जाता है कि यह बर्फबारी और बरसात के पानी के लगातार प्रभाव को झेल सके.
यूपी और उत्तराखंड में अपनाई गई है तकनीक: दरअसल, वर्तमान तकनीक के मुताबिक सड़कों पर टायरिंग के दौरान लेयर पर लेयर बिछाई जाती है. जिस वजह से निर्माण सामग्री का अधिक इस्तेमाल होता है और पर्यावरण पर भी अधिक बोझ पड़ता है. संसाधनों का कम से कम इस्तेमाल होने से पर्यावरण पर भी कम बोझ पड़ेगा. यूपी और उत्तराखंड में इस तकनीक को पूर्व में अपनाया जा चुका है इसके सार्थक नतीजे सामने आए हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल में जमीन में पानी की अधिकता बरसात के दौरान अधिक रहती है और बर्फबारी वाले क्षेत्रों में अपनी एक अलग समस्या है. यहां पर नमी को आम तकनीक से बनने वाली सड़क नहीं झेल पा रही हैं.
आधुनिक विदेशी मशीनों का होता है इस्तेमाल: इन सड़कों के निर्माण में सबसे बड़ी समस्या है कि इस तकनीक से सड़कों का निर्माण करने में स्थानीय ठेकेदार सक्षम नहीं है. इस तकनीक से सड़क बनाने के लिए 8 से 10 करोड़ की कीमत की मशीनरी का इस्तेमाल किया जाता है, इस तरह की मशीनरी ठेकेदारों के पास उपलब्ध नहीं है. ऐसे भी इस समस्या के समाधान के लिए विभाग ने इन सड़कों के निर्माण के लिए एक साथ टेंडर निकालकर बड़ी फॉर्म को इस कार्य के लिए आमंत्रित करने की योजना तैयार की है, ताकि इस आधुनिक तकनीक को अपनाया जा सके.
40 करोड़ के लागत से बनेगी 50 किलोमीटर लंबी 8 सड़कें: लोक निर्माण विभाग सर्किल हमीरपुर के अधीक्षण अभियंता विजय कुमार चौधरी का कहना है कि नई टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करने का इस बार प्रयास किया जा रहा है. एफडीआर तकनीक से सड़कें बनाए जाएंगे ताकि कम से कम 10 साल तक यह रोड खराब ना हो. हमीरपुर जिला में 8 सड़कें इस तकनीक से बनाई. इस तकनीक के तहत 50 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण हमीरपुर जिला में किया जाएगा जिसकी कुल लागत 40 करोड़ के लगभग है.