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Bilaspur Seat Result: भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक जम्वाल जीते

हिमाचल प्रदेश की बिलासपुर सदर सीट की जंग काफी दिलचस्प होने वाली है. कांग्रेस ने इस सीट से पूर्व विधायक बंबर ठाकुर (Bumber Thakur vs Trilok jamwal) को टिकट दिया है. बीजेपी ने मौजूदा विधायक सुभाष ठाकुर का टिकट काटते हुए त्रिलोक जम्वाल पर भरोसा जताया है. पढ़ें.

Bilaspur Seat Result
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Published : Dec 8, 2022, 9:37 AM IST

Updated : Dec 8, 2022, 5:12 PM IST

बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर सदर विधानसभा की सीट भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि इस सीट से जेपी नड्डा का राजनीतिक करियर शुरू हुआ था. इस सीट को पाने या बचाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया. सदर सीट पर राजनीति जेपी नड्डा पर्दे के पीछे से खेलते आए हैं, यह बात भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी मानती है. (bilaspur assembly seat ) (himachal assembly election 2022).

बंबर और जम्वाल के बीच कांटे की टक्कर: बिलासपुर सदर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बंबर ठाकुर और भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक जम्वाल के बीच कांटे की टक्कर मानी जाती है. क्योंकि त्रिलोक जम्वाल के पीछे जेपी नड्डा का पूरा हाथ है तो वहीं, बंबर ठाकुर को कांग्रेस नहीं बल्कि जनता का साथ है. क्योंकि बंबर ठाकुर के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने टिकट आवंटन से पहले काफी विरोध किया था. कहीं न कहीं बंबर ठाकुर भी यह मानते हैं कि इन नेताओं ने चुनावों के समय सदर कांग्रेस का खूब डैमेज भी किया है.

बिलासपुर सदर सीट का मुकाबला

बागी से परेशानी : वहीं, दूसरी ओर भाजपा की बात करें तो यहां पर भी बगावत के सुर शांत होते हुए नजर नहीं आए हैं क्योंकि यहां पर सीटिंग एमएलए सुभाष ठाकुर का टिकट काटकर त्रिलोक जम्वाल को दिया गया. जिससे सुभाष ठाकुर तो नाराज हुए ही, साथ ही सुभाष ठाकुर के समर्थक भी काफी समय तक नाराज दिखे. यहीं नहीं सुभाष ठाकुर की टीम की बात करें तो वह भी इन चुनावों में खासा जोर आजमाईश करते हुए नजर नहीं आए हैं. दूसरी ओर भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता सुभाष शर्मा ने भी आजाद उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश कर दी और सदर से चुनावी मैदान में उतर आए.

दोनों प्रतिद्वंदी उम्मीदवार हैं राजपूत: दोनों प्रतिद्वंदी उम्मीदवार राजपूत बिरादरी से हैं, जिसके चलते ब्राह्मणों व एससी वर्ग के वोटों पर सबकी निगाहें टिकी हैं. क्योंकि ये डिसाइडिंग फैक्टर है. विकास के मामले में नड्डा ने बिलासपुर को एम्स व हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे संस्थान दिए हैं, किन्तु भाजपा की आपसी फूट कहीं बीजेपी उम्मीदवार पर भारी न पड़े. अभी तक नड्डा दोनों सुभाष ठाकुर व सुभाष शर्मा को मना नहीं पाए हैं.

वहीं, कांग्रेसी के उम्मीदवार बंबर ठाकुर तमाम चुनौतियों के बाद भी रण में डटे हुए हैं. वह 2012 में पहली बार इस सीट से जीते. 2017 में चुनाव हारे. टिकट की दौड़ में उन्हें भी कई परेशानियों से जूझना पड़ा. अंदरखाने कुछ ब्राह्मण नेता बंबर ठाकुर के साथ ही भीतरघात के हालात बनाए हुए हैं.

