हमीरपुर: यूएन मिशन के दौरान ऑपरेशन खुखरी में शहीद हुए हमीरपुर जिला के टौणीदेवी क्षेत्र के बराड़ा गांव के वीर सपूत कृष्ण कुमार की शहादत की कहानी 21 साल के बाद देश और दुनिया के सामने आएगी. साउथ अफ्रीका में साल 2000 में ऑपरेशन खुखरी में शहीद हुए कृष्ण कुमार की कहानी को इस ऑपरेशन के कमांडिंग ऑफिसर राजपाल पुनिया ने अपनी किताब में बयां किया है.
शहीद हवलदार कृष्ण कुमार को समर्पित इस किताब का 15 जुलाई 2021 को पटना में विमोचन होग. देश और दुनिया तो वीर सपूत की शहादत को जानेगी, लेकिन सरकार की अनदेखी से शहीद के परिजन आहत हैं. वीर शहीद को समर्पित किताब का विमोचन होने जा रहा है ऐसे में परिवार की यादें एक बार फिर ताजा हो गई हैं.
ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में वीर शहीद कृष्ण कुमार के बड़े भाई सेवानिवृत्त सूबेदार रघुवीर सिंह और पुत्र विशाल परमार ने किताब का विमोचन होने पर खुशी जाहिर की है, लेकिन परिवार ने वादे पूरे ना होने पर सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की है. शहीद के बड़े भाई और बेटे को मलाल है कि साल 2000 में तत्कालीन धूमल सरकार ने शहीद की प्रतिमा लगाने और स्थानीय स्कूल का नाम उनके नाम पर रखने का जो वादा किया था वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है.
वर्तमान में यह परिवार कार्यालयों के चक्कर काटकर थक चुका है. नेताओं से भी कई बार मिन्नतें की जा चुकी हैं. हैरानी की बात ये है कि कृष्ण कुमार की शहदत के समय प्रेम कुमार धूमल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कृष्ण कुमार और तत्कालीन सीएम के घर का फासला महज 2 किलोमीटर का है. इसके बाद भी शहीद के परिवार की कोई सुनवाई आज तक नहीं हुई है. 2012 से 2017 तक प्रेम कुमार धूमल एक बार प्रेम कुमार धूमल सीएम बने, लेकिन फिर बही ढाक के तीन पात ही रहे.
ऑपरेशन खुखरी में भारतीय सेना ने बहादुरी की एक ऐसी मिसाल पेश की थी, जिसे पूरी दुनिया ने सलाम किया था. इस ऑपरेशन को यूनाइटेड नेशंस असिस्टेंस मिशन इन सिएरा लियोन के तहत अफ्रीका में अंजाम दिया गया था. इस ऑपरेशन में भारत के अलावा घाना, ब्रिटेन और नाइजीरिया भी शामिल थे, लेकिन इस ऑपरेशन को केवल भारतीय सेना ने अपने दम पर अंजाम दिया था. दरअसल और विद्रोहियों के संगठन रिवोल्यूशनरी यूनाइटेड फ्रंट ने 223 भारतीय जवानों को अफ्रीका के सिएरा लियोना में ढाई महीने से बंधक बनाया हुआ था. जवानों को छुड़वाने के लिए भारतीय सेना ने खुखरी ऑपरेशन शुरू किया था. कार्रवाई करते हुए भारतीय सेना ने सभी जवानों को छुड़वा लिया
शहीद हवलदार कृष्ण कुमार भी इसी ऑपरेशान का हिस्सा था. वापसी के समय शहीद कृष्ण कुमार काफिले में शामिल गाड़ी के चालक थे. इसी दौरान विद्रोहियों ने घात लगाकर हमला कर दिया. इसी बीच गोलियां इनके पेट को चीरते हुए आर पार निकल गई, लेकिन कृष्ण कुमार ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने घायल हालत में ही चार से पांच घंटे तक लगातार गाड़ी चलाते हुए सभी जवानों को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाया. सभी जवानों को सुरक्षित पहुंचाने के बाद उनकी मौत हो गई. कृष्ण कुमार के साहस ने कई जवानों की जिंदगियां बचा ली थी.
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