सोलन: हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले ETV भारत प्रदेश के सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों के सूरत-ए-हाल से रू-ब-रू करवा रहा है (himachal seat scan) है. आज हिमाचल सीट स्कैन में बात सोलन विधानसभा सीट (solan assembly seat ground report ) की. मौजूदा वक्त में कुल 68 विधानसभा क्षेत्रों में ये 53वीं विधानसभा सीट है. चुनाव की दृष्टि से इस साल सोलन विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. सोलन विधानसभा क्षेत्र जो पिछले काफी समय से चर्चाओं में है. चर्चा में इसलिए क्योंकि यहां पर चुनावी मैदान में इस बार भी ससुर दामाद उतरने के लिए तैयार हैं. एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी रिटायर्ड कर्नल धनीराम शांडिल (Solan Congress MLA Retired Colonel Dhaniram Shandil) पर फिर दांव खेलने के लिए तैयार है तो दूसरी तरफ भाजपा भी उनके दामाद राजेश कश्यप को चुनावी मैदान में बैटिंग के लिए उतार सकती है.
एक बार फिर ससुर-दामाद उतर सकते हैं चुनावी मैदान में: बहरहाल ससुर दामाद की इस लड़ाई (Rajesh Kashyap vs Dhaniram Shandil) में किसकी जीत होगी किसकी हार होगी यह तो समय बताएगा. लेकिन चर्चाओं का माहौल है कि इस बार भी इन दोनों पर ही दोनों पार्टियां किस्मत आजमाने वाली है. इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में (Himachal Seat Scan) उतर रही है. घर-घर जाकर जिस तरह से जनसंपर्क चलाया जा रहा है. उससे कहीं न कहीं भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को चुनाव में टक्कर इस बार मिलने वाली है.
सोलन विधानसभा सीट पर कांग्रेस का रहा है वर्चस्व: आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा सोलन विधानसभा क्षेत्र (Solan Assembly Constituency) में कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. सोलन विधानसभा क्षेत्र में 1977 के बाद से अब तक हुए 10 विधानसभा चुनाव में चार बार भाजपा, पांच बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी को जीत मिली है. आंकड़ों के अनुसार यहां की जनता किसी पार्टी विशेष के बजाय क्षेत्रीय व्यक्तित्व पर भरोसा जताती है. यही कारण है कि यहां पर कोई भी नेता दो बार से ज्यादा अपनी सीट नहीं बचा पाया है, चाहे वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजीव बिंदल हों या फिर कांग्रेस की कृष्णा मोहिनी. वर्तमान में सोलन विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस नेता और मौजूदा विधायक धनीराम शांडिल का कब्जा है. सेना से राजनीति में शामिल हुए धनीराम कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. धनीराम को कांग्रेस के कद्दावर दलित नेताओं में से एक माना जाता है. सोलन विधानसभा क्षेत्र में करीब 84,872 मतदाता है, जिसमें पुरुष 44,086, महिला 40,780 और 6 अन्य मतदाता हैं.
राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं शांडिल, 10 जनपथ के हैं करीबी: शांडिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक दल के सदस्य हैं. 1999 में, वह हिमाचल प्रदेश के शिमला निर्वाचन क्षेत्र से हिमाचल विकास कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए. वह 2004 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में उसी निर्वाचन क्षेत्र से 14वीं लोकसभा के लिए फिर से चुने गए. 2012 में कांग्रेस ने उन्हें सोलन विधानसभा से बतौर उम्मीदवार मैदान में उतारा और उन्होंने चुनाव जीतकर करीब एक दशक तक चले भाजपा के विजय रथ पर लगाम लगाई. धनीराम के लगातार सफल प्रदर्शन को देखकर कांग्रेस ने उन्हें दोबारा 2017 में चुनावी रण में उतारा और एक बार वे फिर जीतकर आये. धनीराम शांडिल को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. ऐसे में इस बार भी उनका टिकट काटना मुश्किल नजर आ रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पलक राम कश्यप ने भी सोलन विधानसभा सीट से विधानसभा चुनावी ताल ठोकी है. उनका कहना है कि अगर कांग्रेस उन्हें मौका देगी तो वे जरूर चुनाव लड़ेंगे.