जेपी नड्डा का गढ़: इस सीट पर अभी तक सिर्फ राजपूत व ब्राह्मण उम्मीदवार ही जीत का परचम लहरा पाए हैं. यहां सबसे पहले दौलत राम सांख्यान विधायक बने. 1977 में राजा आनंद चंद निर्दलीय विधायक चुने गए. इसके बाद कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी यहां से जीती. 1982 में भाजपा के सदाराम ठाकुर, 1985 में कांग्रेस के बाबूराम गौतम, 1990 में फिर भाजपा के सदाराम ठाकुर, इसके बाद 1993, 1998 व 2007 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां से चुनाव जीते. 2003 में नड्डा को पहली बार कांग्रेस के तिलकराज से हार का सामना भी करना पड़ा. 2012 में यहां से कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने पहली दफा लड़कर चुनाव जीता. 2017 में वो नड्डा के खासमखास सुभाष ठाकुर से चुनाव हार गए.

सदर का मत प्रतिशत: 1993 में जेपी नड्डा 51.87 प्रतिशत वोट लेकर विजयी रहे. कांग्रेस उम्मीदवार बाबू राम गौतम को 45.27 प्रतिशत मत मिले. 1998 में नड्डा के मतों का ग्राफ बढ़ा. उन्हें 55.99 प्रतिशत मत हासिल हुए. कांग्रेस के बाबूराम गौतम मात्र 34.72 प्रतिशत मत ही हासिल कर पाए. हिविकां के टिकट पर लड़े सदाराम ठाकुर को मात्र 5.8 प्रतिशत मत हासिल हुए.

2003 में कांग्रेस के नए उम्मीदवार तिलक राज ने 50.91 प्रतिशत मत हासिल कर भाजपा के जेपी नड्डा का विजयी रथ रोका. नड्डा को 44.84 प्रतिशत मत ही हासिल हुए. नड्डा को नजदीकी मुकाबले में 2726 मतों के अंतर से हार मिली. 2007 में नड्डा ने कांग्रेस के बंबर ठाकुर को 11.181 मतों के भारी अंतर से हराया. 2012 में नड्डा केंद्र की राजनीति में चले गए. कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने इस चुनाव में भाजपा के पूर्व सांसद सुरेश चंदेल को 5141 मतों के अंतर से पराजित किया. बंबर को 47.95 प्रतिशत, वहीं चंदेल को 37.82 प्रतिशत मत हासिल हुए. 2017 में दोनों प्रत्याशियों के बीच फिर मुकाबला हुआ, जहां भाजपा के सुभाष ठाकुर ने कांग्रेस के बंबर ठाकुर को पराजित कर दिया. सुभाष को 54.25 प्रतिशत तो वहीं बंबर ठाकुर को 42.45 प्रतिशत मत हासिल हुए.

उम्मीदवारों की कमजोरी और ताकत: भाजपा के नए उम्मीदवार त्रिलोक जम्वाल हालांकि घुमारवीं के रहने वाले हैं, मगर उनकी कर्मभूमि बिलासपुर ही रही है. एबीवीपी की राजनीति से अपना कैरियर शुरू करने वाले त्रिलोक को मेहनती कार्यकर्ता होने का इनाम मिला. नड्डा का उन्हें साथ मिल रहा है. वो अभी तक मुख्यमंत्री के ओएसडी व संगठन में महामंत्री के ओहदे पर थे. सौम्य स्वभाव के त्रिलोक बड़े खामोश होकर कार्य करने वाले हैं. उनके निर्बल पक्ष में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के बागी हैं. निवर्तमान विधायक सुभाष ठाकुर व निर्दलीय मैदान में उतरे सुभाष शर्मा इनकी राह में चुनौती बनकर खड़े हैं. चुनाव में उतरने का यह उनका पहला अनुभव है.

कांग्रेस प्रत्याशी बंबर ठाकुर ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं. वह लोगों के सुख-दुख में हमेशा खड़े रहते हैं. धरातल पर वोटरों में उनकी अच्छी पकड़ है. दबंग छवि के बंबर ठाकुर आज भी अपने गांव वाले निवास स्थान पर रहते हैं. एनएसयूआई की छात्र राजनीति से निकल कर आए हैं. कोरोना काल में भी लोगों के संपर्क में रहे. कांग्रेस का कोई भी बागी उनके खिलाफ चुनाव में नहीं उतरा है. निर्बल पक्ष में उनके पुत्र का चरस मामले में पकड़े जाना व अधिकारियों को धमकाना, उनकी छवि पर भारी पड़ रहा है. प्रतिद्वंदियों को उनके खिलाफ ये मुद्दे मिल रहे हैं. कांग्रेस संगठन के जिला के अन्य नेता भी बंबर की दबंग छवि के कारण अंदरखाते उनकी राह में रोड़ा अटकाएंगे. शहर में चंद कांग्रेसी बंबर के साथ भीतरघात कर सकते हैं, क्योंकि सामने से विरोध करने की वो स्थिति में नहीं हैं.

