चंबाः गद्दी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिलाओं की अगुवाई में रानी सुनयना के प्रतीक को पिंक पैलेस से सूही माता मंदिर में स्थापित किया गया. सूही मढ़ में इस वर्ष राजपरिवार की राजा पृथ्वी सिंह की वंशज कन्या श्वेता वर्मन ने विधिवत रूप से पूजा-अर्चना के साथ 3 दिवसीय सूही मेले का विधिवत आगाज किया.
मेले में कोविड नियमो का किया पालन
प्रशासन व नगर परिषद के निर्देशानुसार माता सुनयना की शोभा यात्रा में कोविड नियमों का पालन किया गया. इसके उपंरात गृहरक्षक बैंड ने मनमोहक प्रस्तुतियों व वाद्य यंत्रों की धुनों पर माता के प्रतीक को पिंक पैलेस से बाहर निकाल कर फूलों से सुसज्जित पालकी में रख कर सूही मढ़ के लिए ले जाया गया. इस दौरान माता की पालकी के आगे गद्दी वेशभूषा में कन्या को चलाया गया. इसके साथ पारंपरिक वेशभूषा व घुरेई गाती हुई गद्दी समुदाय की महिलाएं, सदर विधायक व डीसी चंबा के साथ प्रबुद्ध जन सूही मढ़ में पहुंचे. इस दौरान उपायुक्त चंबा डीसी राणा, सदर विधायक पवन नैयर, नगर परिषद अध्यक्ष नीलम नैयर, उपाध्यक्ष सीमा कश्यप सहित अन्य ने रानी सुनयना की पूजा अर्चना कर आर्शीवाद ग्रहण किया.
ये है सूही मेला होने का इतिहास
एक सहस्त्र वर्ष पूर्ण जब चंबा के राजा साहिल वर्मन ने दसवीं शताब्दी में चंबा की नींव रखी. उन्होंने इस नगर को भव्य मंदिरों एवं देव प्रतिमाओं से सुसज्जित किया. उस समय प्रजा को एकमात्र पेयजल की समस्या से जूझना पड़ रहा था. 2 नदियों के बावजूद चंबा में पीने के पानी की कमी थी. एक रात रानी सुनयना को स्वप्न हुआ कि राजघराने से किसी को बलिदान देना पड़ेगा. तभी जाकर जलसंकट से छुटकारा मिल सकता है.
जब राजा साहिल वर्मन को स्वप्न बारे जानकारी मिली तो उन्होंने स्वयं का बलिदान देने का मन बनाया, लेकिन किन्ही कारणों से ये संभव नहीं हो पाया. भावी राजकुमार युगाकार वर्मन बाल अवस्था में थे. इसलिए रानी सुनयना ने स्वयं का बलिदान करने का मन बनाया. भारी जनसमूह के साथ जीवित समाधि के लिए रानी को शाहमदार पहाड़ी के पास मलूणा नामक स्थान पर ले जाया गया. उससे पहले रानी ने सूही के मढ़ जहां मेला लगता है. वहां से अंतिम बार चंबा रियासत को देखा.
समाधि लेने से पूर्व रानी सनयना ने अपनी इच्छा जाहिर की थी कि मेरी याद में हर वर्ष मेला लगाया जाए. यह मेला सिर्फ महिलाओं का मेला होगा और पुरुष इस मेले में न आएं. राज परिवार की बहुएं भी इस मेले में शिरक्त न करें. मेले के दौरान केवल राजपरिवार की कुंवारी कन्या ही मेरी पूजा करें. उसके बाद रानी सुनयना ने जीवित समाधि ले ली और उसी समय वहां पर पानी का स्त्रोत फूट पड़ा, जिससे आज भी चंबा नगर को पेयजल की आपूर्ति होती है. हर वर्ष यहां पर रानी सूही की स्मृति में तीन दिवसीय मेला लगता है.
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