सोलन: देवभूमि हिमाचल अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्य छिपाए हुए हैं. यहां के कण-कण में देवी देवताओं का वास तो है ही, साथ ही यह भूमि कई पौराणिक कथाओं से भी संबंध रखती है. जिला सोलन के कुनिहार में ड्यार के नाम से विख्यात गुफा आज शिव तांडव गुफा के नाम से जानी जाती है. यह शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है.
गुफा में हर सोमवार को श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. यह गुफा कोई साधारण गुफा नहीं है. यह गुफा सतयुग से संबंध रखती है. सारे संसार की रक्षा करने वाले भगवान भोले नाथ को भी किसी समय इसी गुफा में शरण लेनी पड़ी थी. भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है. भगवान शंकर ने भस्मासुर से बचने के लिए शरण ली थी. यहां मौजूद गुफाएं आज भी विज्ञान के लिए चुनौती बनी हुई है.
बताया जाता है कि शिव तांडव गुफा के अंदर गाय के थनों के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था, लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे प्रकृति से हो रही छेड़छाड़ के परिणाम के चलते अब चट्टानों से पानी गिरना भी बंद हो गया है.
मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था. शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है. यहां पर प्रदेश से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी पर्यटक शिव परिवार के दर्शन के लिए आते हैं. गुफा में शिवरात्रि व श्रावण के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है. हर सोमवार को भोले बाबा के दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहता है. इस गुफा के अंदर प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है, यहां शिव परिवार के साथ-साथ नंदी की शिला भी स्थापित है. बताया जाता है कि गुफा में एक रास्ता भी होता था, लेकिन ये रास्ता अब बंद हो गया है. यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है.
इस गुफा का वर्णन शिव पुराण में भी आता है. मान्यता है कि भस्मासुर ने शिव आराधना कर शिव भगवान को प्रसन्न करने के बाद वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. भस्मासुर ने वरदान का प्रयोग भोले शंकर पर ही करना चाहा और फिर भोले शंकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में छुप गए थे. जिन भी गुफाओं में वह जाते. वहां पर अपना प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते हैं. कहा जाता है कि भोले नाथ ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया था.
गुफा का इतिहास: आपने शिव पुराण में ये कथा तो सुनी ही होगी कि भस्मासुर ने शिव आराधना कर शिव भगवान को प्रसन्न करने के बाद वरदान मांगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा. भस्मासुर ने वरदान का प्रयोग भोले शंकर पर ही करना चाहा और फिर भोले शंकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं में छुप रहे थे, जहां भी वे जाते प्रतीक रूप में स्वयंभू शिव पिंडी छोड़ जाते.
भोले शंकर ने इस शिव तांडव गुफा में भी प्राणों की रक्षा के लिए प्रवेश किया. संभवत इस गुफा के भीतर फनेसश्वर शेष नाग मग्न मुद्रा में फन फैलाए बैठे थे. त्रिकालदर्शी शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशालकाय फन के नीचे छुपा लिया और जब भस्मासुर ने चिंघाड़ते हुए गुफा में प्रवेश किया तो वो फन फैलाए शेषनाग के डर से शिव के पास नहीं आ पाया और झुंझलाकर उलटे पांव लौट गया. गुफा में भोले शंकर अपनी पिंडी, शेषनाग फन और नंदी बैल का स्मृति चिन्ह छोड़कर अदृश्य हो गए.
गुफा के प्रवेश द्वार पर शिला रूपी फन फैलाए शेषनाग की आकृति अपने मस्तक के ऊपर समस्त गुफा का भार वहन किए हुए हैं. बताया जाता है कि पहले शिव गुफा के संकरण मार्ग का धोतक था. इसमें प्रदेश के लिए पेट के बल सरक कर या झुकते हुए रेंग कर जाना पड़ता था. गुफा में स्वयंभू तीन फुट ऊंचा शिवलिंग हैं, उनके दाहिनी ओर पूजित मां पार्वती की प्रस्तर प्रतिमा, उनके ठीक सामने नंदी महाराज की आकृति है.
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