करोड़पति हैं बंबर ठाकुर: बिलासपुर सदर से दोबारा मैदान में उतरे पूर्व विधायक व कांग्रेस उम्मीदवार बंबर ठाकुर करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं. बंबर ठाकुर द्वारा चुनाव आयोग को दिए हलफनामे पर नजर डालें, तो उनके परिवार के पास 8.94 करोड़ की संपत्ति है. 55 वर्षीय बंबर ठाकुर के परिवार की चल संपत्ति 3.68 करोड़ और अचल संपत्ति 5.27 करोड़ है. हल्फनामे में बंबर ठाकुर ने अपनी चल संपत्ति ढाई करोड़ और पत्नी की 89.95 करोड़ दिखाई है. उनके दोनों बच्चों के पास क्रमशः 27.74 लाख और 63 हजार की संपत्ति है. इसके अलावा उनके नाम 4.55 करोड़ की अचल संपत्ति है, जबकि पत्नी के नाम 65.17 लाख और एक बेटे के नाम 6.30 लाख की अचल संपत्ति है. अचल संपति में बंबर ठाकुर के पास कृषि भूमि, गैर कृषि भूमि, व्यवसायिक और रिहायशी भवन हैं. बंबर ठाकुर पर 39.26 लाख और उनके बेटे पर 16.34 लाख की देनदारियां भी हैं. बंबर ठाकुर ने वकालत की पढ़ाई की है. उन्होंने वर्ष 1994 में हिमाचल विवि से एलएलबी की डिग्री हासिल की है.

त्रिलोक जम्वाल की संपत्ति: बिलासपुर के चुनावी रण में पहली बार भाजपा की टिकट पर किस्मत आजमा रहे त्रिलोक जम्वाल करोड़पति हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के राजनीतिक सलाहकार 48 वर्षीय त्रिलोक जम्वाल की चल एवं अचल संपत्ति 3 करोड़ से अधिक है. चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 3.02 करोड़ दिखाई है. उनके शिमला के अलावा चंडीगढ़ और पिंजौर में रिहायशी मकान हैं. उनके पास कृषि भूमि नहीं है, लेकिन उनके पास गैर कृषि भूमि, व्यावसायिक और रिहायशी भवन हैं. 48 वर्षीय त्रिलोक जम्वाल के पास 12.21 लाख की चल संपत्ति है. जबकि उनकी पत्नी के नाम 22.62 लाख की चल संपत्ति है. त्रिलोक जम्वाल पर 7.59 लाख की देनदारियां हैं. इसमें उनका हाउस लोन भी शामिल है. त्रिलोक जम्वाल ने भी कानून की पढ़ाई की है. उन्होंने वर्ष 1997 में हिमाचल विवि से एमकॉम और वर्ष 2001 में एलएलबी की है.

सुभाष शर्मा 81 लाख की संपत्ति के मालिक: भाजपा की टिकट न मिलने से नाराज सुभाष शर्मा ने बिलासपुर सदर से निर्दलीय ताल ठोंक दी है. सुभाष शर्मा ने चुनावी हलफनामे में अपनी कुल संपत्ति 81 लाख दिखाई है. इसमें उनकी पत्नी की संपत्ति भी शामिल हैं. 51 वर्षीय सुभाष शर्मा के नाम 13.51 लाख और पत्नी के नाम 18.85 लाख की चल संपत्ति है. सुभाष शर्मा के पास नौ लाख की अचल संपत्ति है. उनकी पत्नी 40.17 लाख की अचल संपत्ति की मालकिन हैं. दंपति पर 23 लाख की देनदारियां हैं. सुभाष शर्मा ने 5 लाख और पत्नी ने 18 लाख का लोन लिया है. सुभाष शर्मा की शैक्षिणक योग्यता पीजी है. उन्होंने वर्ष 1995 में बीएससीए वर्ष 1998 में एचपीयू से बीएड और वर्ष 2001 में एमकॉम की पढ़ाई की है.

बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर सदर विधानसभा की सीट भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि इस सीट से जेपी नड्डा का राजनीतिक करियर शुरू हुआ था. इस सीट को पाने या बचाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया. सदर सीट पर राजनीति जेपी नड्डा पर्दे के पीछे से खेलते आए हैं, यह बात भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी मानती है. (bilaspur assembly seat ) (himachal assembly election 2022).

बंबर और जम्वाल के बीच कांटे की टक्कर: बिलासपुर सदर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बंबर ठाकुर और भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक जम्वाल के बीच कांटे की टक्कर मानी जाती है. क्योंकि त्रिलोक जम्वाल के पीछे जेपी नड्डा का पूरा हाथ है तो वहीं, बंबर ठाकुर को कांग्रेस नहीं बल्कि जनता का साथ है. क्योंकि बंबर ठाकुर के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने टिकट आवंटन से पहले काफी विरोध किया था. कहीं न कहीं बंबर ठाकुर भी यह मानते हैं कि इन नेताओं ने चुनावों के समय सदर कांग्रेस का खूब डैमेज भी किया है.

बिलासपुर सदर सीट का मुकाबला

बागी से परेशानी : वहीं, दूसरी ओर भाजपा की बात करें तो यहां पर भी बगावत के सुर शांत होते हुए नजर नहीं आए हैं क्योंकि यहां पर सीटिंग एमएलए सुभाष ठाकुर का टिकट काटकर त्रिलोक जम्वाल को दिया गया. जिससे सुभाष ठाकुर तो नाराज हुए ही, साथ ही सुभाष ठाकुर के समर्थक भी काफी समय तक नाराज दिखे. यहीं नहीं सुभाष ठाकुर की टीम की बात करें तो वह भी इन चुनावों में खासा जोर आजमाईश करते हुए नजर नहीं आए हैं. दूसरी ओर भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता सुभाष शर्मा ने भी आजाद उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश कर दी और सदर से चुनावी मैदान में उतर आए.

दोनों प्रतिद्वंदी उम्मीदवार हैं राजपूत: दोनों प्रतिद्वंदी उम्मीदवार राजपूत बिरादरी से हैं, जिसके चलते ब्राह्मणों व एससी वर्ग के वोटों पर सबकी निगाहें टिकी हैं. क्योंकि ये डिसाइडिंग फैक्टर है. विकास के मामले में नड्डा ने बिलासपुर को एम्स व हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे संस्थान दिए हैं, किन्तु भाजपा की आपसी फूट कहीं बीजेपी उम्मीदवार पर भारी न पड़े. अभी तक नड्डा दोनों सुभाष ठाकुर व सुभाष शर्मा को मना नहीं पाए हैं.

वहीं, कांग्रेसी के उम्मीदवार बंबर ठाकुर तमाम चुनौतियों के बाद भी रण में डटे हुए हैं. वह 2012 में पहली बार इस सीट से जीते. 2017 में चुनाव हारे. टिकट की दौड़ में उन्हें भी कई परेशानियों से जूझना पड़ा. अंदरखाने कुछ ब्राह्मण नेता बंबर ठाकुर के साथ ही भीतरघात के हालात बनाए हुए हैं.

जेपी नड्डा का गढ़: इस सीट पर अभी तक सिर्फ राजपूत व ब्राह्मण उम्मीदवार ही जीत का परचम लहरा पाए हैं. यहां सबसे पहले दौलत राम सांख्यान विधायक बने. 1977 में राजा आनंद चंद निर्दलीय विधायक चुने गए. इसके बाद कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी यहां से जीती. 1982 में भाजपा के सदाराम ठाकुर, 1985 में कांग्रेस के बाबूराम गौतम, 1990 में फिर भाजपा के सदाराम ठाकुर, इसके बाद 1993, 1998 व 2007 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा यहां से चुनाव जीते. 2003 में नड्डा को पहली बार कांग्रेस के तिलकराज से हार का सामना भी करना पड़ा. 2012 में यहां से कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने पहली दफा लड़कर चुनाव जीता. 2017 में वो नड्डा के खासमखास सुभाष ठाकुर से चुनाव हार गए.

