हमीरपुर: कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने प्रतिक्रिया दी है. इस मामले में देशभर में कांग्रेस द्वारा किए गए प्रदर्शन को उन्होंने औचित्य हीन करार दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि न्यायालय द्वारा फैसला दिए जाने का विरोध करना औचित्य हीन प्रतीत हो रहा है. न्यायालय के फैसले के खिलाफ बेवजह आंदोलन खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है जो उचित नहीं है.
उन्होंने कहा कि साल 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक केस की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया था कि यदि कोई सांसद अथवा विधायक को सजा सुनाई जाती है तो वह उच्च अदालत में अपील तो कर सकता है, लेकिन उसकी सदस्यता सजा सुनाए जाने के साथ ही खत्म हो जाएगी. यही वजह रही कि साल 2013 में मनमोहन सरकार में एक अध्यादेश लाया जा रहा था और इस दौरान सरकार ने सर्वोच्च न्यालय के निर्णय को बदलने का प्रयास किया गया था.
मनमोहन सरकार के समय लाए जा रहे विधेयक में यह प्रावधान था कि 2 साल के बजाय यदि 5 साल की सजा होती है तब सदस्यता रद्द किए जाने का प्रावधान होगा. इस विधेयक को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर प्रेस वार्ता में फाड़ दिया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार में ही यह अध्यादेश लागू नहीं हो पाया, जिसके बाद नेता लालू प्रसाद यादव की सदस्यता की रद्द हुई. लालू प्रसाद यादव के साथ ही आजम खान और उनके बेटे की सदस्यता भी इस कानून के अंतर्गत रद्द की गई है. पूर्व मुख्यमंत्री धूमल का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उसी फैसले के आधार पर तमाम कार्रवाई की गई है. लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द किए जाने की सूचना इसी आधार पर जारी की है.
गौरतलब है कि प्रदेश भर में मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सजा सुनाई जाने पर कांग्रेस नेताओं ने कार्यकर्ताओं के साथ सड़कों पर उतर का प्रदर्शन किया है. न्यायालय के इस निर्णय का देशभर में कांग्रेस ने विरोध जताया है. वहीं, दोपहर बाद लोकसभा सचिवालय की तरफ से राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने का फैसला आने पर भाजपा और कांग्रेस के नेताओं में जुबानी जंग छिड़ गई है.
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