बिलासपुर: जनजातीय लोग प्रकृति के पूजक होते हैं. जनजीवन की आधार शिलाएं उनकी परम्पराएं हैं. प्रकृति सभी अर्थों में जनजातीय लोगों की सहचरी बनी हुई है. उनके नृत्य, संगीत, श्रृंगार, मनोरंजन और अन्य कलाओं को संवारने का काम प्रकृति ही स्वयं करती है और उनके त्योहार, उत्सव भी प्रकृति से ही जुड़े हुए हैं.
यह झलक देखने को मिल रही है एनजेडसीसी पटियाला और जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में लूहणू मैदान में पिछले दो दिनों से चल रहे जनजातीय उत्सव में. जनजातीय उत्सव के दूसरी सांस्कृतिक संध्या में तेलंगाना के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत दिलशाह नृत्य किया गया. तेलंगााना के जनजातीय लोग जब महुआ को एकत्रित करने के लिए जंगलों में जाते हैं और जब वे महुआ एकत्रित करते-करते थक जाते हैं तो अपनी थकान को मिटाने के लिए इस नृत्य को करते हैं.
कलाकारों ने पारम्परिक परिधानों के साथ इस नृत्य को प्रस्तुत करके दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया. इसी प्रकार मध्य प्रदेश के लोक कलाकारों ने बधाई और ज्वारा नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को अपनी लोक संस्कृति से परिचित करवाया.
कलाकारों ने लोक नृत्य से बताया कि इन नृत्यों में भी प्रकृति की पूजा की जाती है. जिसमें ज्वारा नृत्य में लोग नौ दिन तक जौं को उगाते हैं और आदिवासी दैवीय शक्तियों को मनाने के लिए देर रात्री तक महिलाएं अपने सिर पर कलश में उगे हुए ज्वार रखकर और पुरूष हाथ में डंडे लेकर इस नृत्य को करते हुए उपासना का भाव प्रदर्शित करते हुए देवी की महिमा का गुणगान करते हैं कि हरे-हरे मोरी माई के जवारे हरे-हरे, माई सब पर कृपा राखियो, वहीं अपनी दूसरी प्रस्तुति में बधाई नृत्य प्रस्तुत करके दर्शकों को अपनी चिरकालीन चली आ रही परम्परा से अवगत करवाया.
जम्मू कश्मीर के लोक कलाकारों ने खूबसूरती के साथ अपने पारम्परिक लोक नृत्यों को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया. लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए तीन जनजातीय नृत्य बारामूला का ऊड़ी और धमाली डांस और कश्मीर का गोजुरी नृत्य ने दर्शकों को भी झूमने पर मजबूर कर दिया, जहां धमाली डांस में पुरूष लोक कलाकारों ने लोक कला को प्रदर्शित किया, वहीं गोजुरी और ऊड़ी नृत्यों मे महिलाओं के नृत्य की आकर्षक भाव-भंगिमाए दर्शकों को भाव विभोर कर तालियां बजाने को विवश कर गई.
ओडिसा के लोक कलाकारों द्वारा नृत्यों की प्रस्तुतियों में जहां पाई का नृत्य में पुरूष लोक नर्तकों ने प्राचीन आत्म रक्षा की शैली पर आधारित नृत्य के माध्यम से मानव पिरामिड और अस्त्र-शस्त्रों के सुन्दर सामजस्य में ढोल की ताल पर नृत्य करते हुए अनूठे करतब दिखाए. वहीं महिला कलाकारों ने पारम्परिक लोक नृत्य की सशक्त तस्वीर अपने नृत्य के माध्यम से सजीव कर दी. पुत्र प्राप्ति के पश्चात इष्ट देवी की आराधना में लीन लोक कलाकारों ने झूमर नृत्य से ओडिसा के रीति रिवाजों को लूहणू के मैदान में जीवंत करके खूब तालियां बटोरी. वहीं छत्तीसगढ़ के भक्ति भाव की भावनाओं को प्रदर्शित करता पंथी नृत्य लोगों को स्वर, ताल, लय व भाव के सुन्दर सामजस्य में दर्शकों के हृदय में स्मृतियां अंकित करने में सफल रहा.