सदर का मत प्रतिशत: 1993 में जेपी नड्डा 51.87 प्रतिशत वोट लेकर विजयी रहे. कांग्रेस उम्मीदवार बाबू राम गौतम को 45.27 प्रतिशत मत मिले. 1998 में नड्डा के मतों का ग्राफ बढ़ा. उन्हें 55.99 प्रतिशत मत हासिल हुए. कांग्रेस के बाबूराम गौतम मात्र 34.72 प्रतिशत मत ही हासिल कर पाए. हिविकां के टिकट पर लड़े सदाराम ठाकुर को मात्र 5.8 प्रतिशत मत हासिल हुए.

2003 में कांग्रेस के नए उम्मीदवार तिलक राज ने 50.91 प्रतिशत मत हासिल कर भाजपा के जेपी नड्डा का विजयी रथ रोका. नड्डा को 44.84 प्रतिशत मत ही हासिल हुए. नड्डा को नजदीकी मुकाबले में 2726 मतों के अंतर से हार मिली. 2007 में नड्डा ने कांग्रेस के बंबर ठाकुर को 11.181 मतों के भारी अंतर से हराया. 2012 में नड्डा केंद्र की राजनीति में चले गए. कांग्रेस के बंबर ठाकुर ने इस चुनाव में भाजपा के पूर्व सांसद सुरेश चंदेल को 5141 मतों के अंतर से पराजित किया. बंबर को 47.95 प्रतिशत, वहीं चंदेल को 37.82 प्रतिशत मत हासिल हुए. 2017 में दोनों प्रत्याशियों के बीच फिर मुकाबला हुआ, जहां भाजपा के सुभाष ठाकुर ने कांग्रेस के बंबर ठाकुर को पराजित कर दिया. सुभाष को 54.25 प्रतिशत तो वहीं बंबर ठाकुर को 42.45 प्रतिशत मत हासिल हुए.

उम्मीदवारों की कमजोरी और ताकत: भाजपा के नए उम्मीदवार त्रिलोक जम्वाल हालांकि घुमारवीं के रहने वाले हैं, मगर उनकी कर्मभूमि बिलासपुर ही रही है. एबीवीपी की राजनीति से अपना कैरियर शुरू करने वाले त्रिलोक को मेहनती कार्यकर्ता होने का इनाम मिला. नड्डा का उन्हें साथ मिल रहा है. वो अभी तक मुख्यमंत्री के ओएसडी व संगठन में महामंत्री के ओहदे पर थे. सौम्य स्वभाव के त्रिलोक बड़े खामोश होकर कार्य करने वाले हैं. उनके निर्बल पक्ष में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के बागी हैं. निवर्तमान विधायक सुभाष ठाकुर व निर्दलीय मैदान में उतरे सुभाष शर्मा इनकी राह में चुनौती बनकर खड़े हैं. चुनाव में उतरने का यह उनका पहला अनुभव है.

कांग्रेस प्रत्याशी बंबर ठाकुर ग्रामीण इलाकों में काफी लोकप्रिय हैं. वह लोगों के सुख-दुख में हमेशा खड़े रहते हैं. धरातल पर वोटरों में उनकी अच्छी पकड़ है. दबंग छवि के बंबर ठाकुर आज भी अपने गांव वाले निवास स्थान पर रहते हैं. एनएसयूआई की छात्र राजनीति से निकल कर आए हैं. कोरोना काल में भी लोगों के संपर्क में रहे. कांग्रेस का कोई भी बागी उनके खिलाफ चुनाव में नहीं उतरा है. निर्बल पक्ष में उनके पुत्र का चरस मामले में पकड़े जाना व अधिकारियों को धमकाना, उनकी छवि पर भारी पड़ रहा है. प्रतिद्वंदियों को उनके खिलाफ ये मुद्दे मिल रहे हैं. कांग्रेस संगठन के जिला के अन्य नेता भी बंबर की दबंग छवि के कारण अंदरखाते उनकी राह में रोड़ा अटकाएंगे. शहर में चंद कांग्रेसी बंबर के साथ भीतरघात कर सकते हैं, क्योंकि सामने से विरोध करने की वो स्थिति में नहीं हैं.

