ऊना: 19 साल की सुमन पढ़ाई में बेहद होशियार थी. उसकी इतनी काबिलियत के चलते उसे प्लस टू तक छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई. हालांकि उस समय भी परिवार की माली हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी. पिता दिहाड़ी मजदूरी करते तो मां भी बराबर मेहनत करते हुए पति का हाथ बंटाती और परिवार चलाने के लिए यथासंभव सहयोग करती. सुमन भी उम्र के मुताबिक परिवार की आर्थिकी सुधारने में लगातार प्रयास करती रहती थी. लेकिन उसके सपने पर तनाव भारी पड़ गया आखिरकार आवसाद में आकर उसने खुदकुशी कर ली. उसकी खुदकुशी ने कई सारे सवाल खड़े कर दिए हैं.
दरअसल 3 बच्चों में सबसे बड़ी बेटी सुमन पढ़ लिख कर माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बनना चाहती थी, लेकिन समय तेजी से बदला और इस परिवार की किस्मत ने उससे मुंह फेर लिया. परिवार के मुखिया जगदीश सिंह सांस की तकलीफ से प्रभावित होने लगे. फिर भी मेहनत का जज्बा नहीं छोड़ा. देखते ही देखते तकलीफ सांसों से बढ़कर दिल तक जा पहुंची. मजबूरन जगदीश को काम धंधा छोड़ना पड़ा. अब परिवार का पूरा बोझ जगदीश की पत्नी पूनम पर आ गया. 3 बच्चों में सबसे बड़ी बेटी सुमन जो जिला मुख्यालय के पीजी कॉलेज में बीसीए की पढ़ाई कर रही थी, उसे रोजमर्रा कॉलेज आने और जाने के लिए किराए की भी जरूरत पड़ती. छोटी बहन जो +2 में है और छोटा भाई जो नौवीं कक्षा का स्टूडेंट है, घर के ही नजदीक स्कूल में पढ़ने जाते हैं.
पिता की बीमारी बढ़ी तो दवा का खर्च (Una suicide case) भी बढ़ता चला गया. परिवार की हालत देखकर पढ़ने लिखने में बेहद तेज सुमन तनाव और अवसाद की तरफ बढ़ने लगी. आखिर जब परिवार की माली हालत बद से बदतर हो गई तो सुमन ने पिता की दवा के खर्च के लिए न सिर्फ अपनी पढ़ाई बल्कि अपनी जिंदगी को ही खत्म करने का फैसला ले लिया. बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे परिवार को कानों कान खबर तक न हुई कि उनकी लाडली तनाव और अवसाद की चपेट में आ चुकी है.
हालांकि बेटियों को बचत करने की आदत बेहद कॉमन है. इसी (Suman commits suicide in una) के चलते सुमन भी कुछ न कुछ बचा कर जरूर रखती. उन्हीं पैसों का ख्याल कर सुमन ने अपने माता-पिता के नाम आखरी संदेश लिखना शुरू कर दिया. आर्थिक तंगी के बीच प्रभावित हो रहे पिता के इलाज के लिए अपनी थोड़ी बहुत बचत का जिक्र करते हुए सुसाइड नोट लिख डाला. सुमन ने अपने दिल की हर बात सुसाइड नोट में लिखते हुए कहा कि पापा आप बीमार हैं और दवा के लिए पैसे तक नहीं हैं. इन परिस्थितियों में मेरी पढ़ाई के कोई मायने नहीं रह जाते. मैंने थोड़े बहुत पैसे यहां वहां बचा कर रखे हैं जिनसे आप अपनी दवा जरूर खरीदना.
इसी पैसे से छोटी बहन के लिए एक नया सूट खरीदने की बात कहते हुए सुमन ने लिखा कि वह भी पढ़ने लिखने में होशियार है आप उसे अच्छे से पढ़ाना लिखाना. वह आपके सपने जरूर साकार करेगी. दिनभर की भागदौड़ के बाद जब पूरा परिवार चैन की नींद सो रहा था तो उसी वक्त तनाव से जूझ रही सुमन ने खौफनाक कदम उठाते हुए खुद को हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया. अपने ही कमरे में लगे पंखे के साथ फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. महज 19 साल की छात्रा इस दुनिया से रुखसत हो गई, लेकिन जाते-जाते अपने पीछे सैकड़ों सवाल छोड़ गई.
पिता रह चुके हैं नगर पंचायत के पार्षद: मृतक छात्रा सुमन के पिता जगदीश सिंह नगर पंचायत गगरेट के पार्षद भी रह चुके हैं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति के लगातार बिगड़ने के चलते परिवार को नगर पंचायत से बाहर गांव जाकर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करनी पड़ी. हालांकि नई शुरुआत के बाद संघर्ष और भी लंबा होता चला गया. वहीं, पिता जगदीश सिंह के एक के बाद एक बीमारियों की जकड़ में आने के बाद आर्थिक हालत बद से बदतर होती चली गई. आखिर इसी बदहाली की भेंट परिवार की 19 साल की बेटी भी चढ़ गई.
पुलिस कर रही मामले की जांच: उधर, पुलिस अधीक्षक अर्जित सेन ठाकुर (Superintendent of Police Arjit Sen Thakur) का कहना है कि पुलिस इस मामले में केस दर्ज करते हुए जांच में जुट गई है. हर पहलू को ध्यान में रखते हुए मामले की जांच अमल में लाई जा रही है.
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