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लद्दाख के चादर ट्रैक पर -30 डिग्री में ट्रैकिंग कर सैनिक कल्याण विभाग के उपनिदेशक ने बनाया कीर्तिमान

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Published : Feb 10, 2021, 7:57 AM IST

हमीरपुर सैनिक कल्याण विभाग के उपनिदेशक मनोज राणा ने 8 सदस्यीय अपनी टीम के साथ माइनस 30 डिग्री में लद्दाख के चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग कर कीर्तिमान बनाया है. स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में कैप्टन मंजुला राणा, मुंबई से डा. ममथा लाला, मरिशा साह, दीपक सिंदे, अजय खानापुरी, दिल्ली से सेवानिवृत्त डीएसपी जसविंद्र सिंह और शशांक ने 9 दिनों में इस ट्रैक को पूरा किया है.

tracking on chadar trek
लद्दाख के चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग.

हमीरपुर: सैनिक कल्याण विभाग हमीरपुर के उपनिदेशक मनोज राणा समेत उनके दल के आठ लोगों ने माइनस तीस डिग्री तापमान के बीच लद्दाख के खतरनाक चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग को पूरा किया है. 62 किलोमीटर लंबे इस ट्रैक पर लद्दाख पर्यटन निगम के सौजन्य से ट्रैकिंग होती है, लेकिन इस ट्रैक को पूरा करना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है.

9 दिनों में ट्रैकिंग

सैनिक कल्याण विभाग हमीरपुर के उपनिदेशक स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में कैप्टन मंजुला राणा, मुंबई से डा. ममथा लाला, मरिशा साह, दीपक सिंदे, अजय खानापुरी, दिल्ली से सेवानिवृत्त डीएसपी जसविंद्र सिंह और शशांक ने 9 दिनों में इस ट्रैक को पूरा किया है.

tracking on chadar trek
स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में ट्रैकिंग.

चादर ट्रैक लद्दाख सहित दुनिया के खतरनाक ट्रैक में से एक है. सर्दियों में यहां बहने वाली जंस्कार नदी जम जाती है. यह ट्रैकिंग इसी नदी के ऊपर होती है. नदी के नीचे पानी बहता है जबकि उपरी पांच फीट तक बर्फ जमी होती है. ऐसे में यदि बर्फ कहीं से पिघलती है तो हादसा होने का डर भी बना रहता है.

tracking on chadar trek
माइनस तीस डिग्री तापमान के बीच लद्दाख के खतरनाक चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग.

स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में ट्रैकिंग

स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में दल 16 जनवरी को लद्दाख पहुंचा और तीन दिन तक तैयारी व जरूरी रिहर्सल की. इसके बाद चौथे दिन गाड़ी में 80 किलोमीटर का सफर कर चिलिंग नाम जगह जहां से यह ट्रैक शुरू होता है, वहां पहुंचे. इसके बाद अगले दिन शिंगरा कोमा में ठहराव किया. अगले दिन योकोमा पहुंचे

ये भी पढ़ें: यहां बिटिया के जन्म पर बर्फ के बीच थिरकता है पूरा गांव, जश्न मनाकर करते हैं बेटी का स्वागत

युवाओं के लिए प्रेरणा

ठहराव के बाद टीम ट्रैक के अंतिम पड़ाव में नेराक पहुंची. यहां से फिर वापस आए और कुल नौ दिन में यह ट्रैक पूरा किया. स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा ने कहा कि इस ट्रैक को पूरा करना अपने आप में बेहतरीन अनुभव है. साहसिक गतिविधियों में युवाओं को भाग लेना चाहिए. 55 वर्षीय डॉ. ममता लाला अंटार्कटिका में भी ट्रैकिंग कर चुकी हैं और माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक भी गई हैं. यह साहसिक गतिविधियों में भाग लेने वाले युवाओं के लिए भी प्रेरणा है.

ये भी पढ़ें: चमोली हादसे में हिमाचल की करीब 10 लोग लापता, जयराम सरकार ने मांगी रिपोर्ट

हमीरपुर: सैनिक कल्याण विभाग हमीरपुर के उपनिदेशक मनोज राणा समेत उनके दल के आठ लोगों ने माइनस तीस डिग्री तापमान के बीच लद्दाख के खतरनाक चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग को पूरा किया है. 62 किलोमीटर लंबे इस ट्रैक पर लद्दाख पर्यटन निगम के सौजन्य से ट्रैकिंग होती है, लेकिन इस ट्रैक को पूरा करना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है.

9 दिनों में ट्रैकिंग

सैनिक कल्याण विभाग हमीरपुर के उपनिदेशक स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में कैप्टन मंजुला राणा, मुंबई से डा. ममथा लाला, मरिशा साह, दीपक सिंदे, अजय खानापुरी, दिल्ली से सेवानिवृत्त डीएसपी जसविंद्र सिंह और शशांक ने 9 दिनों में इस ट्रैक को पूरा किया है.

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स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में ट्रैकिंग.

चादर ट्रैक लद्दाख सहित दुनिया के खतरनाक ट्रैक में से एक है. सर्दियों में यहां बहने वाली जंस्कार नदी जम जाती है. यह ट्रैकिंग इसी नदी के ऊपर होती है. नदी के नीचे पानी बहता है जबकि उपरी पांच फीट तक बर्फ जमी होती है. ऐसे में यदि बर्फ कहीं से पिघलती है तो हादसा होने का डर भी बना रहता है.

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माइनस तीस डिग्री तापमान के बीच लद्दाख के खतरनाक चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग.

स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में ट्रैकिंग

स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा की अगुवाई में दल 16 जनवरी को लद्दाख पहुंचा और तीन दिन तक तैयारी व जरूरी रिहर्सल की. इसके बाद चौथे दिन गाड़ी में 80 किलोमीटर का सफर कर चिलिंग नाम जगह जहां से यह ट्रैक शुरू होता है, वहां पहुंचे. इसके बाद अगले दिन शिंगरा कोमा में ठहराव किया. अगले दिन योकोमा पहुंचे

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युवाओं के लिए प्रेरणा

ठहराव के बाद टीम ट्रैक के अंतिम पड़ाव में नेराक पहुंची. यहां से फिर वापस आए और कुल नौ दिन में यह ट्रैक पूरा किया. स्क्वाड्रन लीडर मनोज राणा ने कहा कि इस ट्रैक को पूरा करना अपने आप में बेहतरीन अनुभव है. साहसिक गतिविधियों में युवाओं को भाग लेना चाहिए. 55 वर्षीय डॉ. ममता लाला अंटार्कटिका में भी ट्रैकिंग कर चुकी हैं और माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक भी गई हैं. यह साहसिक गतिविधियों में भाग लेने वाले युवाओं के लिए भी प्रेरणा है.

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