नौकरी छोड़ राजनीति में ससुर के खिलाफ चुनाव में उतरे थे राजेश कश्यप: वहीं, दूसरी तरफ भाजपा नेता राजेश कश्यप अभी से सक्रिय हैं. इस बार भाजपा फिर उनके ऊपर दांव खेल सकती है. चुनाव से पहले उनकी सक्रियता यह बता भी रही है कि इस बार वहीं भाजपा के टिकट के दावेदार होंगे. राजेश कश्यप साल 2017 में आईजीएमसी अस्पताल शिमला से ऐच्छिक सेवानिवृत्त होकर चुनावी मैदान में उतरे थे.
ससुर-दामाद के लिए कांटों भरा होगा चुनाव: भाजपा और कांग्रेस भले ही ससुर-दामाद पर सोलन विधानसभा सीट (Solan Assembly Seat) पर दांव खेलने वाली हो, लेकिन दोनों ही प्रत्याशियों के लिए इस बार चुनाव कांटों भरा रहने वाला है. एक तरफ जहां रिटायर्ड कर्नल धनीराम शांडिल पर कांग्रेस के ही कुछ नेता उम्रदराज होने का प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं. वहीं, दूसरी तरफ भाजपा का एक गुट राजेश कश्यप को न चाहते हुए अन्य भाजपा नेताओं को टिकट दिलाने के प्रयास कर रहा है. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस का भी एक धड़ा अन्य नेताओं को सपोर्ट कर उनके टिकट की मांग कर रहा है.
सोलन विधानसभा सीट पर अब तक किसे मिली जीत किसे मिली हार: साल 1977 में जनता पार्टी से गौरीशंकर ने सोलन विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें जीत भी हासिल हुई थी. उसके बाद 1982 में भाजपा के उम्मीदवार रामानंद ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. साल 1985 में ज्ञानचंद टूटू ने कांग्रेस की टिकट लेकर चुनाव जीता. 1990 में भाजपा नेता महेंद्र नाथ सोफत ने सोलन सीट पर जीत हासिल की. 1993 और 1998 में दो बार लगातार मेजर कृषणा मोहिनी ने कांग्रेस की टिकट पर यहां चुनाव जीता. साल 1998 में हुए चुनाव में कृष्णा मोहिनी ने भाजपा के प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत को 26 मतों से हराया था, जिसको लेकर सोफत ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसके बाद फरवरी 2000 में विधानसभा का उपचुनाव घोषित हुआ जिसमें सोफत का टिकट कटा और डॉ. राजीव बिंदल ने उस उपचुनाव में जीत हासिल की बाद साल 2003 और साल 2007 में भाजपा की टिकट पर डॉ. राजीव बिंदल ने चुनाव लड़ा और इस सीट पर कब्जा किया. उसके बाद साल 2012 और 2017 में हुए चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल ने जीत हासिल की और अभी वे मौजूदा विधायक हैं.
अब तक सोलन विधानसभा सीट पर जीत का अंतर: साल 1977 के चुनाव में गौरी शंकर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़ा 4613 वोटों के अंतर से निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर सिंह को हराया था. साल 1982 में भाजपा प्रत्याशी रामानन्द ने 2816 वोटों के अंतर से निर्दलीय गुरुदत्त को हराया था. साल 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू ने 10,122 वोटों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी रामानन्द को हराया था. साल 1990 में भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नाथ सोफत 2735 वोटो के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञान चंद टूटू को हराया था. 1993 में कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने 11,594 वोटों के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया था. साल 1998 में एक बार फिर कृष्णा मोहिनी ने 26 वोटों के अंतर से भाजपा के महेंद्र नाथ को हराया.
