चंबा: रियासत काल के समय चंबा में पानी की भारी किल्लत थी. उस समय पानी की समस्या को हल करने के लिए चंबा की रानी सुनयना ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. आज भी रानी सुनयना के बलिदान की याद में मलूण स्थान पर मेला लगाया जाता है. मलूण वही जगह है जहां पर रानी सुनयना को चिनवाया गया था.
पानी की समस्या थी राजा के लिए चुनौती
दरअसल दसवीं शताब्दी में राजा साहिल बर्मन ने चंबा नगर को रियासत काल में बसाया था. उस समय चंबा नगर में प्रजा तो सुखी थी लेकिन पानी की विकराल समस्या से चंबा रियासत को जूझना पड़ रहा था. राजा साहिल बर्मन ने काफी प्रयास किए लेकिन उनके प्रयास सिरे नहीं चढ़ सके. राजा पानी की समस्या को लेकर काफी परेशान थे क्योंकि चंबा नगर की प्रजा के लिए पानी का इंतजाम करना राजा के लिए चुनौती साबित हो रहा था.
'रानी सुनयना के सपने में आईं कुल देवी'
मान्यता है कि एक दिन राजा की कुल देवी उनकी रानी सुनयना देवी के सपने में आईं और कहा कि चंबा नगर की प्रजा की प्यास तब बुझेगी जब राज परिवार से किसी की बलि लगेगी. रानी ने सोचा कि अगर राजा साहिल बर्मन अपनी बलि देते हैं तो राज पाठ कौन चलाएगा. उनका बेटा बलि देता है तो राज वंश खत्म हो जाएगा.
रानी ने बलिदान देने का लिया फैसला
रानी ने अंतिम निर्णय लेते हुए कहा कि वह अपनी बलि देंगी ताकि उनकी प्रजा प्यासी न रहे. इसी के चलते एक हजार साल पहले रानी सुनयना देवी जिंदा समाधि लेने के लिए राज परिवार और प्रजा के साथ चंबा से काफी दूर मलूण नामक स्थान के लिए रवाना हुईं. मलूण में रानी को चिनार के एक खूबसूरत पेड़ के नीचे पत्थरों के बीच चिनवा दिया गया. उसी समय पानी के नाले से पानी निकला और उसी पानी से चंबा की प्यास बुझाई गई.
रानी की याद में विलाप करती हैं महिलाएं
आज भी रानी के इस बलिदान को चंबा के लोग नहीं भूलते हैं. जब रानी का जिक्र होता है तो हर किसी की आंखों से आंसू बहते हैं. हर साल अप्रैल महीने में रानी के बलिदान को याद करते हुए मलूण में तीन दिवसीय मेला लगाया जाता है. यहां चंबा जिले की महिलाएं ही भाग लेती हैं. इस मेले के दौरान काफी गमगीन माहौल होता है. इसमें महिलाएं रोते-रोते रानी के बलिदान को याद करती हैं. इसके अलावा चंबयाली गाने 'आया बसोया ओ मै माए पंजे सते मिजो सादा नि आया कोई हो' को गाया जाता है.
मलूण में रानी की याद में लगाया जाता है मेला
जब चंबा में बसंत का मौसम होता है तो बेटियों को उनके भाई घर जाकर आमंत्रित करते हैं. इसे चंबयाली भाषा में वृशु कहते हैं. इस त्योहार में महिलाएं रानी को याद करती हैं और काफी रोती बिलखती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि चंबा के लोग उस महान रानी की बदौलत सुख समृद्धि के साथ जीवन यापन कर रहे हैं. हर साल रानी की याद में तीन दिन का मेला लगाया जाता है.
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