सोलनः जिला सोलन में साल के पहले दिन सैकड़ों भक्त मां शूलिनी के दरबार में माथा टेकने के लिए पहुंचे. मां के दरबार में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिली. नए साल के मौके पर जिला सोलन का शूलिनी मंदिर भव्य तरीके से सजाया गया है.
लोगों ने नए वर्ष की शुभकामनाओं के लिए मां से आशीर्वाद लिया. बता दें कि शूलिनी देवी सोलन सहित आसपास के क्षेत्र की कुलदेवी हैं. स्थानीय लोगों सहित किसानों की ओर से उगाई गई फसल के तैयार होने के बाद यहां पर सबसे पहले फसल को चढ़ाया जाता है, जिसके बाद लोग स्वयं अपनी फसलों का सेवन करते हैं.
बघाट रियासत की हैं कुल देवी
माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुल श्रेष्ठा देवी मानी जाती है. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में विद्यमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाएं मौजूद हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक हैं.
अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था. सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी.
इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी. बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था. इस रियासत की शुरुआत में राजधानी जौणाजी, तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी. राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासकस माने जाते हैं.
वहीं, मां शूलिनी के नाम पर सोलन में मेला भी आयोजित किया जाता है. यह मेला भी जहां जनमानस की भावनाओं से जुड़ा है, वहीं पर विशेषकर ग्रामीण लोगों को मेले में आपसी मिलने-जुलने का अवसर मिलता है, जिससे लोगों में आपसी भाईचारा, राष्ट्र की एकता की भावना बढ़ती है.
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