वहीं, 2000 में उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा प्रत्याशी डॉ. राजीव बिंदल ने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी को 3000 से अधिक वोटों से हराया था. साल 2003 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 1359 वोटों के अंतर से निर्दलीय चुनाव में उतरे महेंद्र नाथ सोफत को हराया. साल 2007 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजीव बिंदल ने 3716 वोटों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी कैलाश पराशर को हराया. साल 2012 में कर्नल धनीराम शांडिल चुनावी रण में उतरे 4472 वोटों के अंतर से भाजपा प्रत्याशी कुमारी शीला को हराया. एक बार फिर 2017 में शांडिल चुनाव में उतरे और उन्होंने अपने ही दामाद भाजपा प्रत्याशी राजेश कश्यप को 671 वोटों से हराया.
क्रॉप फसल को समर्थन मूल्य देने, सड़क और स्वास्थ्य सिविधा हर बार चुनावी मुद्दा: सोलन विधानसभा सीट की अगर बात की जाए तो यहां पर चुनावी मुद्दा (Solan Assembly Constituency Issues) हर बार नकदी फसल रही है. हर बार चुनाव में किसानों से वादे किए जाते हैं कि उनकी नकदी फसलों को समर्थन मूल्य दिलाया जाएगा, लेकिन आज तक वह पूरा नहीं हो पाया है. सोलन में लाल सोना यानी टमाटर नकदी फसल है. इसके दाम लगातार बढ़ते और गिरते नजर आते हैं, लेकिन कभी भी समर्थन मूल्य को लेकर कोई भी पार्टी बात नहीं कर पाई है. हर बार यह चुनावी मुद्दा भी बनता है. सड़क, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी लगातार चुनाव में वादे किए जाते हैं, लेकिन सड़क सुविधाएं भी आज तक कई गांव में नाममात्र है. वहीं, पीएचसी और सीएचसी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी भी लगातार चुनावी मुद्दा बनती है. वैसे तो कांग्रेस यह दावा कर रही है कि कांग्रेस कार्यकाल में ही सोलन में विकास हुआ, लेकिन जमीनी हकीकत पर अभी भी विकास होना बाकी है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी लगातार यह कह रही है कि जयराम सरकार के कार्यकाल में प्रदेश के हर गांव में विकास हुआ है, लेकिन घर-घर तक पहुंचने में अभी भी दोनों पार्टियां सोलन में विफल रही है.
भाजपा के चार नेता टिकट की रेस में: चुनाव से पहले सोलन विधानसभा सीट पर भाजपा में टिकट की दावेदारी को लेकर इन दिनों चार प्रत्याशी आगे चल रहे हैं. साल 2017 विधानसभा में चुनाव लड़ चुके भाजपा नेता राजेश कश्यप, भाजपा जिला महामंत्री नन्दराम कश्यप, 2012 में चुनाव लड़ चुकीं कुमारी शीला और वाल्मीकि समाज से संबंध रखने वाले और भाजपा नेताओं के करीबी तरसेम भारती भी इस बार चुनावी दौड़ में हैं. एक धड़ा इन्हें भी भाजपा का टिकट दिलाने के लिए प्रयास कर रहा है. बहरहाल टिकट किसे मिलती है यह तो देखने लायक होगा, लेकिन आपसी गुटबाजी में कहीं न कहीं भाजपा को यहां पर एक बार फिर हार का सामना करना पड़ सकता है.
बरहाल चुनाव में जिसकी भी जीत हो, लेकिन कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party in Himachal) के साथ-साथ देव भूमि जन हित पार्टी भी इस बार चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को टक्कर देने वाली है. आज तक कभी भी कांग्रेस सोलन विधानसभा सीट पर अपनी हैट्रिक नहीं लगा पाई है. वहीं, दूसरी तरफ भाजपा के लिए भी यहां पर जीत हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है.
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