बिलासपुर: जनजातीय महोत्सव में हिमाचली लोक कलाकारों ने प्रदेश की अलग-अलग सांस्कृतिक विरासत की छटा बिखेरी.
काली घघरी लेहायां हो, जुग जियो धारा रे गुजरो, रोहड़ू जाणा मेरी अम्मिए आदि गानों की प्रस्तुती पर देश भर से आए लोक कलाकार भी मंच पर पहाड़ी साज और आवाज की स्वर लहरियों में अपने को नाचने से नहीं रोक पाए.
ओडिशा के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत पाइका नृत्य विगत दिनों से दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लोक कलाकारों द्वारा अपने नृत्य के माध्यम से युवाओं को नशे से दूर रहने का प्रभावी संदेश भेजा जा रहा है.
छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों की शारीरिक ऊर्जा का प्रदर्शन दर्शकों को रोमांचक करके ना केवल अपने प्रदेश की पंथी परंपरा का अवलोकन ही करवाता है, बल्कि हैरतअंगेज पीरामीड बनाकर दर्शकों को हैरान कर देता है. जम्मू कश्मीर की खूबसूरत वादियों से आए खूबसूरत कलाकारों की खूबसूरत प्रस्तुतियां देखते ही बनती है. गोजुरी नृत्य में जहां नृत्यांगनाओं की आकर्षक भाव भंगिमाएं दर्शकों को उत्साहित कर रही हैं. वहीं ओडणी दा अल्हा पर नृत्य करती सुन्दर बालाएं ने अपने मनमोहक नृत्य से दर्शकों का दिल जीत लिया.
दल के वरिष्ठ कलाकारों की इबादत में रची प्रस्तुती उनकी आस्था का सुंदर स्वरूप प्रस्तुत करती है. वहीं, सूफी गायन व नृत्य पर झूमते वरिष्ठ कलाकारों की नृत्य ऊर्जा देखते ही बनती है. सिक्किम राज्य की प्रस्तुती में वहां के जनजीवन का सुंदर प्रतिबिम्ब दर्शकों को देखने को मिल रहा है. खेतों में महुआ चुनती नृत्यांगनाओं व नृतकों की लयबद्ध प्रस्तुती में वहां की वेशभूषा व वाद्य यंत्रों के सामजस्य में प्रस्तुत नृत्य दर्शकों को खूब लुभा रहा है.