शिमला: प्रदेश के बिलासपुर में गोबिंदसागर झील में सदियों पहले जलमग्न हुए प्राचीन मंदिर अब पानी से बाहर निकलेंगे. इन मंदिरों को पानी से अपलिफ्ट कर रिलोकेट करने को लेकर प्रदेश भाषा,कला एवं संस्कृति विभाग ने एक्सपर्ट टीम को बुलावा भेजा है.
झील के पानी में डूबे इन मंदिरों को किस तरह से अपलिफ्ट कर दूसरी जगह पर स्थापित किया जा सकता है इसे जांचने के लिए 28 जून को इंडियन नेशनल रूरल हेरिटेज ट्रस्ट की टीम जिला बिलासपुर पहुंचकर इन मंदिरों का निरीक्षण करेगी. टीम मंदिरों का निरीक्षण कर इस बात को तय करेगी कि किस तकनीक से इन प्राचीन मंदिरों को पानी से निकाल कर किसी दूसरी जगह पर रिलोकेट किया जा सकता है.
इंडियन नेशनल रूरल हेरिटेज की टीम यह पता लगा कर विभाग को बताएगी की इन मंदिरों को रिलोकेट किया जाना संभव या नहीं. निरीक्षण के बाद जो भी सुझाव टीम की ओर से दिया जाएगा उसी पर विभाग काम करेगा. प्रदेश भाषा,कला एवं संस्कृति विभाग की सचिव पूर्णिमा चौहान ने कहा कि यह 28 मंदिर 8वीं और 15वीं सदी के हैं जो गोविंद सागर झील में डूब गए हैं.
इंडियन नेशनल रूरल हैरीटेज ट्रस्ट के साथ ही एएसआई की एक्सपर्ट टीम भी बुलाई गई है. यह टीम देखगी की किस तरह से इन मंदिरो को उठाया जाए. इजिप्ट में आस्वान डैम बनाने के समय वहां अबु सिंबल टेंपल को उठया गया था, लेकिन उसमें पानी नहीं था फिर भी इसमें दिक्कतें आई थी और एक-एक पत्थर को नंबर दे कर मार्क किया गया था. झील में डूबे मंदिर पानी और सिल्ट से दबे हैं. ऐसे में इन मंदिरों को उठाने में कितना समय और कौन सी तकनीक सफल होगी इसका पता जांच के बाद ही चलेगा. मंदिरों के लिए चयनित भूमि पर सिर्फ 8 मंदिरों को ही रिलोकेट किया जाएगा.
बता दे कि 8 वीं से 18वीं शताब्दी के इन प्राचीन मंदिरों का इतिहास आज भी रहस्य बना हुआ है। दक्षिण भारत की मंदिरों की शैली से यह मंदिर निर्मित है। कहा जाता है कि इन मंदिरों में शिव पार्वती की मूर्तियों के साथ ही कई पेंटिंग्स भी है. इन दिनों यह मंदिर पानी से बाहर दिख रहे हैं, लेकिन पानी का स्तर बढ़ते ही मंदिर फिर से जलमग्न हो जाते हैं. जब यह मंदिर पानी से ऊपर आते हैं तब इन्हें देखने के लिए यहां बाहरी राज्यों सहित आस-पास के क्षेत्रों से लोगों की भीड़ उमड़ती है. इन मंदिरों में से कुछ एक मंदिरों को अपलिफ्ट कर उन्हें चिह्नित जमीन पर रिलोकेट करने के लिए विभाग प्रयास कर रहा है.