करोड़पति हैं बंबर ठाकुर: बिलासपुर सदर से दोबारा मैदान में उतरे पूर्व विधायक व कांग्रेस उम्मीदवार बंबर ठाकुर करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं. बंबर ठाकुर द्वारा चुनाव आयोग को दिए हलफनामे पर नजर डालें, तो उनके परिवार के पास 8.94 करोड़ की संपत्ति है. 55 वर्षीय बंबर ठाकुर के परिवार की चल संपत्ति 3.68 करोड़ और अचल संपत्ति 5.27 करोड़ है. हल्फनामे में बंबर ठाकुर ने अपनी चल संपत्ति ढाई करोड़ और पत्नी की 89.95 करोड़ दिखाई है. उनके दोनों बच्चों के पास क्रमशः 27.74 लाख और 63 हजार की संपत्ति है. इसके अलावा उनके नाम 4.55 करोड़ की अचल संपत्ति है, जबकि पत्नी के नाम 65.17 लाख और एक बेटे के नाम 6.30 लाख की अचल संपत्ति है. अचल संपति में बंबर ठाकुर के पास कृषि भूमि, गैर कृषि भूमि, व्यवसायिक और रिहायशी भवन हैं. बंबर ठाकुर पर 39.26 लाख और उनके बेटे पर 16.34 लाख की देनदारियां भी हैं. बंबर ठाकुर ने वकालत की पढ़ाई की है. उन्होंने वर्ष 1994 में हिमाचल विवि से एलएलबी की डिग्री हासिल की है.

त्रिलोक जम्वाल की संपत्ति: बिलासपुर के चुनावी रण में पहली बार भाजपा की टिकट पर किस्मत आजमा रहे त्रिलोक जम्वाल करोड़पति हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के राजनीतिक सलाहकार 48 वर्षीय त्रिलोक जम्वाल की चल एवं अचल संपत्ति 3 करोड़ से अधिक है. चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 3.02 करोड़ दिखाई है. उनके शिमला के अलावा चंडीगढ़ और पिंजौर में रिहायशी मकान हैं. उनके पास कृषि भूमि नहीं है, लेकिन उनके पास गैर कृषि भूमि, व्यावसायिक और रिहायशी भवन हैं. 48 वर्षीय त्रिलोक जम्वाल के पास 12.21 लाख की चल संपत्ति है. जबकि उनकी पत्नी के नाम 22.62 लाख की चल संपत्ति है. त्रिलोक जम्वाल पर 7.59 लाख की देनदारियां हैं. इसमें उनका हाउस लोन भी शामिल है. त्रिलोक जम्वाल ने भी कानून की पढ़ाई की है. उन्होंने वर्ष 1997 में हिमाचल विवि से एमकॉम और वर्ष 2001 में एलएलबी की है.

सुभाष शर्मा 81 लाख की संपत्ति के मालिक: भाजपा की टिकट न मिलने से नाराज सुभाष शर्मा ने बिलासपुर सदर से निर्दलीय ताल ठोंक दी है. सुभाष शर्मा ने चुनावी हलफनामे में अपनी कुल संपत्ति 81 लाख दिखाई है. इसमें उनकी पत्नी की संपत्ति भी शामिल हैं. 51 वर्षीय सुभाष शर्मा के नाम 13.51 लाख और पत्नी के नाम 18.85 लाख की चल संपत्ति है. सुभाष शर्मा के पास नौ लाख की अचल संपत्ति है. उनकी पत्नी 40.17 लाख की अचल संपत्ति की मालकिन हैं. दंपति पर 23 लाख की देनदारियां हैं. सुभाष शर्मा ने 5 लाख और पत्नी ने 18 लाख का लोन लिया है. सुभाष शर्मा की शैक्षिणक योग्यता पीजी है. उन्होंने वर्ष 1995 में बीएससीए वर्ष 1998 में एचपीयू से बीएड और वर्ष 2001 में एमकॉम की पढ़ाई की है.

Last Updated : Dec 8, 2022, 5:12 PM IST
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