शिमला: हिमाचल में लंपी वायरस की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के आठ जिलों में कुल 24399 पशु लंपी चमड़ी रोग से ग्रसित पाए गए हैं. जिनमें से 18256 पशु अभी भी लंपी वायरस की चपेट में है और अबतक प्रदेश में लंपी वायरस से 513 गोवंश की मौत हुई है. प्रदेश में 259000 वैक्सीन की आवश्यकता का अनुमान (Lampy Virus in Himachal) है. जबकि विभाग के पास अभी 42608 वैक्सीन ही उपलब्ध है. 47949 गौवंश का लंपी वायरस से बचाव के लिए टीकाकरण कर दिया गया है. यह बात पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने ईटीवी के साथ खास बातचीत के दौरान (Virender Kanwar on Lampy Virus) कही. उन्होंने कहा कि प्रदेश में अभी तक लंपी चर्म रोग (lampy Skin Desease) से ग्रसित 5,630 पशु स्वस्थ हो चुके हैं.
लंपी वायरस की रोकथाम एवं नियंत्रण- पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि हिमाचल में पशुधन में लंपी वायरस की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए प्रदेश सरकार द्वारा प्रभावी कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि प्रदेश में अभी तक लगभग 50 हजार पशुओं का टीकाकरण पूर्ण कर लिया गया है. गोशालाओं और बेसहारा पशुओं का टीकाकरण किया जा रहा है. इसके अलावा पशुपालकों को भी विभिन्न माध्यमों से जानकारी दी जा रही है.
रोग नियंत्रित के लिए कंटेनमेंट जोन स्थापित- पशुपालन मंत्री ने कहा कि प्रदेश में इस रोग की रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा कि रोग को नियंत्रित करने के लिए कंटेनमेंट जोन स्थापित किए गए हैं और रोग से ग्रसित पशुधन को अलग कर इस रोग को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि पशुपालन विभाग के माध्यम से प्रचुर मात्रा में दवाएं इत्यादि उपलब्ध करवाई गई हैं. उन्होंने कहा कि विभाग के पास वर्तमान में टीके की 1,19,591 खुराकें उपलब्ध हैं और आवश्यकता पड़ने पर खुले बाजार से भी दवा और टीका खरीदने के निर्देश दिए गए (Lampy Virus status in Himachal) हैं.
रोकथाम में विभाग को करें सहयोग- पशुपालन मंत्री ने कहा कि पड़ोसी राज्य से इस रोग का पहला मामला सामने आने के उपरांत प्रदेश सरकार ने तत्काल इससे बचाव के संबंध में आवश्यक परामर्श एवं दिशा-निर्देश जारी कर दिए थे. विभागीय अधिकारियों को निरंतर निगरानी करने और दैनिक आधार पर इसकी रिपोर्ट तैयार करने के भी निर्देश दिए गए हैं. उन्होंने पशुपालकों से आग्रह किया है कि वे इस रोग की रोकथाम में विभाग को सहयोग करें और किसी भी प्रकार की शंका के निवारण के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र में संपर्क कर सकते हैं.
क्या है लंपी वायरस?- दुधारू पशुओं में फैल रहे इस बीमारी को 'गांठदार त्वचा रोग वायरस' यानी एलएसडीवी कहा जाता (what is Lampy Virus) है. इस बीमारी के लक्षणों में पशुओं को लगातार बुखार रहना, वजन कम होना, लार निकलना, आंख और नाक का बहना, दूध का कम होना, शरीर पर अलग-अलग तरह के नोड्यूल दिखाई देना व चकत्ते जैसी गांठें बन जाना है. बीमारी की चपेट में आने से बचाव के लिए पशुओं को मच्छरों व अन्य कीटों से बचाना जरूरी है. इसके लिए पशुपालकों को पशुओं के बांधने वाले स्थान पर धुआं आदि का प्रबंध करना चाहिए.
लंपी वायरस से ऐसे बचाएं अपने पशुओं को: खास तौर से गायों (Lampy Virus In Cow) में लगातार फैल रहे लंपी वायरस ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. गौशालाओं के बाहर पशुपालकों के पशु भी लंपी वायरस की चपेट में आने लगे हैं. राज्य सरकार इस वायरस पर नियंत्रण पाने के प्रयास कर रही है लेकिन फिलहाल यह काबू में नहीं आया है. सरकार ने पशुपालकों से अपील की है कि वे जागरूकता बरतते हुए अपनी गायों को इस वायरस की चपेट में आने से बचाएं. यह बीमारी लाइलाज है. ऐसे में एहतियात बरतना बेहद जरूरी है.
बचाव ही इलाज है- इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण नजर आने पर पशुओं को दूसरे जानवरों से अलग कर दें. इलाज के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करें. बीमार पशु को चारा पानी और दाने की व्यवस्था अलग बर्तनों में करें. रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही रोकें. जहां ऐसे पशु हों, वहां नीम के पत्तों को जलाकर धुआं करें (what is lumpy skin disease) , जिससे मक्खी, मच्छर आदि को भगाया जा सके. पशुओं के रहने वाली जगह की दीवारों में आ रही दरार या छेद को चूने से भर दें. इसके साथ कपूर की गोलियां भी रखी जा सकती हैं, इससे मक्खी, मच्छर दूर रहते हैं. जानवरों को बैक्टीरिया फ्री करने के लिए सोडियम हाइपोक्लोराइट के 2 से 3 फीसदी घोल का छिड़काव करें. मरने वाले जानवरों के संपर्क में रही वस्तुओं और जगह को फिनाइल और लाल दवा आदि से साफ कर दें. संक्रामक रोग से मृत पशु को गांव के बाहर लगभग डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूने या नमक के साथ दफनाएं.
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